इन दिनों आगरा एवं गंगापुर सिटी मण्डलों के रेल कर्मचारी उदयपुर-आगरा कैंट वंदे भारत ट्रेन के संचालन को लेकर आपस में जो मारपीट कर रहे हैं, उसने संसार के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान भारतीय रेल की संस्कृति का सिर शर्म से झुका देने जैसा काम किया है। यह मारपीट कई दिनों से चल रही है।
रेल मण्डलों के कर्मचारियों के बीच ट्रेनों के संचालन को लेकर विवाद की घटनाएं पहले भी होती थीं किंतु इस बार कुछ रेल कर्मचारी अपने ही साथियों के साथ ऐसी मारपीट कर रहे हैं, जिसके वीडियो देखकर हैरानी होती है!
अराजकता पर उतरे रेल कर्मचारियों ने 7 सितम्बर को अपने साथी रेलवे गार्ड के कपड़े फाड़कर और स्टेशन पर घसीट कर पीटा। रेल कर्मचारियों ने गार्ड एवं चालक के केबिन के कांच के शीशे और ताले भी तोड़ दिए। ये उद्दण्ड रेल कर्मचारी समझ रहे होंगे कि ऐसा करके उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय दिया किंतु ऐसी मारपीट तो गुण्डे किया करते हैं!
दोनों मण्डलों के रेल कर्मचारी चाहते हैं कि इस रेल का संचालन उनके पास रहे। संभव है कि दोनों तरफ के कर्मचारियों के अपने-अपने कुछ मुद्दे हों किंतु उन्हें सुलझाने के लिए क्या मारपीट और तोड़फोड़ के ही तरीके बचे हैं! जब रेल के भीतर ही रेल कर्मचारी सुरक्षित नहीं रहेंगे तो कहाँ रहेंगे?
रेल-कर्मचारियों के लिए रेल उतनी ही आदरणीय है जितनी कि किसी व्यक्ति की माँ होती है। भारतीय रेल, कर्मचारी और उसके परिवार का पेट भरने वाली माँ नहीं तो और क्या है? क्या कोई अपनी माँ को क्षति पहुंचाता है? क्या कोई कर्मचारी किसी के कपड़े फाड़ता है? क्या सभ्य समझ में ऐसी हरकतें सहन की जा सकती हैं?
रेल कर्मचारी भारत में सबसे अधिक अनुशासित कर्मचारियों में माने जाते हैं। ये लोग घड़ी देखकर जीवन जीने के अभ्यस्त होते हैं। उनके प्रत्येक कार्य में अनुशासन इस तरह घुल जाता है जिस तरह फूल में सुगंध। आगरा एवं गंगापुर सिटी के संचालन को लेकर मारपीट और तोड़-फोड़ कर रहे कर्मचारी फूल और सुगंध दोनों को कुचल रहे हैं।
भारतीय रेल एक अखिल भारतीय संस्थान है, इसमें क्षेत्रीयता, प्रादेशिकता, भाषा, जाति जैसी संकीर्णताएं नहीं हैं। इसी कारण भारतीय रेल ने पूरे संसार में अपनी अलग पहचान बनाई है। रेल कर्मचारियों ने तो अपने प्राणों की बाजी लगाकर भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाया है तथा अपने देश की रक्षा की है। गडरा रोड का स्मारक ऐसी गौरवमयी घटनाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
रेल को क्षतिग्रस्त करके इन रेलकर्मचारियों ने अपनी घिनौनी प्रवृत्ति का परिचय दिया है। रेल कर्मचारी, रेल का मालिक नहीं है, रेल का नौकर है। क्या नौकर अपने मालिक पर हाथ उठाता है? क्या ऐसा काम करने वाला रेल कर्मचारी अपने लिए किसी भी पक्ष की भी सहानुभूति की आशा कर सकता है?
अनुशासनहीन एवं अराजकता के स्तर तक उद्दण्ड हो चुके रेल कर्मचारियों को तुंरत सेवा से बर्खास्त किया जाना चाहिए तथा रेलवे स्टेशन पर उत्पात मचाने के अपराध में जेल भी भेजा जाना चाहिए।
भारतीय रेल के संवर्द्धन एवं संरक्षण में रेलवे बोर्ड की बड़ी भूमिका रही है। इसका गठन बहुत मजबूत विधायी शक्तियों के साथ हुआ है। इन्हीं शक्तियों के बल पर रेलवे बोर्ड संसार के सबसे बड़ी संख्या वाले कर्मचारी संस्थान का संचालन बिना किसी बाधा के करता है।
रेलवे बोर्ड की मजबूती का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद बहुत से राजनेताओं ने रेलवे बोर्ड को कमजोर करके इसमें राजनीति के छल-कपट घुसाने का प्रयास किया किंतु उनके सभी प्रयास असफल रहे। आशा की जानी चाहिए कि रेलवे बोर्ड कर्मचारियों की उद्दण्डता से सख्ती से निबटेगा ताकि रेलवे की संस्कृति की सर्वोच्चता बनी रहे।
रेलवे प्रबंधन के साथ-साथ रेलवे यूनियन्स को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए कि कैसे रेल कर्मचारी अनुशासन में रहें, कैसे वे रेल की शान को संसार में सबसे ऊपर रखें, कैसे वे स्वयं गरिमामय जीवन जिएं तथा कैसे वे अपने जीवन को जनता की सेवा में समर्पित करके एक पुष्प की तरह महकें।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता