हाल ही में पाकिस्तान में आतंकवादियों के विरुद्ध भारतीय कार्यवाही के दौरान किराना पहाड़ी पर ब्रह्मोस मिसाइलों के गिरते ही अमरीका जिस तरह फड़फड़ाया, उसे सुनकर यह संशयह होता है कि पाकिस्तान का परमाणु बम किसका है!
क्या किराना पहाड़ी में रखे परमाणु बम अमरीका के हैं? क्या अमरीका ने ये बम भारत की छाती पर पांव रोपने के लिए रखे हुए हैं?
इस विषय पर बात करने से पहले एक दृष्टि परमाणु बम के इतिहास पर डालते हैं।
दुनिया में पहले परमाणु बम का परीक्षण 16 जुलाई 1945 को अमरीका द्वारा किया गया था। उस समय दुनिया में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और अमरीका तथा यूरोप युद्ध हारने के कगार पर थे!
6 अगस्त 1945 को अमरीका ने जापान के हिरोशिमा नगर पर लिटिल बॉय नामक परमाणु बम गिराया और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर फैट बॉय नामक परमाणु बम फोड़ा।
इन परमाणु बमों के गिरते ही दूसरा विश्व युद्ध तो समाप्त हो गया किंतु इन बमों से हुए विनाश को देखकर पूरी दुनिया में परमाणु बम की दहशत व्याप्त हो गई।
इस कारण तब से लेकर आज तक संसार के किसी भी देश ने अपने किसी भी शत्रु पर परमाणु बम नहीं फोड़ा है किंतु उसके बाद पूरी दुनिया परमाणु बम विकसित करने की होड़ में लग गई ताकि उसे किसी अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देश के दबाव में आने या उससे डरने की आवश्यकता नहीं रहे।
1949 में अमरीका ने कनाडा तथा कुछ यूरोपीय देशों को अपने साथ मिलाकर नाटो का गठन किया। इसके बाद अमरीका ने इन नाटो देशों में अपने परमाणु बम छिपा दिए ताकि जरूरत के समय वह अपने परमाणु बमों का उपयोग चीन और रूस के विरुद्ध कर सके। आज अमरीका ने अपने 100 परमाणु बम छः नाटो देशों में छिपा रखे हैं जिनमें जर्मनी, इटली, तुर्की, बेल्जियम, नीदरलैंड और बेलारूस शामिल हैं।
यह सही है कि भारत की आजादी में अमरीका की भी कुछ भूमिका थी किंतु जब भारत स्वतंत्र हो गया और उसके दो-तीन टुकड़े हो गए, तब अमरीका ने कभी नहीं चाहा कि भारत विकसित हो तथा एक मजबूत देश बने।
उस समय भारत अमरीका का सड़ा हुआ गेहूं खरीद कर खाता था किंतु इंदिरा गांधी ने ऑस्ट्रेलिया के कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलोग से सहयोग लेकर भारत में गेहूं की बौनी प्रजातियां विकसित कीं तथा भारत को अमरीका से गेहूं लेने की आवश्यकता समाप्त हो गई।
इससे अमरीका को बड़ी बौखलाहट हुई तथा अमरीका के दो राष्ट्रपतियों हेनरी किसंजर तथा रिचर्ड निक्सन ने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए अपमान जनक शब्द कहे तथा उन्हें बूढ़ी चुड़ैल तक कहा। जब 1971 में भारत पाकिस्तान के बीच बड़ा युद्ध लड़ा गया तब अमरीका ने पाकिस्तान की सहायता की तथा भारत को धमकाया। हालांकि रूस द्वारा भारत का पक्ष लिए जाने के कारण अमरीका भारत के विरुद्ध कुछ नहीं कर सका।
इस युद्ध के लगभग ढाई साल बाद 18 मई 1974 को भारत ने अपना पहला परमाणु बम परीक्षण किया। उस समय तक रूस, इंगलैण्ड, फ्रांस तथा चीन भी परमाणु बम बना चुके थे और भारत इस शृंखला में छठा देश था।
अमरीका की बौखलाहट और अधिक बढ़ गई। वह कभी नहीं चाहता था कि भारत के पास कभी भी परमाणु क्षमता आए। इसलिए अमरीका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए तथा पाकिस्तान को अरबों डॉलर्स की आर्थिक सहायता प्रदान की ताकि वह भारत के विरुद्ध एक मजबूत शत्रु के रूप में उभर सके।
भारत के बाद पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ही ऐसे देश हैं जो बड़े जोर-शोर से दावा करते हैं कि उनके पास भी अपने बनाए हुए एटम बम हैं। दुनिया भर में बड़े विश्वास के साथ यह माना जाता है कि इजरायल के पास भी परमाणु हथियार हैं, किंतु इजराइल कभी भी अपने पास परमाणु बम होने का दावा नहीं करता।
भारत के परमाणु परीक्षण के दस साल बाद वर्ष बाद 1984 के अंत में पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भी परमाणु विस्फोट करने की क्षमता प्राप्त कर ली है।
क्या यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि आज तक ईरान, तुर्की, जर्मनी और इटली जैसे देश परमाणु विस्फोट करने की क्षमता अर्जित नहीं कर पाए जबकि पाकिस्तान जैसे पिद्दी देश ने यह क्षमता प्राप्त कर ली।
क्या पाकिस्तान का परमाणु बम अमरीका की ही कोई चाल थी? क्या अमरीका ने ही पाकिस्तान का परमाणु बम बनवाया या फिर अमरीका ने पाकिस्तान में अपने परमाणु बम रखकर उसे पाकिस्तान का परमाणु बम कहा?
1984 में पाकिस्तान ने यह दावा किया कि उसने परमाणु विस्फोट करने की क्षमता प्राप्त कर ली है, इस दावे के लगभग एक साल पहले अर्थात् 1983 में अमरीका ने पूरी दुनिया के सामने यह प्रचारित किया कि पाकिस्तान के वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कादिर खान ने नीदरलैण्ड से परमाणु बम को बनाने की विधि चुराई है।
अमरीका ने यह भी दावा किया कि अब्दुल कादिर खान ने ही एम्सटर्डम से यूरेनियम संवर्द्धन की तकनीक भी चुराई है।
अब्दुल कादिर खान ई.1972 से 75 के बीच एम्सटरडम में फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी में काम करता था। अमरीका ने दावा किया कि उसी समय अब्दुल कादिर ने यूरेनियम संवर्द्धन के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाईं तथा ई.1976 में नीदरलैंड के यूरेंका ग्रुप की प्रयोगशालाओं से कुछ गोपनीय दस्तावेज चुराकर पाकिस्तान भाग आया और उसने पाकिस्तान में यूरेनियम संवर्द्धन प्लांट विकसित किया।
यह एक हैरान करने वाली बात थी कि अब्दुल कादिर ने एम्सटरडम से यूरेनियम संवर्द्धन की तकनीक वर्ष 1972 से 75 के बीच चुराई तथा नीदरलैण्ड से परमाणु बम बनाने की तकनीक वर्ष 1976 में चुराई। उस पर आरोप 1983 में लगा। इस आरोप के एक साल के भीतर ही पाकिस्तान ने दावा कर दिया कि अब पाकिस्तान ने भी परमाणु विस्फोट करने की क्षमता प्राप्त कर ली है।
पूरा मामला फिल्मी ड्रामे की स्क्रिप्ट जैसा लगता है किंतु पाकिस्तान के दावे को दुनिया के किसी भी देश ने अस्वीकार नहीं किया। इस कारण पाकिस्तान को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश मान लिया गया तथा उसके बाद से जब कभी भी भारत पाकिस्तानी आतंकवाद के विरुद्ध कोई कदम उठाता है तो पाकिस्तान, भारत पर परमाणु बम फैंकने की धमकी देता है और भारत उसके दबाव में आ जाता है।
अमरीका द्वारा पूरी दुनिया में यह प्रचार किया जाता है कि पाकिस्तान के परमाणु बमों का बटन पाकिस्तानी सेना के पास है तथा पाकिस्तान की सेना आतंकवाद के अंतर्राष्ट्रीय सरगनाओं द्वारा नियन्त्रित होती है। इस कारण पाकिस्तान की सेना, पाकिस्तान की सरकार को अंधेरे में रखकर कभी भी कोई खतरनाक कदम उठा सकती है।
वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भारत ने दूसरा परमाणु बम विस्फोट परीक्षण किया जिससे तिलमिलाकर अमरीका ने भारत पर कई प्रकार के व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए किंतु जब इन प्रतिबंधों से अमरीका को ही नुक्सान हुआ तो ये प्रतिबंध हटा दिए गए।
यही कारण है कि 1984 से लेकर 2024 तक की चालीस साल की अवधि में भारत की कार्यवाहियां पाकिस्तानी आतंकवाद के विरुद्ध सदैव कमजोर दिखाई देती हैं। परमाणु बम के भय के चलते ही अटल बिहारी वाजपेयी ने कारगिल युद्ध के दौरान अपने भारत के सवा डेढ़ हजार सैनिकों को मरवा लिया किंतु उन्होंने भारतीय सेना को पाकिस्तान में घुसकर पाकिस्तानी सैनिकों एवं आतंकियों को मारने की अनुमति नहीं दी।
पाकिस्तान के परमाणु बम का भय दिखाकर अमरीका पूरे चालीस साल तक भारत पर दादागिरी करता रहा। अमरीका ने मानवाधिकार संगठन का गठन किया और उसके माध्यम से भारत की संस्कृति को नष्ट करने का घिनौना खेल खेला। इसी मानवाधिकार संगठन की आड़ में भारत में चुनावी राजनीति को प्रभावित किया गया।
नरेन्द्र मोदी की वर्तमान सरकार पिछले आम चुनावों में इसी षड़यंत्र का शिकार होकर पूर्ण बहुमत प्राप्त करने से वंचित हुई हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प स्वयं इस घिनौने खेल का खुलासा कर चुके हैं कि मानवाधिकार संगठन द्वारा बांगलादेश के नाम पर भारत में पैसा भेजा गया और उसका दुरुपयोग भारत के आम चुनावों को प्रभावित करने में हुआ।
वर्ष 2025 में पाकिस्तान के बुरे आए और 22 अप्रेल 2025 को पाकिस्तान के आतंकियों ने भारत में घुसकर पहलगाम में 27 भारतीयों की हत्या कर दी। इसके बाद अमरीका ने घड़ियाली सहानुभूति दिखाते हुए कहा कि भारत को पूरा अधिकार है कि वह इस आतंकी हमले का बदला ले।
इस समय तक अमरीका यही सोचता रहा कि पाकिस्तानी परमाणु बमों के भय से भारत कभी भी पाकिस्तान पर हमला नहीं करेगा किंतु जैसे ही भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध पहली कार्यवाही की, अमरीका के सुर बदल गए।
अमरीका के उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं पड़ेंगे। जब भारत की मिसाइलें नूरखान एयरबेस से कुछ ही दूर किराना पहाड़ियों पर बम गिरने लगीं तो अमरीका बुरी तरह फड़फड़ा गया।
इसी फड़फड़ाहट के कारण ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच तुरंत सीज फायर का दबाव बनाना आरम्भ किया। भारत तो वैसे भी तब तक जो करना था, कर चुका था। इसलिए जब पाकिस्तान ने कार्यवाही बंद कर दी तो भारत ने भी बंद कर दी।
सीज फायर तो हो गया किंतु भेड़िए की खाल में बैठी भेड़ का मालिक भी दुनिया को दिखाई दे गया।
हो सकता है कि मेरी बात न्यूनाधिक मात्रा में या पूरी तरह गलत हो किंतु यदि 1945 से लेकर 2025 तक के संसार भर में परमाणु शक्ति के इतिहास, भारत अमरीका और पाकिस्तान के बीच बनते-बिगड़ते सम्बन्ध तथा हाल ही में हुए घटनाक्रमों की कड़ियां आपस में जोड़ी जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है कि पाकिस्तान का परमाणु बम वास्तव में अमरीका का ही कोई घिनौना खेल हो!
प्रकृति का नियम है कि झूठ हर समय नहीं जीत सकता। एक न एक दिन सच की सफदेली झूठ के काले अंधेरे को चीर कर सामने आ ही जाती है। पाकिस्तान का परमाणु बम भी एक दिन पूरी सच्चाई के साथ दुनिया के सामने आकर रहेगा। हमें समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। वर्तमान समय में तो हमें भारत सरकार की तेजी से बदलती हुई विदेश एवं रक्षा नीतियों का आनंद लेना चाहिए तथा उनका समर्थन करना चाहिए।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता