Monday, June 23, 2025
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जेहाद का अंतिम पड़ाव !

क्या इस संसार में कोई भी इस प्रश्न का उत्तर ईमानदारी से दे सकता है कि जेहाद क्या होता है और जेहाद का अंतिम पड़ाव क्या है? शायद नहीं…. कोई नहीं। इसलिए नहीं कि कोई जानता ही नहीं, जानते तो सब लोग हैं किंतु इस प्रश्न का उत्तर इतना खौफनाक है कि कोई उस खौफ का सामना नहीं करना चाहता!

22 अप्रेल 2025 को पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने पहलगाम में 27 भारतीय पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया। आतंकवादियों ने उसे जेहाद कहा।

इस हमले के बाद भारत में भी एक मौलवी बता रहा था कि पहलगाम में जो कुछ हुआ वह जेहाद है क्योंकि रमजान के पवित्र महीने के बाद काफिरों को मारना जेहाद कहलाता है। उस मौलवी ने यह भी बताया कि कुछ मुसलमान इस हमले की निंदा करेंगे। इस निंदा को अल तकैया कहा जाता है। यह भी जेहाद का हिस्सा है।

अर्थात् उस मौलवी के अनुसार काफिरों को मारना तथा काफिरों को मारने की निंदा करना, दोनों ही जेहाद है। इस मौलवी का पूरा वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध है।

क्या कोई भी व्यक्ति जेहाद की इस परिभाषा से सहमत हो सकता है? पहलगाम पर आगे बात करने से पहले जेहाद के सम्बन्ध में कुछ प्रश्नों पर विचार करते हैं। दुनिया भर के मुल्ला, मौलवी, काजी, आलिम और पढ़े-बेपढ़े मुसलमान अपने-अपने हिसाब से जेहाद की परिभाषा देते हैं, इस कारण वे लोग जो मुसलमान नहीं हैं, जेहाद के बारे में अपनी समझको लेकर उलझन में रहते हैं कि जेहाद क्या है?

यह कहाँ से शुरु होकर कहाँ खत्म होता है? अर्थात् दुनिया में जेहाद कब आरम्भ हुआ था और जेहाद का अंतिम पड़ाव क्या है?

कुछ मुल्ला-मौलवी कहते हैं कि अपने भीतर की बुराइयों को नष्ट करके अल्लाह तक पहुंचना जेहादहै। अल्लाह तक पहुंचना जेहाद का अंतिम पड़ाव है।

क्या आतंकवादी जेहाद की इस परिभाषा को मानते हैं? इन आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे जेहाद की परिभाषा क्या है? उनके द्वारा किए जा रहे जेहाद का अंतिम पड़ाव क्या है?

प्रत्येक आतंकवादी घटना के बाद भारत और पाकिस्तान में कुछ मुल्ला-मौलवीबड़े फख्र से यह कहते हुए सुनने को मिल जाएंगे कि काफिरों को मारना जेहाद है तथा जेहाद करते हुए शहीद होकर जन्नत की 72 हूरें प्राप्त करना जेहाद का अंतिम पड़ाव है।

पिछले चौदह सौ सालों से दुनिया भर में मुसलमानों की संख्या लगातार बड़ी तेजी से बढ़ रही है, कुछ लोग इसी को जेहाद बताते हैं।

यदि जेहाद की इस परिभाषा को मानें तो यह मानना पड़ेगा कि धरती पर जेहाद पिछले चौदह सौ सालों से चल रहा है।

प्रश्न यह है कि क्या किसी कौम या मजहब के लोगों की जनसंख्या का बढ़ जाना वास्तव में जेहाद ही है?

कुछ लोग हमास के द्वारा इजराइल में घुसकर निर्दोष इजराइली औरतों, पुरुषों एवं बच्चों को मारने और बंधक बना लेने को जेहाद बताते हैं तो कुछ लोग लव जेहाद, लैण्ड जेहाद, थूक जेहाद आदि के माध्यम से भी जेहाद को परिभाषित करने का प्रयास करते हैं।

जब पहलगाम की घटना के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तान में रह रहे आतंकवादियों के विरुद्ध सैनिक अभियान किया तो तुर्की ने पाकिस्तान को युद्ध में काम आने वाले ड्रोन भिजवाए। यह वही तुर्की है जिसे भूकम्प की त्रासदी में भारत द्वारा सबसे पहले राहत सामग्री भिजवाई गई थी।

तुर्कीए ने भारत के उपकार का बदला भारत के विरुद्ध, पाकिस्तान को युद्ध सामग्री भेजकर किया। क्या इसे जेहाद कहते हैं? क्या तुर्की के लिए भारत जैसे सहिष्णु देश को नष्ट करने में सहयोग करना जेहाद का अंतिम पड़ाव है?

भारत की सेना ने पाकिस्तान के कुख्यात आतंकवादी ठिकानों पर हमले करके बहुत से आतंकवादी मारे तथा लश्कर के कमाण्डर अब्दुल रउफ के दो बेटों को भी मिसाइल से उड़ा दिया। अपने बेटों के शरीरों के चिथड़े उड़ते ही अब्दुल रउफ बड़े घमण्ड के साथ पाकिस्तान की सड़कों पर निकला और उसने पाकिस्तान की अशिक्षित एवं निर्धन जनता को सम्बोधित करते हुए कहा कि मेरे सात बेटे थे, मुझे फख्र है कि उनमें से दो जेहाद करते हुए शहीद हुए। मेरे पांच बेटे और हैं, मैं अपने ये पांच बेटे भी रब की राह में शहीद करवाउंगा।

भारत में एक बेटा होना भी बहुत बड़ी बात मानी जाती है। कुछ समय पहले तक तो भारत के लोग एक बेटे की चाहत में सात-सात बेटियां पैदा कर लेते थे। जब बेटा नहीं होता था तो अपनी किस्मत को कोसते थे। और पुत्रहीनता को अपने बुरे कर्मों का फल बताते थे।संभवतः अब्दुल रउफ बड़ा धर्मात्मा है जिसे एक या दो नहीं, सात बेटों का बाप होने का फख्र हासिल हुआ।

अब्दुल रउफ आतंकी संगठन लश्कर का बड़ा कमाण्डर है, इसलिए पाकिस्तान की जनता में उसकी आवाज बड़ी इज्जत से सुनी जाती है। रउफ की इस बात को सुनकर कि वह अपने पांच और बेटों को रब की राह में शहीद करेगा, पाकिस्तान की सड़कों पर नारा ए तदबीर अल्लाह हो अकबर बड़ी जोर से बोला गया, पाकिस्तान की जनता ने तालियां बजाकर खुशी जताई। उनकी छातियां जोश से भर गईं। ऐसा लगता था जैसे अब्दुल रउफ की इस बात को सुनकर पाकिस्तान की जनता में जेहाद करने के लिए नया जोश छा गया।

भारतीय न्यूज चैनलों तथा सोशियल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह दृश्य बारबार दिखाया गया। इसे देखकर कोई भीमनुष्य यह सोचने के लिए विवश हो जाएगा कि अब्दुल रउफ जो कह रहा है, क्या वास्तव में वही जेहाद है? क्या दूसरों को मारना और उन्हें मारने की लालसा में स्वयं मर जाना और अपनी औलादों को मर जाने देना जेहाद है? क्या यही जेहाद का अंतिम पड़ाव है?

भारत में कहा जाता है कि गजवा ए हिन्द जेहाद है और गजवा ए हिन्द ही भारत में जेहाद का अंतिम पड़ाव है। यदि गजवा ए हिन्द जेहाद है तो फिर भारत के बाहर घट रही घटनाएं क्या हैं? क्या वे भी जेहाद हैं, या फिर उन घटनाओं का जेहाद से कुछ लेना-देना नहीं है!

पहलगाम हमले के दौरान पाकिस्तान से एक बड़ी अशोभनीय खबर आई कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री सत्तर वर्षीय इमरान खान के साथ पाकिस्तानी सेना के एक मेजर ने घिनौना व्यवहार किया है। पाकिस्तान में इसे गिलमा कहा जाता है। तो क्या पाकिस्तानी लोग गिलमा को भी जेहाद मानते हैं? निश्चित रूप से यह जेहाद नहीं हो सकता, जेहाद तो कुछ और ही चीज होती होगी!

कुछ समय पहले बांगलादेश में हिन्दुओं का नरसंहार किया गया था और उसे जेहाद बताया गया था। यदि अपने ही देश के निर्दोष विधर्मियों को मारना जेहाद है तो फिर बांगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ जो कुछ हुआ, वह क्या था? क्यों उन्हें अचानक ही अपना देश छोड़कर भारत में भाग आना पड़ा?

क्यों उनकी अपनी ही कौम के लोगों ने उनके अण्डर गार्मेंट्स बांगलादेश की सड़कों पर उछाले थे?

तो क्या बांगलादेश में अपनी ही कौम की 77 वर्षीया व्द्ध महिला प्रधानमंत्री के अण्डर गार्मेंट्स सड़कों पर उछालने को जेहाद माना जाता है? निश्चित रूप से यह घटना जो कुछ भी रही हो, इसे जेहाद तो नहीं कहा जा सकता?

दो दिन पहले हीबांगला देश से खबर आई है कि बांगलादेश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल हामिद कोट-पेंट उतारकर लुंगी में छिप गए और रात के अंधेरे में थाइलैण्ड के रास्ते इण्डोनेशिया भाग गए। मन में एक बार फिर सवाल उठता है कि क्या अपनी ही कौम के लोगों को अपना देश छोड़कर भाग जाने के लिए मजबूर कर देना जेहाद है। क्या यही जेहाद का अंतिम पड़ाव है?

क्या इसी जेहाद के चलते पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो को अपना देश छोड़कर विदेशों में भाग जाना पड़ा था? क्या वह जेहाद का अंतिम पड़ाव था?

या फिर जेहाद का अंतिम पड़ाव वह है जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान की सेना ने फांसी के फंदे पर लटकाया था?

या फिर जेहाद का अंतिम पड़ाव वह था जब पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को उनके अपने ही देश में बम विस्फोट में मार दिया गया था!

यदि ये जेहाद हैं तो ये कैसे जेहाद हैं। इन जेहादों का अंतिम पड़ाव क्या है? मैं नहीं जानता कि जेहाद क्या है! मैंने न तो कुरान पढ़ी है, न हदीस पढ़ी है और न मुझे यह पता है कि कुरान या हदीस में जेहाद का अर्थ बताया भी गया है कि नहीं!

मैं तो जेहाद की उन परिभाषाओं पर बात कर रहा हूँ जो परिभाषाएं इजराइल और फिलीस्तीन से लेकर अजरबैजान, तुर्की, पाकिस्तान, बांगलादेश और भारत में घटी घटनाओं के बाद दुनिया भर के मुल्ला मौलवियों द्वारा दी जाती रही हैं। पिछले एक दशक में जेहाद के नाम पर लंदन, पेरिस और स्विट्जरलैण्ड भी बहुत बड़ी मात्रा में खून बहाया गया है।

मैंने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि आज से 1300 वर्ष पहले भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण करने वाले मुहम्मद बिन कासिम से लेकर महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, अहमदशाह अब्दाली तथा जहीरुद्दीन बाबर आदि विदेशी हमलावरों ने भारत पर किए गए हमलों को जेहाद बताया था।

मैं एक बार फिर कहता हूँ कि मुझे नहीं मालूम कि जेहाद क्या है किंतु मेरा छोटा सा दिमाग यह कहता है कि किसी का खून बहाना, किसी वृद्ध महिला प्रधानमंत्री के अण्डर गारमेंट्स सड़कों पर लहराना तथा किसी बूढ़े पूर्व प्रधानमंत्री का गिलमा करना, अपने ही देश के पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी पर चढ़ाना, उन्हें बम धमाकों से मार देना आदि कुकृत्य चाहे जो भी कहलाते हों, कम से कम जेहाद तो नहीं हो सकते।

मुल्ला मौलवियों द्वारा दी जा रही जेहाद की परिभाषाओं तथा सड़कों पर दिखाई देने वाले जेहाद के स्वरूप के इतने सारे उदाहरणों एवं इतनी सारी विवेचना के बाद भी मैं फिर से उसी बिंदु पर आकर खड़ा हो जाता हूँ, जहाँ से मैने बात आरम्भ की थी कि भले ही दुनिया भर में जेहाद चल रहा है किंतु शायद ही कोई समझता हो कि जेहाद वास्तव में क्या होता है, यह कहाँ से शुरु होता है और कहाँ पहुंचकर खत्म होता है?

शायद कोई नहीं जानता कि जेहाद क्या है, शायद इसलिए क्योंकि यह पूरी तरह रहस्यमयी है।

मेरे लिए आज भी यह प्रश्न अनुत्तरित है कि जेहाद क्या है और जेहाद का अंतिम पड़ाव क्या है? कुछ लोग कहते हैं कि एक दिन पूरी दुनिया को मुसलमान बनना है, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो कुछ भी किया जाए, वह सब जेहाद है। पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है?

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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