भारत में गुण्डों की मौत पर बड़ी अजीब सी राजनीति होती है। गुण्डों के पक्ष में पूरा विपक्षी ईको सिस्टम खड़ा हुआ दिखाई देता है। संसार में ऐसा शायद ही कहीं होता हो!
उत्तर प्रदेश में इन दिनों गोली-गोली पर लिखा है गुण्डे का नाम। पुलिस की गोलियां गुण्डों की टांगों का पीछा कर रही हैं जिनके कारण गुण्डे व्हील चेयर पर बैठकर अस्पतालों से निकलते हुए दिखाई देते हैं। वे हाथ जोड़ते हैं, गिड़गिड़ाते हैं और रो-रो कर कहते हैं कि अब वे कभी गुण्डागर्दी नहीं करेंगे। ऐसे दृश्य आजकल नित्य ही दिखाई देते हैं।
कुछ गोलियां ऐसी भी हैं जो एनकाउण्टर के समय गुण्डों की टांगों को माफ करके, सीधे उनकी छाती में विश्राम करने पहुंच जाती हैं। गोली अंदर और गुण्डे की जाति बाहर। गुण्डे के प्राण बाद में निकलते हैं, उसकी जाति पहले निकलती है।
यही कारण है कि गुण्डे को गोली लगते ही विपक्षी पार्टियों के नेताओं को स्वतः पता लग जाता है कि मरने वाले गुण्डे की जाति क्या थी!
जिस गुण्डे की जैसी जाति होती है, उसकी मौत की प्रतिध्वनि भी वैसी ही गूंजती है।
यदि पुलिस की गोली किसी बनिया, ब्राह्मण, ठाकुर, कायस्थ, पंजाबी, खत्री, जाट, गूजर, आदि जाति के गुण्डे के लगी है तो कोई बात नहीं, उस गुण्डे की छाती से निकली जाति की प्रतिध्वनि या तो होती ही नहीं है, और यदि होती भी है तो इतनी कम होती है कि लोगों तक उसकी गूंज नहीं पहुंचती।
यदि मरने वाले गुण्डे की जाति दलित होती है, तो उसकी प्रतिध्वनि चारों ओर गूंजती है। पूरा ईको सिस्टम चीखने लगता है। यह सिद्ध करने के लिए कि सरकार दलित विरोधी है, विपक्षी पार्टियों को पूरा अवसर मिल जाता है। विपक्ष का ईको सिस्टम इस बात की चर्चा तक नहीं करता कि मरने वाला कितना बड़ा गुण्डा था! केवल इस बात की चर्चा करता है कि मरने वाला दलित था!
यदि पुलिस की गोली से मरने वाला गुण्डा यादव जाति का है, तब तो उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता अखिलेश यादव पूरे जोश के साथ योगी सरकार पर पिल पड़ते हैं, महंत को माफिया बताते हैं। गुण्डे को निर्दोष बताते हैं, एनकाउंटर को हत्या बताते हैं। आखिर उस गुण्डे को पुलिस कैसे मार सकती है जिसकी जाति अखिलेश यादव को सबसे अधिक वोट देती है, जो समाजवादी पार्टी का कोर वोटर है!
पुलिस की गोली से मरने वाला गुण्डा यदि मुसलमान हुआ, फिर तो कहना ही क्या है, गुण्डे की छाती में घुसी गोली की प्रतिध्वनि कश्मीर की महबूबा से लेकर, लखनऊ में अखिलेश तक, दिल्ली में राहुल-प्रियंका तक, पटना में तेजस्वी तक, पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी तक, राजस्थान में अशोक गहलोत तक और हैदराबाद में असदुद्दीन ओबैसी तक के कण्ठ से निकलती है।
पूरा ईको सिस्टम एक सुर में चिल्लाता है! मरने वाला अल्पसंख्यक था, केवल यही बार-बार दोहराया जाता है, मरने वाला गुण्डा था, पुलिस पर गोलियां चला रहा था, पुलिस ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाईं, इन बातों की चर्चा तक नहीं होने दी जाती।
ईको सिस्टम के लिए गुण्डा, गुण्डा नहीं है, वह मतदाता है, किसी राजनीतिक पार्टी के लिए वोटों का दूध देने वाला पशु है।
ईको सिस्टम की धूर्त राजनीति को यदि प्याज की पर्तों की तरह खोलकर देखा जाए तो कोई भी वह व्यक्ति जिसे इंसानियत समझ में आती है, वह आसानी से समझ जाएगा कि ईको सिस्टम स्वयं ही चाहता है कि पुलिस उन गुण्डों को गोली मारती रहे जो गुण्डे मरने के बाद विपक्षी ईको सिस्टम को वोटों की फसल दे सकें।
जब तक पुलिस किसी गुण्डे को गोली नहीं मारती, तब तक वह गुण्डा पर्दे के पीछे ईको सिस्टम के लिए काम करता रहता है और जैसे ही किसी गुण्डे को गोली मारी जाती है तो मरा हुआ हाथी सवा लाख का हो जाता है। वोटों का खलिहान नई कटी हुई फसल से भर जाता है!
केवल गुण्डे को गोली मारने के मामले में ही नहीं, अपितु किसी लड़की के साथ बलात्कार के मामले में भी ऐसी ही घिनौनी राजनीति होती है। यदि सवर्ण जाति की अथवा किसी ऐसी जाति की लड़की के साथ बलात्कार हुआ है जो ईको सिस्टम की वोटर नहीं है तो ईको सिस्टम उसकी चर्चा तक नहीं करता किंतु यदि बलात्कार ईको सिस्टम को वोट देने वाली जाति की लड़की का हुआ है तो ईको सिस्टम चीखने-चिल्लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
जब किसी गुण्डे के अवैध घर पर बुलडोजर चलता है, तब भी विपक्षी पाटियों का ईको सिस्टम गुण्डे की जाति क्या थी, इसे लेकर चीखने-चिल्लाने लगता है। न्यायालयों में जाकर रोता-पीटता है।
खुशी जूस सेंटर एवं महादेव रेस्टोरेंट आदि नामों से चल रहे ठेलों एवं ढाबों के संचालक जो कि जूस में पेशाब मिलाते हैं, समोसे के मसाले में गाय का मांस मिलाते हैं, रोटी पर थूकते हैं के विरुद्ध यदि योगी सरकार केवल इतना आदेश देती है कि अपनी दुकान या ठेले पर संचालक का वास्तविक नाम लिखें तो ईको सिस्टम उछलकर सामने आता है और कोर्ट में जाकर स्टे ले आता है।
क्या विपक्षी पार्टियों का ईको सिस्टम यह नहीं समझता कि थूक और पेशाब मिला हुआ जूस एक न एक दिन उनके अपने कण्ठ से नीचे उतरेगा, उनके बच्चों और उनके माता-पिता और पत्नी के कण्ठ से नीचे उतरेगा!
यह कितनी घृणित बात है कि वोटों की राजनीति के लिए ईको सिस्टम अपने अल्पसंख्यक भाइयों का थूक चाटने और पेशाब पीने के लिए तैयार है! समोसे में मिला मांस खाने को तैयार है!
जब उद्धव ठाकरे, कांग्रेस एवं एनसीपी की महाअघाड़ी गठबंधन सरकार के समय महाराष्ट्र के पालघर में तीन साधुओं की हत्या की गई तो ईको सिस्टम मुंह पर टेप लगाकर बैठ गया, हिन्दू संगठन चिल्लाते रहे किंतु नक्कारखाने में तूती की आवाज सिद्ध हुए।
अब जबकि एकनाथ शिंदे की सरकार के समय महाराष्ट्र में तीन मासूम लड़कियों का यौन उत्पीड़न करने वाले गुण्डे अक्षय शिंदे ने पुलिस की रिवॉल्वर छीनकर एक सहायक इंसपेक्टर को गोली मार दी और पास ही बैठे संजय शिंदे नामक पुलिस इंसपेक्टर ने अक्षय शिंदे की छाती में छोटी सी, प्यारी सी गोली उतार दी तो पूरा ईको सिस्टम एक सुर में चीखने लगा कि अक्षय शिंदे को इसलिए गोली मारी गई क्योंकि वह दलित है।
विपक्षी ईको सिस्टम इस बात की चर्चा तक नहीं करना चाहता था कि अक्षय शिंदे की छाती में गोली उतरने का घटनाक्रम कैसे घटित हुआ था। ईको सिस्टम इस बात की भी चर्चा नहीं करना चाहता कि गुण्डे की छाती में गोली उतारने वाला पुलिस इंस्पेक्टर भी शिंदे है और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी शिंदे हैं।
विपक्षी ईको सिस्टम यह देखना भी नहीं चाहता कि अक्षय शिंदे को गोली मारे जाने की खबर सुनकर महाराष्ट्र की जनता ने कितनी खुशियां मनाई हैं तथा औरतों ने सड़कों पर निकल कर मिठाइयां बाटीं हैं। ईको सिस्टम जानता है कि गुण्डों की मौत पर खुशी मनाने वाले लोग तथा मिठाई बांटने वाली औरतें कभी भी विपक्षी ईको सिस्टम को वोट नहीं देंगी!
ईको सिस्टम इतना चालाक है कि जब कांग्रेस के महान नेता राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के और भी महान नेता अखिलेश यादव से कोई पत्रकार कभी ऐसा सवाल करता है जिससे ईको सिस्टम को कोई कठिनाई हो तो ये लोग उस पत्रकार से पूछते हैं कि तेरी जाति क्या है?
ईको सिस्टम पुलिस की गोली से मरने वाले गुण्डे से लेकर, गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी और पब्लिक में सवाल उठाने वाले पत्रकार तक की जाति पूछता है किंतु अपनी जाति नहीं बताता। पता नहीं क्यों नहीं बताता! अपनी जाति बताने में किसी को क्या शर्म हो सकती है! आखिर इस जाति को ही तो आपने अपनी जिंदगी का आधार बना रखा है।
ईको सिस्टम गलत भौंकाल पैदा करके अपना स्वार्थ भले ही सिद्ध कर रहा हो किंतु इससे किसी दलित, यादव अथवा मुसलमान का भला नहीं होता। मीडिया में बार-बार इन जातियों के नाम उछालकर ईको सिस्टम इन जातियों को बदनाम ही कर रहा है।
यदि मुसलमानों को छोड़ दिया जाए जो कि वैश्विक एजेंडे पर काम कर रहे हैं, यादव एवं दलित जातियों में भी उतने ही अपराधी हैं जितने कि समाज की अन्य जातियों अथवा उच्च वर्ण जातियों में हैं। फिर ईको सिस्टम दलितों एवं यादवों को क्यों बदनाम कर रहा है?
ईको सिस्टम के दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के निस्पृह एवं निरपेक्ष मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी खड़े हैं जिनकी पुलिस गुण्डों की छातियों में बड़े प्यार से गोलियां उतार रही है। बिना यह देखे कि गुण्डे की जाति क्या है। और योगीजी हैं कि मीडिया में आकर आत्मविश्वास और सामर्थ्य से भरी मनमोहक मुस्कान देते हैं मानो विपक्षी ईको सिस्टम को संदेश दे रहे हों कि हे प्यारे विपक्ष तुम गुण्डे की जाति ही पूछते रहो! तुम यह कभी मत देखो कि वह गुण्डा कितना बड़ा अपराधी था, समाज का शत्रु था, और गोली का प्रयोग विधिसम्मत और परिस्थितिवश ही किया गया है।
हे प्यारे विपक्षी ईको सिस्टम तुम यह भी मत देखो उस गुण्डे के मरने पर पब्लिक कितनी मिठाइयाँ बांट रही है और झोली भर-भर का आशीर्वाद दे रही है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता