Thursday, January 23, 2025
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हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ

हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ वैसे ही हैं जैसे सूर्य और उसका प्रकाश। हिन्दू धर्म सूर्य है तो सिक्ख पंथ उसका प्रकाश है। हिन्दू धर्म वृक्ष है तो सिक्ख पंथ उसकी शाखा है।

कुछ दिनों पहले बागेश्वर धाम के गादीपति पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने एक वक्तव्य दिया था कि संभल के हरिहर मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक होना चाहिए। बरजिंदर परवाना नामक एक सिक्ख अतिवादी ने समझा कि धीरेन्द्र शास्त्री ने अमृतसर के स्वर्णमंदिर में शिवजी का अभिषेक करने की बात कही है जिसे हरमंदिर भी कहा जाता है। उसने कहा कि वह धीरेन्द्र शास्त्री को जान से मार डालेगा।

वर्तमान समय में बरजिंदर परवाना जैसे सैंकड़ों अथवा हजारों सिक्ख अतिवादी हैं जो हिन्दू धर्म को सिक्ख धर्म से अलग समझकर इस तरह की हरकतें कर रहे हैं। इन अतिवादियों को कनाडा, अमरीका एवं पाकिस्तान में बैठी हुई भारत विरोधी शक्तियों से फण्ड तथा अजेण्डा दोनों मिलते हैं जिनके कारण ये अतिवादी लोग कोई काम करके रोजी-रोटी कमाने एवं अपने परिवारों को सुख-शांति के मार्ग पर ले जाने की बजाय इस तरह की हिंसात्मक कार्यवाहियों, धमकियों एवं बयानों से देश में घृण फैलाने का काम करते हैं। उनकी इन हरकतों से ही हिन्दू और सिक्ख एक-दूसरे को शंका की दृष्टि से देखने लगे हैं। 

होना तो यह चाहिए कि सिक्ख अतिवादी इस बात पर विचार करें कि हिन्दुओं का हरिहर मंदिर तथा सिक्खों का हरमंदिर कितने मिलते-जुलते नाम हैं तथा इस बात के जीते-जागते प्रमाण हैं कि हिन्दू और सिक्ख एक ही हैं, वे अलग-अलग नहीं हैं।

सिक्ख अतिवादी अस्सी के दशक में हुए जनरैल सिंह भिण्डरवाला के समय से सिक्ख धर्म को न केवल हिन्दू धर्म से अलग धर्म के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, अपितु इस तरह का विष उगल रहे हैं जिससे यह लगता है कि इन दोनों धर्मों में कोई जन्मजात का वैर है।

कनाडा में जिस तरह से सिक्ख अतिवादियों ने खालिस्तान की स्थापना के नाम से अपना अड्डा जमाया है और कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो जैसे पॉलिटीशियन्स ने उन्हें धन, शक्ति एवं समर्थन दिए हैं, उनसे इन अतिवादियों को लगता है कि वे सचमुच एक दिन खालिस्तान बना लेंगे।

यह निश्चित है कि वे अपना पेट पालने के लिए हिंसा के जिस मार्ग पर चल रहे हैं, वह रास्ता आगे जाकर काली धुंध में विलीन हो जाता है। गुरु नानक के सम्मान में एक भजन गाया जाता है कि सतगुरु नानक परगतिटया, मिटी धुंध जब चानण होया।

सिक्ख अतिवादियों को अपने परिवार वालों के बीच बैठकर सोचना चाहिए कि वे हिंसा और घृणा के जिस मार्ग पर चल रहे हैं, क्या उससे उन्हें तथा उनके परिवार को कभी कोई प्रकाश मिलेगा!

विगत चौदह सौ साल से संसार भर में जिस तरह इस्लाम के नाम पर आतंकवादी मानवता के शत्रु हुए बैठे हैं, क्या सिक्ख अतिवादी अपने समाज को उसी मार्ग पर ले जाना चाहते हैं?

क्या सिक्ख अतिवादियों को गुरु नानक की यह बात कभी याद आती है- नानक दुखिया सब संसारा? यह सारा संसार दुखों से भरा पड़ा है। संसार में दैहिक, दैविक और भौतिक तीन प्रार के दुख व्याप्त हैं। मनुष्य का पूरा जीवन इन तीनों दुखों से लड़ने में ही बीत जाता है। इन दुखों से लड़ने के लिए एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य का साथ और सहयोग चाहिए किंतु जब मानव-मानव का शत्रु होकर जिएगा तो दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों प्रकार के दुख हजार-हजार गुना होकर इंसानों को सताएंगे।

क्या सिक्ख अतिवादियों को उनके माता-पिता गुरु, किसी ने नहीं बताया कि भारत भूमि पर विशाल वटवृक्ष के रूप में विकसित सनातन धर्म की चार बड़ी शाखाएं वैदिक दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन एवं सिक्ख पंथ के रूप में विकसित हुई हैं। यह ठीक वैसे ही है, जैसे कि एक ही पिता के पुत्रों से अलग-अलग गोत्र चल पड़ते हैं।

क्या वे पुत्र आपस में एक-दूसरे को मारने की धमकी देते हैं? हिन्दू भी एक ओंकार को मानते हैं, सिक्ख भी एक ओंकार को मानते हैं, हिन्दू भी विष्णु की पूजा पुरुषोत्तम के रूप में तथा शिव की पूजा महाकाल के रूप में करते हैं, गुरु नानक ने भी ‘अकाल पुरुष’ को चरम सत्य माना है जिसने प्रकृति, माया, मोह, गुण, देवता, राक्षस और सारा जगत् बनाया है।

इस प्रकार आरम्भ से अंत तक पूरा का पूरा हिन्दू धर्म और पूरा का पूरा सिक्ख पंथ एक दूसरे के पर्याय ही हैं, इनमें कहीं कोई भेद नहीं है।

हिन्दू भी वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर चलता है और गुरु नानक भी एक नूर ते सब जग उपजा कौन भले कौन मंदे कहकर हिन्दू धर्म को जगाया। जब हमारे गुरु एक हैं तो हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ अलग कहाँ हैं?

गुरुग्रंथ साहब में 541 भक्ति पद कबीर के, 60 भक्ति पद नामदेव के और 40 भक्ति पद संत रविदास के हैं। जयदेव, त्रिलोचन, सधना, नामदेव, वेणी, रामानंद, कबीर, रविदास, पीपा, सैठा, धन्ना, भीखन, परमानन्द और सूरदास जैसे वैष्णव भक्तों एवं हरिबंस, बल्हा, मथुरा, गयन्द, नल्ह, भल्ल, सल्ह, भिक्खा, कीरत, भाई मरदाना, सुन्दरदास, राइ बलवंड एवं सत्ता डूम, कलसहार, जालप आदि हिन्दू कवियों के पदों से गुरुग्रंथ साहब भरा पड़ा है। फिर भेद कहाँ है, झगड़ा कहाँ है?

गुरु गोबिंदसिंह ने कहा था-

सकल जगत में खालसा पंथ गाजै, जगै हिन्दू धर्म सब भण्ड भाजै!

गुरु गोबिन्दसिंह ने ‘चण्डी’ की स्तुति की तथा रामकथा पर सुन्दर खण्डकाव्य लिखा। व्यवाहारिक रूप में सिक्ख गुरु, अवतारों तथा हिन्दू देवी- देवताओं में श्रद्धा रखते थे। सिक्ख ग्रन्थों में लिखा है-

रामकथा जुग जुग अटल, जो कोई गावे नेत।

स्वर्गवास रघुवर कियो, सगली पुरी समेत।

भारत की आजादी के समय सिक्खों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अपने उन पड़ौसियों एवं सगे सम्बन्धियों के प्राणों की रक्षा की जो सिक्ख नहीं थे, हिन्दू थे। हिन्दुओं ने भी सिक्खों के लिए अपनी जान की बाजी लगाई।

भारत की आजादी के बाद सिक्खों को सरदारजी और सरदार साहब कहकर आदर दिया जाता था। सिक्ख भारत के प्रधानमंत्री बने, राष्ट्रपति बने, गृहमंत्री, वित्तमंत्री और विदेशमंत्री बने। सिक्ख तीनों सेनाओं के अध्यक्ष बने, पंजाब आदि प्रांतों में मुख्यमंत्री बने। सिक्ख योजना आयोग और वित्त आयोग के अध्यक्ष बने, चेयरमैन रेलवे बोर्ड बने।

डॉक्टर, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेंट, आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, प्रोविंशियल सर्विसेज जैसी एक भी ऐसी प्रतिष्ठिति सेवा नहीं है, जिसमें सिक्ख अधिकारी न हों। फिर भेद कहाँ है, झगड़ा कहाँ है? हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ अलग कहाँ हैं?

मुझे याद है कि जब हम छोटे बच्चे थे, तब हमारे पिताजी हमें हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ, जब भी अवसर मिलता था, सिक्खों के गुरुद्वारे, सिंधियों के गुरुद्वारे, आर्यसमाज, जैन मंदिर तथा बौद्ध पेगोडा ले जाया करते थे। आज भी मेरी पीढ़ी के लोगों के लिए ये सब धर्मस्थल एक ही हैं, अपने ही हैं, इनसे हमें कभी परायापन अनुभव नहीं होता, न तब होता था और न आज होता है।

मैंने बद्रीनाथ, वैष्णो देवी और रामेश्वरम् के मंदिरों में सिक्खों को शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए, दुर्गाजी के समक्ष दीपक घुमाते हुए और हरिद्वार में गंगाजी नहाते हुए खूब देखा है। जब किसी हिन्दू बस्ती में किसी सिक्ख का घर होता था, तो सारे लोग होली दीवाली में उसके भी घर रामा-श्यामा करने जाते थे। वैशाखी और लोहड़ी जैसे त्यौहार तो आज भी सिक्ख और हिन्दू एक साथ ही मानते हैं। फिर झगड़ा कहाँ है।

जब कोई सिक्ख यह नारा लगाता है- जो बोले सो निहाल तो आगे की पंक्ति का सत् सिरी अकाल बोलने में हिन्दू सबसे आगे रहते हैं। बहुत से हिन्दू सिक्खों को देखकर सत् सिरी अकाल कहकर अभिवादन करते हैं। यदि दार्शनिक स्तर पर देखा जाए हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ इतने निकट हैं कि इन्हें अलग करके देखना कठिन है।

इतनी सारी समरसताओं के उपरांत भी जब कुछ सिरफिरे अतिवादियों द्वारा हिन्दुओं के विरोध में कार्यवाही की जाती है, उन पर हिंसा की जाती है तो बहुत दुख होता है। सिक्ख अतिवादियों ने कनाडा, अमरीका, इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया आदि कई देशों में हिन्दुओं पर हमले किए हैं। अब भी समय है, यदि पूरा सिक्ख समाज एक होकर अपने परिवार के अतिवादी नौजवानों को सिक्ख धर्म के आदर्शों से परिचय करवाए तो मानवता का बहुत भला होगा।

आज पंजाब में लाखों सिक्ख परिवार थोड़े से पैसों के लालच में, चमत्कारों की भूल भुलैया में अथवा मीठी-मीठी बातों में आकर ईसाई हो रहे हैं। यदि सिक्ख अतिवादियों को सिक्ख पंथ की रक्षा करनी है तो अपना ध्यान उन ईसाई मिशनरियों पर केन्द्रित करे, न कि हिन्दुओं पर हमले करने में।

भारत विराधी ताकतों द्वारा फैंके जा रहे टुकड़ों पर पलने वाले अतिवादी सिक्ख कभी भी अपने परिवारों को शांति, सुरक्षा और उन्नति नहीं दे पाएंगे, अपना नहीं तो अपने परिवारों का तो सोचो! हिन्दूधर्म और सिक्खपंथ अलग कहाँ हैं?

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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