भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास का लेखन विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों के आधार पर किया गया है।
‘भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति’ विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृतियों में से एक है। इसके उद्भव के समय दक्षिणी अमरीका की माया सभ्यता, अफ्रीका में नील नदी के किनारे विकसित मिश्र की सभ्यता और एशिया में विकसित सुमेरियन सभ्यताएं ही कर सकती हैं। जिनमें से माया सभ्यता और सुमेरियन सभ्यताएं अब काल के गाल में समा चुकी हैं।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास पुस्तक में मनुष्य द्वारा भारत में विकसित प्रस्तर युगीन सभ्यताओं से लेकर वर्तमान काल की सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास लिखा गया है। पुस्तक में सभ्यता एवं संस्कृति की परिभाषाएं, सभ्यता एवं संस्कृति में अंतर, भारतीय संस्कृति की विशेषताएं तथा भारतीय संस्कृति के इतिहास को जानने के साधनों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है।
भारत में आर्य सभ्यता के प्रसार से पहले पाषाण, ताम्र एवं कांस्य कालीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का विकास हुआ। इन सभ्यताओं के संवाहक सैन्धववासी द्रविड़ एवं वनवासी कोल, किरात मुण्डा आदि जनजातियों के लोग थे। माना जाता है कि भारत में लोहे का सर्वप्रथम परिचय आर्यों से हुआ तथा आर्यों ने ही भारत में कृष्ण-अयस अथवा लोहे की संस्कृति को जन्म दिया।
सिंधु सभ्यता अत्यंत सुविकसित सभ्यता थी जिसने सुसंस्कृत समाज को जन्म दिया। इस समाज के पास धर्म, अर्थ, युद्धकौशल, धातु-विज्ञान, मूर्ति-कला, नृत्य-कला, लिपि, माप-तोल आदि का ज्ञान था। आर्यों ने जिस संस्कृति को जन्म दिया वह वैदिक ज्ञान पर आधारित थी तथा वही ज्ञान विकसित होता हुआ वर्तमान सभ्यता की आत्मा बना हुआ है। आर्यों की सभ्यता यद्यपि धर्म-प्रधान सभ्यता थी तथापि आर्य युद्ध कौशल, शिल्प, कृषि एवं पशुपालन की दृष्टि से भी श्रेष्ठ थे।
उन्होंने विपुल धर्म-ग्रंथों की रचना की जो अन्य संस्कृतियों में मिलने दुर्लभ हैं। आर्यों ने वर्ण व्यवस्था को जन्म दिया जो आगे चलकर जाति व्यवस्था के रूप में विकसित हुई। आर्यों की आश्रम व्यवस्था संसार की सबसे अद्भुत सामाजिक एवं आध्यात्मिक व्यवस्था थी जो मनुष्य को आजीवन सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्ग दिखाती थी।
पुस्तक में सिक्ख धर्म एवं इस्लाम का भी समुचित विवेचन किया गया है। विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों की मांग के अनुसार पुस्तक के अंत में भारतीय कला, साहित्य, मंदिर, राजनीतिक पुनर्जागरण, भारत के प्रमुख वैज्ञानिक एवं भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य प्रभाव का भी विवेचन किया गया है। आशा है यह पुस्तक विश्वविद्यालयों में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति विषयक पाठ्यक्रम की आवश्यकता को पूरा करने वाली सिद्ध होगी।
इस पुस्तक में निम्नलिखित अध्याय सम्मिलित किए गए हैं-
- सभ्यता एवं संस्कृति का अर्थ
- भारतीय संस्कृति के प्रधान तत्त्व एवं विशेषताएँ
- भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास को जानने के साधन
- भारत की पाषाण सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ
- भारत में ताम्राश्म संस्कृतियाँ
- सैन्धव सभ्यता, धर्म एवं समाज
- भारत में लौह युगीन संस्कृति
- दक्षिण भारत में महा-पाषाण संस्कृति
- वैदिक सभ्यता एवं साहित्य
- ऋग्वैदिक समाज एवं धर्म
- उत्तर-वैदिक समाज एवं धर्म
- उपनिषदों का चिंतन
- महाकाव्यकाल में भारतीय संस्कृति तथा रामायण एवं महाभारत का प्रभाव
- श्रीमद्भगवत्गीता का धर्म-दर्शन
- जैन-धर्म तथा भारतीय संस्कृति पर उसका प्रभाव
- बौद्ध धर्म तथा भारतीय संस्कृति पर उसका प्रभाव
- पौराणिक धर्म अथवा वैष्णव धर्म का उदय एवं विकास
- शैव एवं शाक्त धर्म
- संगम युग का साहित्य, समाज एवं संस्कृति
- इस्लाम का जन्म एवं प्रसार
- भारत में सूफी मत
- सिक्ख धर्म एवं उसका इतिहास
- प्राचीन भारत में शिक्षा का स्वरूप एवं प्रमुख शिक्षा केन्द्र
- आर्यों की वर्ण व्यवस्था
- हिन्दुओं की जाति-प्रथा
- भारत में परिवारिक जीवन
- संस्कार
- पुरुषार्थ-चतुष्टय
- आर्यों की आश्रम-व्यवस्था
- समाज में नारी की युग-युगीन स्थिति
- जगद्गुरु शंकराचार्य एवं उनका दर्शन
- भारत का मध्य-कालीन भक्ति आंदोलन
- मध्य-कालीन भारतीय समाज
- भारतीय कलाएँ
- भारतीय मूर्ति-कला
- भारतीय वास्तु एवं स्थापत्य कला
- दक्षिण भारत का मन्दिर स्थापत्य
- भारत की चित्रकला
- भारतीय साहित्यिक विरासत
- उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के समाज-सुधार आंदोलन
- राष्ट्रीय आंदोलन में तिलक, गांधी और सुभाषचंद्र बोस का योगदान
- भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य प्रभाव
- भारत के प्रमुख वैज्ञानिक