ओरछा के मंदिर एवं महल ओरछा राजाओं की भक्ति, शक्ति और स्थापत्य प्रेम के जीवंत प्रमाण हैं। सम्पूर्ण ओरछा नगर पर बुंदेला राजाओं के इतिहास की गहरी छाप है।
ओरछा नगर की स्थापना 15वीं शताब्दी ईसवी में बुंदेला राजा रुद्रप्रताप सिंह जूदेव ने की थी। उस समय दिल्ली पर क्रूर सुल्तान सिकन्दर लोदी का शासन था। राजा रुद्रप्रताप सिंह जूदेव ने सिकंदर लोदी के अत्याचारों का विरोध किया एवं युद्धक्षेत्र में उतरकर भीषण युद्ध किया था। राजा रुद्रप्रताप सिंह देव ने ही ओरछा का किला भी बनवाया था।
सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में जब आगरा पर मुगलों का राज्य हुआ, तब भी ओरछा के राजा अपनी वीरता के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध रहे। जब मुगल बादशाह अकबर ने अपने विद्रोही पुत्र सलीम को समझाने के लिए अपने मित्र अबुल फजल को भेजा था, तब सलीम के कहने पर ओरछा के राजा वीरसिंह बुंदेला ने अबुल फजल की हत्या कर दी। इससे मुगलों एवं बुंदेलों के सम्बन्ध खराब हो गए।
ओरछा नगर में अनेक मंदिर, महल एवं उद्यान बने हुए हैं। बेतवा नदी के किनारे बने एक उद्यान में दो ऊँचे स्तम्भ सावन-भादों कहलाते हैं। नदी के दूसरी तरफ जहांगीर महल, राजमहल, शीशमहल और राय परवीन के महल स्थित हैं।
ओरछा नगर में स्थित राजमहल, रायप्रवीण महल, हरदौल बुंदेला की बैठक, हरदौल बुंदेला की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है।
ओरछा के महल बुंदेला राजाओं की वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। महलों के खुले गलियारे, पत्थरों से बनी जालियाँ, पशु-पक्षियों की मूर्तियां, बेल-बूटे बहुत आकर्षक हैं। महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी बने हुए हैं। इस महल का निर्माण वीरसिंह बुंदला ने करवाया था।
राजमहल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह बुंदेला ने 17वीं शताब्दी ईस्वी में करवाया था। राजा वीरसिंह जुदेव बुंदेला उन्हीं के उत्तराधिकारी थे। यह महल छतरियों और बेहतरीन आंतरिक भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है। महल में धर्म ग्रन्थों से जुड़ी तस्वीरें भी देखी जा सकती हैं।
यह महल राजा इन्द्रमणि बुंदेला की खूबसूरत गणिका प्रवीणराय की याद में बनवाया गया था। वह अच्छी कवयित्री तथा संगीतज्ञ थी। जब अकबर को प्रवीणराय की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसे दिल्ली बुलवाया गया किंतु प्रवीणराय बुंदेला राजा इन्द्रमणि से प्रेम करती थी। वह अकबर से अनुमति लेकर वापस ओरछा लौट आई। प्रवीणराय का दो-मंजिला महल प्राकृतिक उद्यान से घिरा है।
राजमहल के निकट चतुर्भुज मंदिर स्थित है जो ओरछा का मुख्य आकर्षण है। यह मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण ओरछा के राजा मधुकरशाह बुंदेला (ई.1554-1591) ने करवाया था। मधुकरशाह बुंदेला की रानी गणेश कुंवरि के महल में रामराजा सरकार विराजमान हैं, उसी को रामराजा मंदिर कहा जाता है।
ओरछा के राजाओं ने पालकी महल के निकट फूलबाग का निर्माण करवाया। फूलों का यह उद्यान चारों ओर पक्की दीवारों से घिरा है। यह उद्यान बुंदेला राजाओं का विश्रामगृह था। फूलबाग में एक भूमिगत महल और आठ स्तम्भों वाला मंडप है। यहाँ के चंदन कटोर से गिरता पानी झरने के समान दिखाई देता है।
राजा जुझार सिंह बुंदेला के पुत्र धुरभजन बुंदेला ने भी एक सुन्दर महल बनवाया था। धुरभजन की मृत्यु के बाद उन्हें संत के रूप में जाना गया। अब यह महल क्षतिग्रस्त अवस्था में है।
ईस्वी 1622 में वीरसिंह जुदेव बुंदेला ने लक्ष्मीनारायण मंदिर बनवाया। यह मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है। मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के भित्तिचित्र बने हुए हैं। चित्रों के चटकीले रंग आज भी अच्छी दशा में हैं। मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां भी बनी हुई हैं।
ईस्वी 1742 तक झांसी भी ओरछा राज्य में था किंतु मराठा सेनापति नारोशंकर मोतिवाले ने ओरछा पर हमला करके ओरछा नरेश पृथ्वीसिंह बुंदेला को बंदी बना लिया तथा अलग झांसी राज्य बनाया। ईस्वी 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिस प्रकार झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से युद्ध किया था उसी प्रकार ओरछा की महारानी ने भी अंग्रेजों से युद्ध किया था। ओरछा झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
ओरछा में बेतवा नदी सात धाराओं में बंटती है, जिसे सतधारा कहते हैं। ओरछा में वन्यजीवों के सरंक्षण के लिए एक अभयारण्य स्थापित किया गया है जो लगभग 45 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता