मुल्ला लोग अकबर की इस्लाम विरोधी बातों का विरोध लम्बे समय से कर रहे थे किंतु जब अकबर ने यह घोषित किया कि वह अल्लाह का दूत है तो मुल्ला लोग अकबर पर गुस्से से चिल्लाने लगे!
अकबर ने एक खुतबा पढ़कर यह घोषित कर दिया कि अब से उसकी सल्तनत में इस्लाम की व्याख्या के मामले में शहंशाह को ही अंतिम निर्णय करने का अधिकार होगा। इस आदेश के माध्यम से अकबर ने भारत के समस्त मुल्लाओं, मौलवियों, उलेमाओं, काजियों एवं इमामों के ऊपर सर्वोच्च अधिकार पा लिया। इसे बहुत से लोगों ने शहंशाह की तरफ से किया गया इस्लाम-विरोधी कार्य समझा जबकि कुछ लोगों ने मुल्लों के साथ-साथ इस्लाम की सत्ता की आलोचना करनी आरम्भ कर दी।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने अपनी पुस्तक मुन्तखब उत् तवारीख में लिखा है कि इन दिनों इस्लाम की सत्ता की आलोचना होने लगी तथा जब पैगम्बर के विरोध में उनसे सम्बन्धित प्रश्न, हिन्दू और हिन्दू जैसे मुसलमान उठाने लगे, कुछ खलनायक-उलेमाओं ने अपने कार्यों में शहंशाह को पाप से परे घोषित कर दिया और ‘एकाकी अल्लाह’ अर्थात् ‘अल्लाह एक है’ की घोषणा तक ही संतुष्ट हो गए।
मुल्ला बदायूनी लिखता है कि उन लोगों ने शहंशाह के विभिन्न सम्मानों को अपनी रचनाओं में लिखा किंतु पैगम्बर का उल्लेख करने की हिम्मत नहीं कर सके। यह मसला जनसाधारण की लज्जा का कारण बना तथा ये लोग वंचना व उपद्रव के बीच सल्तनत में अपना सिर उठाने लगे। इसके अलावा उच्च व निम्न तबके के उद्दण्ड एवं नीच व्यक्ति अपनी गर्दनों में आध्यात्मिक आज्ञाकारिता का पट्टा पहने, अपने आपको शहंशाह का शिष्य बताने लगे। मुल्ला लिखता है कि ये लोग लालच एवं डर से बादशाह के शिष्य हुए। सत्य का एक शब्द भी उनके मुंह से बाहर नहीं आ सका।
मुल्ला बदायूनी लिखता है कि इस महीने के दूसरे जुम्मे को शहंशाह ने गरीबों एवं जरूरतमंदों को चौगान मैदान में बुलाया तथा स्वयं भी वहाँ आया। करीब एक लाख आदमी एवं औरतें उस चारदीवारी में आ गए। सद्र सुल्तान ख्वाजा व कुलिज खाँ ने प्रत्येक आदमी तथा औरत को सोने का टुकड़ा दिया। उस दिन भीड़ में अस्सी आदमी, औरत एवं बच्चे कुचलने से मारे गए। बंगाल की औरतों के अशर्फी से भरे बटुए जिनके पति बंगाल में मारे गए थे, कमर से गिर पड़े। गरीब लोगों ने इन बटुओं को लूटने का प्रयास किया जिसके कारण यह अफरा-तफरी मची।
मुल्ला ने अकबर द्वारा एक लाख गरीबों को चौगान मैदान में बुलाकर सोना बांटने का कारण स्पष्ट नहीं किया है किंतु अनुमान होता है कि अकबर ने अपनी प्रजा को अपने पक्ष में करने के लिए इतना विशाल आयोजन किया था। क्योंकि अकबर के विरुद्ध मुल्ला-लोग जहर उगल रहे थे और सल्तनत में अकबर के विरुद्ध वातावरण तैयार हो रहा था।
इस घटना के कुछ दिन बाद अकबर अजमेर के लिए रवाना हुआ। यह अकबर की चौदहवीं अजमेर यात्रा थी। ख्वाजा की दरगाह से पांच कोस पहले शहंशाह सवारी से उतर गया और दरगाह की ओर पैदल चला।
मुल्ला बदायूनी ने लिखा है- ‘शहंशाह को देखकर संवेदनशील लोग मुस्कुराए और बोले यह आश्चर्यजनक है कि हुजूर को अजमेर के ख्वाजा में इतना विश्वास है जबकि हुजूर ने अपने पैगम्बर के हर आधार को नकार दिया है जिसकी पोशाक से ख्वाजा जैसे सैंकड़ों-हजारों पीर निकले हैं।’
मुल्ला लिखता है कि शहंशाह के अजमेर की ओर निकल जाने के बाद मख्दुम-उल-मुल्क और शेख उब्दुन्नबी आदि उलेमाओं ने सामान्यजन को शहंशाह के खिलाफ भड़काया। उन्होंने लोगों को बताया कि शहंशाह द्वारा इलहाम को असंभव बताते हुए, सीमा से बाहर जाकर, पैगम्बर और इमामों की आधिकारिता में संदेह पैदा करके, देवदूत व शैतान को नकारकर, रहस्यों एवं चमत्कारों को नकारकर, कुरान के साथ साजिश की गई है।
अकबर-विरोधी मुल्लों ने कुरान की विषयवस्तु की अस्मिता पर, इसकी शाब्दिक आधिकारिता पर, शरीर समाप्ति के बाद रूह पर फिर से जन्म, के अलावा दण्ड व पारितोषिक की असंभवता पर व्यंग्य करते हुए लिखा-
मकबरे के हाथ में कितना सा सच है।
कुरान चिंरतन है और पुराने मकबरे भी।
मकबरे किसी से एक शब्द भी नहीं बोलते
कुरान के रहस्यों को कोई खोजता ही नहीं।
मुल्ला बदायूनी लिखता है- ‘शहंशाह ने अब इस सूत्र को अपनाने का निश्चय किया कि कोई ईश्वर नहीं है, अल्लाह के सिवा और अकबर अल्लाह का दूत है। अकबर के इस निश्चय से हंगामे हो सकते थे इसलिए उसने इस सूत्र का प्रयोग एक निश्चित सीमा में अर्थात् हरम की सीमा तक ही रखा।’
मुल्ला बदायूनी लिखता है कि शहंशाह ने कुतुबुद्दीन मुहम्मद खाँ व शाहबाज खाँ को मनाने की बहुत कोशिश की किंतु उन्होंने शहंशाह का भारी विरोध किया। कुतुबुद्दीन खाँ ने बादशाह से कहा कि पश्चिम के सुल्तान जैसे इस्तंबूल के सुल्तान यह सुनेंगे कि हिंदुस्तान का बादशाह क्या कह रहा है तो वे क्या कहेंगे? क्योंकि उन सबका विश्वास है कि बादशाह की यह बात हास्यास्पद है कि बादशाह अल्लाह का दूत है।
मुल्ला लिखता है कि तब शहंशाह ने कुतुबुद्दीन मुहम्मद खाँ से पूछा कि यदि इस्तंबूल का वह सुल्तान गुप्त कार्य के लिए भारत में होता तो क्या वह मेरी इस बात का इतना विरोध करता या अपने लिए अच्छा स्थान रखने के लिए भारत से वापस इस्ताम्बूल चला जाता और यदि चला जाता तो क्या वहाँ इतना सम्मान पाता? इस पर शहबाज खाँ ने उत्तेजना से चिल्लाते हुए कहा- ‘वह शायद तत्काल चला जाता।’
मुल्ला लिखता है- ‘जब बीरबल अर्थात् वही जहन्नुम का कुत्ता, ने ईमान पर आक्रमण किया तो शहबाज खाँ ने बीरबल से कहा तू शापित काफिर है। तू इस तरह बात करता रहेगा जब तक मैं तुझसे बदला न ले लूं। इस प्रकार मामला गंभीर हो गया और शहंशाह ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों से विशेषकर शहबाज खाँ से कहा, लोग कीचड़ भरे जूतों से तुम्हारे मुंह पीटेंगे?’
मुल्ला बदायूनी ने बादशाह के आचरण को इंगित करके लिखा है कि इस्लाम के विरुद्ध बादशाह का ऐसा आचरण देखकर मुल्क में एक ऐसी पीढ़ी आ गई जिसने इबादत छोड़ दी और अपनी वासनाओं के पीछे दौड़ पड़े। मदरसे और मस्जिदें लोपित हो गईं और बहुत से व्यक्तियों ने अपना पैतृक क्षेत्र छोड़ दिया तथा उनके बच्चे जो वहाँ रह गए, उन्होंने स्तरहीन व्यवहार में ही इज्जत पाई।
मुल्ला बदायूनी लिखता है कि हकीम-उल-मुल्क ने शेख अबुल फजल का विरोध किया। मुल्ला बदायूनी ने इस विरोध का कारण तो नहीं लिखा है किंतु अनुमान लागाया जा सकता है कि इस समय मुल्ला और उलेमा अकबर के साथ-साथ उसके खास मित्रों एवं सेवकों से भी नाराज थे जो यह मानते थे कि अकबर अल्लाह का दूत है।
संभवतः इसीलिए हकीम-उल-मुल्क ने शेख अबुल फजल का विरोध किया था। इस पर शहंशाह ने सख्ती दिखाई और हकीम-उल-मुल्क को अपना मुल्क छोड़कर हज पर मक्का जाने का आदेश दे दिया। शहंशाह की इस कार्यवाही से मुल्ला और उलेमा लोग और अधिक नाराज हो गए। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि अकबर अल्लाह का दूत नहीं है।