Saturday, April 26, 2025
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तुर्की अमीरों की बगावत को कुचल दिया इब्राहीम लोदी ने (167)

सुल्तान इब्राहीम लोदी ने अमीरों पर अंकुश रखने के लिए नियम एवं कायदे लागू किए जिसके कारण अनेक अमीर सुल्तान के विरोधी हो गए और अनेक तुर्की अमीरों ने बगावत कर दी। दिल्ली सल्तानत के सुल्तान के विरुद्ध तुर्की अमीरों की बगावत कोई नई बात नहीं थी। यह तो कुतुबुद्दीन एबक के समय से ही चल रही थी।

पाठकों को स्मरण होगा कि इब्राहीम लोदी ने ग्वालियर के युद्ध के दौरान जब आजम हुमायूं शेरवानी को विजय मिलने ही वाली थी, तब उसने जीत का श्रेय स्वयं लेने के लिए आजम हुमायूं को ग्वालियर से दिल्ली बुलाकर कैद कर लिया। जब उसके पुत्र फतेह खाँ ने सुल्तान के इस कदम का विरोध किया तो सुल्तान के आदेश से फतह खाँ को भी बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

इस पर आजम हुमायूं के दूसरे पुत्र इस्लाम खाँ ने सुल्तान से विद्रोह कर दिया। आजम हुमायूं के कुछ अमीर एवं सैनिक भी इस्लाम खाँ की तरफ हो गए। इन लोगों ने आगरा के सूबेदार अहमद खाँ पर आक्रमण कर दिया।

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हुमायूं लोदी नामक एक अमीर, सुल्तान का पक्ष त्यागकर अपनी जागीर लखनऊ में चला गया। सुल्तान को कुछ और अमीरों पर भी विद्रोह में मिले होने का अंदेशा हुआ। इसलिए सुल्तान ने अपने विश्वास के अमीरों को विद्रोही अमीरों पर आक्रमण करने भेजा। सुल्तान के विश्वास के अमीरों की सेनाएं, विरोधी अमीरों की सेनाओं से हारकर आ गईं। इस पर सुल्तान ने अपने विश्वास के अमीरों को चेतावनी दी कि यदि तुम उन बागियों को हरा नहीं पाते हो तो तुम्हारे साथ भी वैसा ही बर्ताव किया जाएगा, जैसा बागियों के साथ किया जाता है। सुल्तान की इस घोषणा के बाद कुछ और अमीर बागी हो गए और दूसरे बागियों से जा मिले। इस पर सुल्तान इब्राहीम लोदी स्वयं 50 हजार घुड़सवारों की एक सेना लेकर बागियों पर कार्यवाही करने के लिए आगरा से रवाना हुआ। उधर बागी अमीरों की संख्या बढ़ती जा रही थी, इसलिए उनकी सेना काफी बड़ी हो गई थी। तत्कालीन मुस्लिम लेखकों के अनुसार बागियों की सेना में चालीस हजार घुड़सवार, कई हजार पैदल सेना तथा पांच सौ हाथी सम्मिलित थे। शेख राजू बुखारी नामक एक मौलवी ने सुल्तान एवं बागी अमीरों के बीच मध्यस्थता का प्रयास किया किंतु दोनों पक्ष एक दूसरे की कोई बात मानने को तैयार नहीं थे, इसलिए शेख राजू बुखारी असफल हो गया।

तुर्की अमीरों की बगावत में शामिल आजम हुमायूं शेरवानी और उसके पुत्र फतह खाँ की रिहाई की मांग कर रहे थे किंतु सुल्तान इब्राहीम अमीरों की इस मांग को मानने के लिए तैयार नहीं था। अंततः दोनों पक्षों में भयानक संग्राम छिड़ गया।

अहमद यादगार ने अपने ग्रंथ मखजाने अफगना में इस युद्ध का वर्णन करते हुए लिखा है-

‘लाशों के ढेर लग गए और युद्धक्षेत्र उनसे ढक गया, पृथ्वी पर पड़े हुए सिरों की संख्या कल्पनातीत थी। मैदान में रक्त की नदियां बहने लगीं और इसके बाद दीर्घकाल तक, जब भारत में कोई भयंकर युद्ध हुआ तो लोग यही कहते थे कि किसी भी युद्ध की तुलना इस युद्ध से नहीं की जा सकती।

इसमें भाई ने भाई और पिता ने पुत्र के विरुद्ध तलवारों से युद्ध किया। धनुष-बाण अलग फैंक दिए गए। भालों, तलवारों, चाकुओं और बरछों से नरसंहार हुआ। अंत में इब्राहीम की विजय हुई। उसने विद्रोहियों को परास्त किया। इस्लाम खाँ मारा गया और सैय्यद खाँ बंदी बना लिया गया। जो लोग सुल्तान के प्रति वफादार रहे, उन्हें पुरस्कृत किया गया। बागियों की जागीरें छीनकर, अपने पक्ष के अमीरों को दे दी गईं।’

तुर्की अमीरों की बगावत को कुचलने में मिली सफलता ने इब्राहीम लोदी को और भी अधिक अहंकारी तथा धृष्ट बना दिया। सुल्तान के दुर्भाग्य से आजम हुमायूं शेरवानी तथा कुछ अमीरों की कैद में ही मृत्यु हो गई इस कारण चारों तरफ फिर से सुल्तान के विरुद्ध वातावरण बनने लगा।

 बिहार में सूबेदार दरिया खाँ लोहानी, खानेजहाँ लोदी, मियां हुसैन करमाली तथा अन्य अमीरों ने विद्रोह कर दिया। जब सुल्तान ने चंदेरी पर घेरा डाला तब सुल्तान ने मियां हुसैन करमाली की हत्या करवा दी। इससे बागी अमीरों को यह विश्वास हो गया कि जब तक इब्राहीम सुल्तान के तख्त पर बैठा है, तब तक हमारा जीवन सुरक्षित नहीं है। इसलिए वे इब्राहीम को सुल्तान के पद से हटाने के उपाय सोचने लगे। इस प्रकार तुर्की अमीरों की बगावत पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई।

उन्हीं दिनों बागियों के नेता दरियां खाँ लोदी की मृत्यु हो गई जो बिहार का सूबेदार था। उसके पुत्र बहादुर खाँ ने स्वयं को बिहार का सुल्तान घोषित कर दिया तथा मुहम्मदशाह की उपाधि धारण कर ली। जब दूसरे अमीरों को इस बगावत के बारे में पता लगा तो वे सुल्तान का साथ छोड़कर बिहार पहुंचने लगे तथा बहादुर खाँ के हाथ मजबूत करने लगे।

देखते ही देखते बहादुर खाँ की सेना में एक लाख घुड़सवार एकत्रित हो गए। उसने बिहार से लेकर संभल तक के समस्त प्रदेश पर अपना अधिकार जमा लिया। गाजीपुर का सूबेदार नासिर खाँ लोहानी भी उससे जा मिला। इस पर इब्राहीम लोदी एक सेना लेकर इस विद्रोह को दबाने की तैयारियां करने लगा।

उन दिनों पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोदी का पुत्र गाजी खाँ दिल्ली में रहा करता था। वह चुपचाप दिल्ली से निकल गया तथा अपने पिता के पास पहुंचकर बोला कि यदि इब्राहीम ने बिहार के सूबेदार बहादुर खाँ को परास्त कर दिया तो वह आपको भी अवश्य ही पंजाब से हटा देगा।

इस पर दौलत खाँ भी बगावत पर उतर आया तथा उसने अपना दूत समरकंद के शासक बाबर के पास भेजा। दौलत खाँ लोदी ने बाबर से कहलवाया कि इस समय यदि बाबर दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण करता है तो वह बड़ी आसानी से भारत पर अधिकार कर सकता है क्योंकि दिल्ली सल्तनत का एक भी अमीर इब्राहीम लोदी के पक्ष में नहीं है।

दौलत खाँ का मानना था कि यदि बाबर भारत पर आक्रमण करता है तो वह भी अपने पूर्वज चंगेज खाँ तथा तैमूर लंग की तरह दिल्ली को लूटकर और हिन्दुओं को मारकर वापस अपने देश लौट जाएगा। इसके बाद दौलत खाँ पंजाब में शांति के साथ राज्य कर सकेगा किंतु दौलत खाँ का सोचना गलत था।

उन्हीं दिनों इब्राहीम लोदी का चाचा आलम खाँ भी इब्राहीम लोदी से विद्रोह करके स्वयं सुल्तान बनने के प्रयास करने लगा। उसने भी बाबर के पास पत्र भिजवाकर उसे भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया।

आधुनिक काल के बहुत से लेखकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मेवाड़ के महाराणा सांगा ने दिल्ली सल्तनत पर अधिकार करने की नीयत से बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया किंतु इन लेखकों के पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है।

महाराणा सांगा तो स्वयं ही मालवा, गुजरात, दिल्ली एवं नागौर की मुस्लिम शक्तियों को देश से बाहर निकालने का स्वप्न देख रहा था और लगातार युद्ध कर रहा था, ऐसी स्थिति में वह एक और मुस्लिम शक्ति को भारत में कैसे आमंत्रित कर सकता था?

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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