भगवान बुद्ध कौन थे? यह प्रश्न अटपटा सा लगता है किंतु वैदिक ऋषि भगवान गौतम बुद्ध और शाक्यमुनि गौतम बुद्ध हिन्दू धर्म के इतिहास की ऐसी पहेली बन गए हैं जिसे सुलझाना बहुत कठिन है किंतु यदि हिन्दू धर्म के अवतारवाद के दर्शन को अच्छी तरह से समझ लिया जाए तो यह गुत्थी बड़ी सरलता से सुलझ जाती है कि वैदिक ऋषि भगवान बुद्ध और शाक्यमुनि गौतम बुद्ध अलग-अलग हैं!
भारत के स्थापित इतिहास में शाक्य मुनि सिद्धार्थ गौतम को गौतम बुद्ध एवं भगवान बुद्ध भी लिखा जाता है। इस कारण सनातनी धर्मावलम्बी एवं बौद्ध मतावलम्बी दोनों ही, शाक्यमुनि गौतम बुद्ध एवं भगवान गौतम बुद्ध को एक ही व्यक्ति मानते हैं किंतु वास्तव में ये एक व्यक्ति नहीं हैं, दो हैं।
आज से लगभग 100 साल पहले तक इतिहासकारों ने गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी को भी एक ही व्यक्ति मानकर प्राचीन भारत का इतिहास लिखा था। इस असमंजसता का कारण सिद्धार्थ गौतम एवं महावीर स्वामी, इन दोनों राजकुमारों के नाम, जन्म-काल, जन्म-स्थल, राजकुल, माता-पिता, इनके द्वारा प्रतिपादित दर्शनों का वैदिक धर्म से विरोध आदि तथ्य बहुत ही समानता रखते थे।
आगे चलकर जैसे-जैसे गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी का इतिहास सामने आता गया, वैसे-वैसे यह स्थापित होता चला गया कि बुद्ध और महावीर एक व्यक्ति नहीं थे, ये दो थे एवं अलग-अलग थे और बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म की स्थापना एक व्यक्ति ने नहीं की थी, दो अलग-अलग व्यक्तियों ने की थी।
ऐसा और भी मामलों में देखा गया है कि एक ही नाम के दो महापुरुष अथवा अवतार हो जाते हैं। ऋषि जमदग्नि के पुत्र का नाम भी राम है और राजा दशरथ के पुत्र का नाम भी राम है। इसलिए इन्हें अलग-अलग पहचानने के लिए जमदग्नि के पुत्र को परशुराम कहा गया।
राम और परशुराम की तरह ही, शाक्य मुनि गौतम बुद्ध एवं भगवान गौतम बुद्ध एक व्यक्ति के दो नाम नहीं थे, अपितु ये दोनों नाम दो अलग-अलग व्यक्तियों के थे जो आपस में एक जैसे प्रतीत होने के कारण एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं।
जो भगवान गौतम बुद्ध, भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, वे शाक्य मुनि गौतम बुद्ध अर्थात् सिद्धार्थ गौतम से अलग हैं।
दार्शनिक आधार पर भी, शाक्य मुनि गौतम बुद्ध अथवा सिद्धार्थ गौतम भगवान विष्णु के अवतार हो भी नहीं सकते क्योंकि विष्णु तो वेदों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं जबकि शाक्य मुनि गौतम बुद्ध ने वेदों को स्वीकार नहीं किया। विष्णु तो यज्ञ की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं, जबकि शाक्य मुनि गौतम बुद्ध ने यज्ञों का विरोध किया। इस तथ्य से यह पहेली सुलझती हुई लगती है किभगवान बुद्ध कौन थे?
भगवान विष्णु तो ब्राह्मणों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं, जबकि शाक्य मुनि गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणों द्वारा अर्जित सम्पूर्ण ज्ञान, उनके द्वारा बनाए गए वर्ण-विधान एवं कर्मकाण्ड आदि समस्त बातों का विरोध किया। भगवान विष्णु तो परमात्मा माने जाते हैं जिनसे समस्त आत्माओं का निर्माण होता है जबकि शाक्य मुनि गौतम बुद्ध ने तो परमात्मा एवं आत्मा के बारे में कोई बात नहीं की।
भगवान विष्णु का दर्शन आत्मदीपो भव के सिद्धांत पर खड़ा है जिसका अर्थ होता है, आत्मा को प्रकाशित करो जबकि बुद्ध का दर्शन अप्प दीपो भव के सिद्वांत पर खड़ा है जिसका अर्थ होता है स्वयं दीपक बन जाओ। इन दो अलग विचारों से भी यह पहेली सुलझती हुई लगती है किभगवान बुद्ध कौन थे?
विष्णु रूपी परमात्मा से उत्पन्न आत्माएं तो देह छोड़ने के बाद मोक्ष प्राप्त करती हैं जबकि शाक्य मुनि गौतम बुद्ध के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों से इसी देह में निर्वाण प्राप्त कर लेता है।
ऐसी स्थिति में शाक्यमुनि गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार कैसे माना जा सकता है! निश्चित रूप से भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले गौतम बुद्ध, शाक्यमुनि गौतम बुद्ध से अलग हैं। और यह प्रश्न अनुत्तरित नहीं रह जाता कि भगवान बुद्ध कौन थे?
पुराणों में विष्णु के दस अवतार मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बलराम एवं कल्कि बताए गए हैं। कुछ ग्रंथों में बलराम के स्थान पर विष्णु के मोहिनी अवतार को सम्मिलित किया गया है तो कुछ ग्रंथों में गौतम बुद्ध को नौंवा अवतार माना गया है किंतु दशावतारों की सूची के गौतम बुद्ध शाक्य मुनि गौतम बुद्ध से अलग हैं।
वर्तमान समय में हिन्दुओं में यह धारणा प्रचलित है कि चूंकि हिन्दू धर्म बहुत उदार है इसलिए भगवान को न मानने वाले गौतम बुद्ध को भी हिन्दुओं ने विष्णु का नौवां अवतार मान लिया है जबकि यह धारणा पूरी तरह से गलत है।
शाक्य मुनि गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के अवतार नहीं हैं, इस बात का आभास तो इस बात से ही हो जाना चाहिए कि विष्णु के दशावतारों की सूची में वेदों को न मानने वाले भगवान महावीर अथवा उनसे पहले के किसी भी जैन तीर्थंकर का नाम नहीं है। फिर वेदों को न मानने वाले गौतम बुद्ध का नाम दशावतारों की सूची में क्यों होता? अतः निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि दशावतारों की सूची के भगवान गौतम बुद्ध शाक्य मुनि गौतम बुद्ध से अलग हैं।
सनातन धर्म में गौतम नामक दो बड़े ऋषि हुए हैं। पहले गौतम आज से लगभग सात हजार साल पहले भगवान राम के काल में हुए थे जिनकी नारी को भगवान राम ने सामाजिक अपवाद से मुक्त किया था। इन गौतम ऋषि का नाम वेदों में मिलता है। इन्होंने वैदिक ऋचाएं की रचना भी की थी।
आज से लगभग पांच हजार साल पहले, सनानत हिन्दू धर्म में गौतम नामक एक और महान् ऋषि हुए जो क्षीरसागर में अनंत-शयन करने वाले अर्थात् शेषनाग की शैया पर शयन करने वाले विष्णु के नौंवे अवतार माने गए। इन्होंने गौतम धर्म सूत्र की रचना की थी जिसमें वर्ण व्यवस्था के नियम निर्धारित किए गए। षड्दर्शनों में से एक न्याय दर्शन के प्रणेता भी यही गौतम हैं। गौतम के कई हजार साल बाद मनु नामक जिस ऋषि ने मनुस्मृति की रचना की थी, उस मनुस्मृति का आधार भी इन्हीं गौतम ऋषि द्वारा रचित गौतम धर्मसूत्र है।
न्याय दर्शन एवं गौतम धर्मसूत्र के रचयिता गौतम ऋषि ने यज्ञों में बलि देने की प्रथा को अनुचित बताया तथा उसे जीव-हिंसा कहा। उनके प्रभाव से यज्ञों में पशु-बलि का प्रचलन बहुत से क्षेत्रों में बंद हो गया। समाज पर गौतम के व्यापक प्रभाव के कारण ही उन्हें भगवान विष्णु का नौंवा अवतार स्वीकार किया गया तथा उन्हें भगवान गौतम बुद्ध कहा गया। उनकी माता का नाम अंजना और पिता का नाम हेमसदन था। भगवान गौतम बुद्ध का जन्म बिहार प्रांत के ‘गया’ नामक स्थान पर हुआ था जिसे हिन्दुओं का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है।
न्याय दर्शन एवं गौतम धर्मसूत्र के रचयिता गौतम ऋषि के लगभग ढाई हजार साल बाद अर्थात् आज से ठीक ढाई हजार साल पहले हुए शाक्य राजा शुद्धोदन एवं उनकी महारानी माया के पुत्र के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उन्होंने भी जीवहिंसा को बहुत बड़ा पाप बताया तथा मानव मात्र के लिए अहिंसा के मार्ग पर चलने का निर्देशन किया। उन्हें शाक्य मुनि गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया।
शाक्य गौतम बहुत ही कठोर साधक एवं परम ज्ञानी हुए। उन्होंने कठिन तपस्या के बाद तत्त्वानुभूति की और वे बुद्ध कहलाए। शाक्य मुनि को उनके शिष्यों ने तथागत कहा तथा हिन्दुओं ने उन्हें आगे चलकर वैदिक ऋषि भगवान गौतम बुद्ध से जोड़ दिया।
बौद्ध दर्शन में भगवान जैसा कोई अस्तित्व है ही नहीं, अतः इस बात को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि शाक्य गौतम के लिए भगवान शब्द का प्रयोग बौद्धों ने नहीं, हिन्दुओं ने किया।
श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21वें अध्याय के पृष्ठ संख्या 178 पर उल्लेख है कि संयोगवश शाक्य मुनि गौतम बुद्ध ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया।
जर्मन इतिहासकार मैक्स मूलर के अनुसार शाक्य सिंह बुद्ध अर्थात गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के लुम्बिनी के वनों में ईस्वी पूर्व 477 में हुआ था। अर्थात् शाक्य मुनि केवल ढाई हजार साल पहले हुए। जबकि सनातन धर्म के भगवान बुद्ध आज से 5000 वर्ष पहले बिहार के ‘गया’ नामक स्थान में प्रकट हुए थे।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1/3/24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरती पर आए। मैक्समूलर के अनुसार गौतम बुद्ध ईस्वी पूर्व 477 में अर्थात् आज से ठीक 2501 साल पहले आए।
इस प्रकार काल की भिन्नता के आधार पर भी सिद्ध होता है कि सनातन धर्म के भगवान बुद्ध और शाक्य मुनि गौतम बुद्ध एक नहीं हैं।
श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार भगवान हिन्दुओं के भगवान बुद्ध और बौद्धों के गौतम बुद्ध दोनों अलग-अलग काल में जन्मे अलग-अलग व्यक्ति थे।
सनातन धर्म में जिन भगवान गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है, उनका जन्म मगध के कीकट प्रदेश में ब्राह्मण कुल में हुआ था जबकि उनके जन्म के ढाई हजार वर्ष बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध, क्षत्रिय राजकुमार थे।
ब्राह्मणों ने ही सनातन धर्म के गौतम बुद्ध को भगवान का अवतार घोषित करके उन्हें पूजने की शुरुआत की थी। ब्राह्मण कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे शाक्य मुनि से अलग हैं। जिस गौतम ऋषि का उल्लेख वेदों में हुआ है, वही सनातनियों के भगवान बुद्ध हैं। उन्हें ही भगवान का अंशावतार माना जाता था। इन्हीं गौतम बुद्ध की चर्चा श्रीमद्भागवत में भी हुई है जो कि ब्राह्मण कुल जन्मे थे।
उज्जैन के पहली शताब्दी ईस्वी के आसपास उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक अमरसिंह ने अमरकोष नामक संस्कृत ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में भगवान बुद्ध के 10 और गौतम बुद्ध के पांच पर्यायवाची नामों को एक ही क्रम में लिखा गया है। इस कारण हिन्दुओं को बुद्ध के नाम पर भ्रम हुआ तथा भगवान बुद्ध एवं शाक्य गौतम को एक ही मान लिया गया।
अमरकोष के रचयिता को यह भ्रम गौतम शब्द के कारण हुआ जो दोनों नामों में जुड़ा हुआ है। वेदों के गौतम ऋषि का गोत्र गौतम था और संभवतः शाक्य क्षत्रिय राजकुमार सिद्धार्थ का गोत्र भी गौतम था। इसी कारण अमर कोष के रचयिता को यह भ्रम हुआ।
अग्निपुराण में भगवान बुद्ध को लंबकर्ण अर्थात् लम्बे कान वाला कहा गया है। इस कारण शाक्य मुनि की प्रतिमाओं में भी लम्बे कान बनाए जाने लगे।
वाल्मीकि रामायण में बुद्ध को चोर कहा गया है-
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड के 109वें सर्ग के चौतीसवें श्लोक में बुद्ध का उल्लेख इस प्रकार हुआ है- ‘यथा हि चोरः तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि।’
अर्थात् ‘बुद्ध यानी जो नास्तिक है और नाम मात्र का बुद्धिजीवी है, वह चोर के समान दंड का अधिकारी है।’ निश्चित रूप से यह श्लोक रामायण में बहुत बाद में जोड़ा गया है। फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि यदि तथागत बुद्ध को भगवान राम का अवतार मान लिया गया होता तो उन्हें वाल्मीकि रामायण में चोर के समान दण्ड का भागी नहीं कहा गया होता। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि रामायण में तथागत बुद्ध नाम लिखा गया है न कि गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध।
इस विवेचन से यही निष्कर्ष निकलता है कि जिन वैदिक ऋषि गौतम को सनातनियों ने विष्णु का अवतार मानकर भगवान बुद्ध कहा, उनका काल पांच हजार साल पहले का है। शाक्य मुनि तथागत गौतम जिनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था, उन्हें नाम की एकता के कारण हिन्दुओं ने भगवान बुद्ध मान लिया है जिनका काल आज से लगभग ढाई हजार साल पहले का था। ऐसी और भी बहुत सी बातें यह गुत्थी सुलझाने में सहायता करती है कि भगवान बुद्ध कौन थे?
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता