Monday, October 14, 2024
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रज्मनामाह (154)

अकबर ने कट्टर मुल्लाओं को महाभारत का फारसी अनुवाद तैयार करने पर लगा दिया। इसे फारसी में रज्मनामाह कहा जाता है। मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि मेरा भाग्य ही खराब था जो मुझे रज्मनामाह का अनुवाद करने के गंदे काम में लगना पड़ा।

 मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि इस काल में दक्षिण भारत से बहुत से काफिर आगरा आकर अकबर के दरबार में उपस्थित होने लगे। पाठकों की सुविधा के लिए बताना समीचीन होगा कि उस काल में दक्षिण में पांच शिया राज्य स्थापित थे और वहाँ पर शिया मुल्लाओं का बोलबाला था। उन्हें लगता था कि अब अकबर सुन्नी नहीं रहा है अपितु शिया पंथ में अधिक रुचि लेने लगा है।

जबकि अकबर के लिए सुन्नी मत की बातों में कम रुचि दिखाने का अर्थ यह कतई नहीं था कि अब वह शिया हो जाएगा। संभवतः मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी जैसे कट्टर मुल्लाओं ने अकबर के बारे में भारत की जनता में गलतफहमी पैदा कर दी थी कि अब वह सुन्नी नहीं रहा है, वह शिया या हिन्दू हो गया है।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि हिजरी 1000 अर्थात् ई.1591-92 पूरा होने को था। इस अवसर पर अकबर ने आदेश दिया कि इस्लाम के बादशाहों का इतिहास लिखा जाए। इस इतिहास में इतिहास-लेखन के वर्ष का भी उल्लेख किया जाए। इस कार्य का नाम अल्फी रखा गया। अकबर ने यह भी आदेश दिया कि हिजराह के स्थान पर रिहलत अर्थात् पलायन शब्द काम में लिया जाए और सात व्यक्तियों को नियुक्त कर दिया जाए जो पैगम्बर के निधन से लेकर आज तक संसार में हुई घटनाओं को लिखें।

इस प्रकार बादशाह के आदेश से सात मुस्लिम लेखक प्रारंभिक खलीफओं से लेकर अकबर के समय तक के मुसलमान बादशाहों का इतिहास लिखने में जुट गए। इन लेखकों में मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी भी एक था।

बदायूंनी लिखता है कि इसी साल अकबर ने हिंदुओं के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत का फारसी में अनुवाद करने के आदेश दिए। हिन्दू लोग इस ग्रंथ को पवित्र समझते हैं तथा मुसलमानों से छिपाकर रखते हैं। मुल्ला लिखता है कि अकबर ने जब शाहनामा एवं सत्रह खण्डों में अमीर हम्जा की कहानियों के फारसी अनुवाद पढ़े, जिन पर अकबर ने काफी सोना खर्च किया था, तो अकबर को लगा कि ये कोरी गप्पें हैं इसलिए अकबर ने हिंदुओं के महाभारत नामक ग्रंथ का अनुवाद करने के आदेश दिए ताकि अकबर को धर्म की सच्ची बातें ज्ञात हो सकें।

Teesra-Mughal-Jalaluddin-Muhammad-Akbar
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मुल्ला लिखता है कि अकबर ने सोचा कि यदि मैं महाभारत का फारसी में अनुवाद करवाने का पुण्य करूंगा तो मुझे बहुत सारी सम्पत्ति और बच्चे प्राप्त होंगे। इसलिए अकबर ने बहुत से हिन्दू विद्वानों को एकत्रित करके उनसे महाभारत की व्याख्या करने के लिए कहा तथा अकबर ने स्वयं भी कई रातों तक जागकर नकीब खाँ को महाभारत की व्याख्या समझाने का प्रयास किया ताकि नकीब खाँ उसका फारसी में सार तैयार कर सके।

मुल्ला लिखता है कि एक रात अकबर ने मुझे अपने पास बुलाया और मुझसे कहा कि मैं नकीब खाँ के साथ मिलकर महाभारत का अनुवाद करूं। इस पर मैंने तीन-चार महीने में अठारह पर्वों में से दो का अनुवाद कर दिया। मुल्ला लिखता है कि महाभारत के अठारह हजार पदों में इतनी बचकाना विसंगतियां थीं कि इन्हें जानकर आप हैरान होंगे। मुल्ला बदायूंनी ने नकीब खाँ के साथ मिलकर दो खण्डों का अनुवाद पूरा कर लिया।

मुल्ला लिखता है कि इस पुस्तक में मुझे ऐसे-ऐसे वार्तालाप पढ़ने को मिले, जिन्हें मैंने कभी किसी ग्रंथ में नहीं पढ़ा था, जैसे कि क्या मुझ अभक्ष्य चीजें खानी चाहिए, क्या मुझे कंद-मूल खाने चाहिए! मुल्ला लिखता है कि मेरा भाग्य ही खराब था जो मुझे ऐसे गंदे काम में लगना पड़ा।

फिर भी मैंने स्वयं को सांत्वना दी कि जो किस्मत में लिखा है, वह कार्य करना ही पड़ेगा। मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि इसके बाद मुल्ला शेरी और नकीब खाँ ने मिलकर महाभारत के कुछ भाग के अनुवाद का काम किया। शेष भाग थानेसर के सुल्तान हाजी ने खुद ही पूरा किया।

इसके बाद बादशाह ने शेख फैजी को आदेश दिया कि वह इन लोगों द्वारा किए गए महाभारत के अनुवाद को उच्च श्रेणी के गद्य एवं पद्य में बदल दे किंतु शेख फैजी केवल दो खण्डों का ही कार्य कर पाया। बाद में सुल्तान हाजी ने इन खण्डों का मूल से शब्दशः मिलान किया। इस प्रकार एक सौ पन्ने लिख लिए गए।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि इसके बाद सुल्तान हाजी को अकबर की सल्तनत से निकाल दिया गया और उसे बक्खर चले जाने के आदेश दिए गए। कुछ लोग उसके जाने के बाद भी अनुवाद के कार्य में लगे रहे। मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि जो मुस्लिम विद्वान कौरवों एवं पाण्डवों के इस अनुवाद कार्य में लगे हुए हैं, अल्लाह उन मुस्लिम विद्वानों का उद्धार करे तथा उन्हें पश्चाताप करने की शक्ति दे।

जब महाभारत के अनुवाद का कार्य पूरा हो गया तब इस कार्य को रज़्मनामाह कहा गया। इसे चित्रों से सजाया गया तथा उसके बाद इसकी नकलें तैयार करने का काम आरम्भ हुआ। बहुत से अमीरों ने रज्मनामाह की प्रतियां खरीदने के आदेश दिए। इस कारण इस ग्रंथ की कई प्रतिलिपियां तैयार की गईं।

मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि शेख अबुल फजल, ने कुरान की ‘कुर्सी’ आयत की व्याख्या लिखी थी। उसी अबुल फजल ने अब महाभारत के फारसी अनुवाद रज्मनामाह की प्रशंसा में एक खुतबा लिखा जो दो पन्ने लम्बा था। यह खुतबा कुफ्र के शब्दों से भरा हुआ था इसलिए हम उनसे बचने के लिए अल्लाह की शरण में दौड़े।

यह बताना समीचीन होगा कि रज्मनामाह फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘युद्ध की किताब’। अकबर के निर्देशन में तैयार की गई रज्मनामाह की मूल पाण्डुलिपि जयपुर में रखी है जिसमें 176 पेंटिंग मिली हैं। इनमें से 147 चित्रों को ई.1884 में यूरोपियन चित्रकार हालबीन हैण्डले द्वारा फिर से चित्रित किया गया। अर्थात् पुराने चित्रों को देखकर नए चित्र बनाए गए।

ई.1574 में अकबर ने फतहपुर सीकरी के महल में मकतबनामा की स्थापना की थी जिसमें रामायण, महाभारत एवं रजत-रंजनी आदि संस्कृत ग्रंथों का फारसी भाषा में अनुवाद करने का काम आरम्भ किया गया। माना जाता है कि महाभारत के 18 खण्डों में से कुछ भागों को ई.1584 से 1586 के बीच तैयार किया गया था और अंतिम पांच भागों को ई.1598 से 1599 के बीच तैयार किया गया था।

इस ग्रंथ की कुछ प्रतियां उत्तरी अमरीका, यूरोप एवं भारत के विभिन्न शहरों में मिली हैं। इस ग्रंथ के कुछ खण्ड ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में सुरक्षित हैं। इस ग्रंथ की एक प्रतिलिपि ई.1605 में तैयार की गई थी जो कलकत्ता के बिड़ला एकेडेमी ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर में उपलब्ध है।

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