आज दुनिया भर में जिस तरह बमों और मिसाइलों की बरसात की जा रही है, उनसे मानव जाति का भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ऐसी स्थिति में केवल हिन्दू धर्म के सिद्धांत ही दुनिया को बचा सकते हैं!
विगत चौदह सौ साल से इस्लाम ने पूरी दुनिया में जेहाद छेड़ रखा है, इस कारण पूरी दुनिया मजहबी उन्माद की शिकार होती रही है। यदि संसार भर की सभ्यताओं को मजहबी उन्माद से बचने का तरीका यदि कोई बता सकता है, तो वह केवल हिन्दू धर्म के सिद्धांत ही हैं।
क्योंकि हिन्दू धर्म के सिद्धांत मनुष्य को प्राणी मात्र से प्रेम करने का सिद्धांत देते हैं। वे किसी रिलीजन, मजहब या पंथ की काराओं में बंद नहीं हैं। हिन्दुओं ने आज तक धरती के किसी कोने में किसी भी प्राणी को धर्म के प्रचार के लिए नहीं मारा है।
आज से लगभग दो हजार साल पहले जब ईसाई रिलीजन का उदय हुआ था तो ईसाइयों ने प्राचीन रोमन धर्म को मानने वाले लोगों का बेरहमी से कत्ल किया था और केवल उन्हीं लोगों को जीवित छोड़ा था जो ईसाई रिलीजन में आने को तैयार हुए। जनता की तो कौन कहे, उन रोमन सम्राटों को भी जहर देकर मार डाला गया जो ईसाई रिलीजन मानने को तैयार नहीं हुए। इस तरीके से ही सम्पूर्ण यूरोप को ईसाई बनाया गया। इसी तरीके से अमरीकी महाद्वीपों, अफ्रीकी महाद्वीप तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के आदिवासियों को बलपूर्वक इसाई बनाया गया तथा एशिया महाद्वीप के बहुत से देशों में इसाइयत का प्रचार और प्रसार किया गया।
आज संसार की एक तिहाई जनसंख्या ईसाई रिलीजन को मानती है तथा दुनिया भर में ईसाइयों की कुल आबादी 238 करोड़ है। 30 देशों ने स्वयं को ईसाई देश घोषित कर रखा है। सम्पूर्ण यूरोप, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया के दशों की प्रजा बहुसंख्यक है। अफ्रीका और एशिया में भी बहुत से देशों की बहुसंख्यक जनता ईसाई है। भारत और चीन सहित अनेक देशों में इसाई रिलीजन तेजी से पैर पसार रहा है।
आज से लगभग 1400 साल पहले जब इस्लाम का उदय हुआ, तब इस्लाम के प्रचारकों ने भी वही नीति अपनाई जो ईसाई रिलीजन ने अपनाई थी। अन्य मजहब वालों को मारो और उन्हें बलपूर्वक अपने मजहब में लाओ। आज दुनिया भर में 190 करोड़ से अधिक मुसलमान रहते हैं। 57 देशों ने स्वयं को इस्लामिक देश घोषित कर रखा है।
आज दुनिया के कुल 193 देशों में से भारत सहित एशिया के कुछ ही देश बचे हैं जिनकी जनता ईसाई रिलीजन और इस्लाम मजहब के उदय से पहले प्रचलित धर्मों को मानती है। इनमें से इजराइल देश की बहुसंख्य जनता यहूदी धर्म को मानती है, भारत और नेपाल की बहुसंख्यक जनता हिन्दू धर्म को मानती है, चीन, जापान, कोरिया आदि एशियाई देशों की बहुसंख्य जनता बौद्ध धर्म को मानती है।
आज दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है जिसने स्वयं को हिन्दू देश घोषित कर रखा हो। जिन-जिन देशों में इसाइयत का प्रसार बढ़ रहा है, उन-उन देशों में नास्तिकों की संख्या भी बढ़ रही है। चीन और कोरिया में नास्तिकों की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखकर आश्चर्य होता है।
आज भी ईसाई रिलीजन एवं इस्लाम पूरी दुनिया को अपने-अपने मजहब में लेने के लिए प्रयासरत हैं। इनमें से अधिकतर प्रयास हिंसात्मक तरीकों से हो रहे हैं तो कुछ प्रयास भय, चमत्कार, लालच एवं अन्य तरीकों से हो रहे हैं। इन दो रिलीजन या मजहब वालों के अतिरिक्त दुनिया में तीसरा अन्य कोई रिलीजन या मजहब, दूसरे रिलीजन, मजहब या धर्म वालों को अपने भीतर लेने के प्रयास नहीं करता। अर्थात् जो यहूदी नहीं है, वह यहूदी नहीं बन सकता, जो पारसी नहीं है, वह पारसी नहीं बन सकता।
हिन्दू धर्म की ऐसी स्थिति नहीं है, कोई भी व्यक्ति हिन्दू बन सकता है किंतु हिन्दू धर्म किसी भी अन्य रिलीजन या मजहब वालों को अपने भीतर लेने के लिए न तो प्रोत्साहित करता है और न प्रयास करता है। यहाँ तक कि इस काम को बुरा भी समझता है। फिर भी यदि कोई व्यक्ति चाहे तो वह हिन्दू धर्म अपना सकता है, बौद्ध बन सकता है, जैन बन सकता है, सिक्ख बन सकता है।
आज से लगभग 1300 साल पहले अरब के खलीफाओं की सेनाओं ने भारत में घुसकर मारकाट मचानी आरम्भ की। इन सेनाओं का कार्य हिन्दुओं को मुसलमान बनाना या उन्हें मार डालना था। उस समय हिन्दू प्रजा ने अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करने के लिए हिन्दू धर्म के दरवाजे भीतर से बंद करने आरम्भ कर लिए।
इस्लाम से बचने के लिए हिन्दुओं ने हिन्दू धर्म के दरवाजों पर मोटे-मोटे ताले लटका दिए। ये ताले केवल अपनी जाति के अंतर्गत विवाह करने, किसी अन्य जाति के व्यक्ति के साथ बैठकर भोजन नहीं करने, किसी अन्य के हाथ का स्पर्श किया हुआ भोजन नहीं खाने जैसी परम्पराओं के रूप में थे। इनमें आचरण की शुद्धता, गौपूजा, शाकाहार, ईशभक्ति आदि की परम्पराएं शामिल थीं। तभी से हिन्दू धर्म पर जाति, धर्म, पंथ आदि के ताले लगे हुए हैं। इन तालों के कारण ही आज तक हिन्दू धर्म के सिद्धांत जीवित बच पाए हैं।
हिन्दू धर्म के दरवाजे पर सबसे बड़ा ताला यह लगाया गया कि जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से या किसी भी कारण से एक बार ईसाई या मुसलमान हो जाता है, उसे हिन्दू धर्म में वापस स्वीकार नहीं किया जाए। हालांकि आर्य समाज ने इन तालों को खोलने के प्रयास किए, किंतु आर्य समाज ने हिन्दू धर्म में होने वाली मूर्तिपूजा का इतना घनघोर विरोध किया कि सनातनी हिन्दुओं ने आर्यसमाज के प्रयासों को विफल कर दिया।
विगत चौदह सौ सालों में 57 देशों की लगभग सम्पूर्ण प्रजा इस्लाम स्वीकार कर चुकी है तथा बहुत से देशों में जनता का तेजी सी इस्लामीकरण हो रहा है। ऐसी स्थिति में हिन्दुओं का चिंतित होना स्वाभाविक है कि वे हिन्दू धर्म के सिद्धांत कैसे बचाएं? अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं की रक्षा कैसे करें?
भारत में यद्यपि 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है तथापि बहुत सी डेमाग्राफी सम्बन्धी रिपोर्टें भारत सरकार को चेतावनी देती रही हैं कि कितने साल बाद भारत में मुसलमानों की संख्या कितनी हो जाएगी तथा कितने साल बाद भारत इस्लामिक देश हो जाएगा।
इस्लामिक कट्टरपंथियों ने भारत में गजवा ए हिन्द नामक कार्यक्रम चला रखा है जो पीएफआई, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक बोर्ड, लव जिहाद, लैण्ड जिहाद, थूक जिहाद, मूत्र जिहाद आदि उपकरणों के माध्यम से भारत में इस्लामीकरण का काम आगे बढ़ाता है। इण्डोनेशिया में बैठे जाकिर नाइक जैसे कट्टरपंथी लोग पूरी दुनिया में इस्लामीकरण को बढ़ावा देने के प्रयास कर रहे हैं।
इन कट्टरपंथियों के प्रयासों को विफल करने के लिए आवश्यक है कि हिन्दू जाति अपने दरवाजों पर लगे सांस्कृतिक तालों को फिर से खोले तथा उन कन्वर्टेड हिन्दुओं को वापस हिन्दू धर्म में लाने का प्रयास करे जिनके पुरखे विगत 1400 सालों में मुसलमान या इसाई बन गए।
वर्ष 2024 के अंतिम महीनों में उत्तर प्रदेश के जौनपुर नगर में 100 कन्वर्टेड परिवारों ने फिर से हिन्दू धर्म में वापसी की है। इन लोगों के पूर्वज ब्राह्मण थे और जजिया न दे पाने के कारण इस्लाम स्वीकार करने को विवश हुए थे। ये 100 परिवार अब फिर से सत्य-सनातन धर्म में लौट आए हैं। घर वापसी के लिए इन परिवारों के समक्ष क्या चुनौतियां थीं, उनका समाजशास्त्रीय अध्ययन करवाया जाना चाहिए।
हिन्दू धर्म में वापसी करने वालों को बताया जाना चाहिए कि हिन्दू बनने के लिए कुछ करना नहीं पड़ता है, केवल मंदिर या तीर्थ में जाकर या अपने ही घर में रहकर मन में यह स्वीकार करना पड़ता है कि मैं भगवान का हूँ और भगवान मेरे हैं। मैं आज के बाद किसी भी मनुष्य या जीव के प्रति हिंसा नहीं करूंगा और दूसरों को भी हिंसा न करने के लिए प्रेरित करूंगा। समस्त प्राणियों में अपने भगवान को देखूंगा। मेरे लिए कोई पराया नहीं है, मैं सबका हूँ और सब मेरे हैं। हिन्दू होने का अर्थ अपने भीतर केवल इतना परिवर्तन करना ही है।
हिन्दू धर्म में वापसी करने वाला कोई जनेऊ पहने या न पहने, तिलक लगाए या न लगाए, मूर्ति पूजा करे या न करे, कोई व्रत करे या न करे, किसी तीर्थ में जाए या न जाए, केवल और केवल श्रीहरि विष्णु या शिवशंकर या भगवती दुर्गा के प्रति स्वयं को समर्पित करे, उनके चरणों का ध्यान करके सबसे उदारता का व्यवहार करे। वेदों और गायों को नमस्कार करे, बस इतने भर से आदमी हिन्दू हो जाता है और हिन्दू बना रहता है। आज जो एक सौ करोड़ से अधिक हिन्दू धरती पर रहते हैं, उनमें से अधिकांश ऐसे ही हैं। हिन्दू धर्म के सिद्धांत हिन्दुओं को यही सिखाते हैं।
हिन्दुओं की घर वापसी के कार्य में कोई भय, लालच या दबाव से कार्य नहीं लिया जाना चाहिए। जो भी कट्टरपंथी चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों, ईसाई हों या किसी अन्य पंथ या मजहबी विचारों के हों, यदि इस कार्य में बाधा उत्पन्न करें तो उनके साथ कानूनी तरीके से निबटा जाना चाहिए।
केवल जौनपुर का अकेला प्रकरण नहीं है, विगत 10-15 वर्षों में घर वापसी के ऐसे सैंकड़ों प्रकरण निजी एवं सामूहिक स्तर पर हुए हैं। देश भर में हजारों ऐसे लोग, गांव एवं समुदाय हैं जो अब हिन्दू धर्म में वापसी करना चाहते हैं किंतु इन लोगों को अपने ही परिवार एवं समाज वालों द्वारा अत्याचार किए जाते हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से की जा रही हिन्दू धर्म में वापसी में बाधा उत्पन्न करता है, अत्याचार करता है, हिंसा करता है तो घर वापसी करने वाले की रक्षा के लिए विशेष कानून बनना चाहिए तथा पीड़ित व्यक्ति को सरकार की ओर से निशुल्क कानूनी सहायता दी जानी चाहिए।
यदि भारतीय जनता पार्टी की सरकार इन कार्यों को करती है राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को बढ़ावा मिलेगा। मजहबी कलह कम होगी तथा पूरे संसार के सामने एक मिसाल कायम होगी।
विगत पिचहत्तर साल की भारतीय राजनीति ने सिद्ध कर दिया है कि अनेकता में एकता जैसे नारे किसी काम के नहीं होते, एकता में ही एकता है। जब किसी देश की जनता में राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं धार्मिक एकता नहीं होती है, तभी अनेकता में एकता जैसे झूठे नारे लगाने पड़ते हैं। इसी लिए योगीजी ने बंटेंगे तो कटेंगे तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे जैसे नारे दिए हैं।
हिन्दू धर्म सबका है, यह किसी की बपौती नहीं है। हिन्दू धर्म किसी प्रकार के कन्वर्जन में विश्वास नहीं रखता किंतु अब उसे अपने दरवाजे कम से कम उन लोगों के लिए तो खोल ही देने चाहिए जो अपने पुरखों की परम्परा में लौटना चाहते हैं।
भारत के लोगों को शायद यह पता नहीं होगा कि गाजा में हमास की स्थापना करने वाले शेख इस्माइल अहमद यासीन के पुत्र शिन बेथ ने इसलिए इस्लाम छोड़कर ईसाइयत स्वीकार कर ली है कि वह मजहब के नाम पर इंसानों की हत्या होते हुए नहीं देखना चाहता। उसने भारत के हिन्दुओं का आह्वान किया है कि वे मध्य-एशिया में आएं और हमें गीता का उपदेश देकर युद्धों की विभीषिकाओं से बाहर निकालें।
इस्माइल अहमद यासीन के पुत्र शिन बेथ केवल और केवल हिन्दू धर्म के सिद्धांत ही आज मध्य एशिया में शांति स्थापित कर सकते हैं। जब विदेशी मुसमान इस बात को समझ सकते हैं तो वे लोग क्यों नहीं समझ सकते जिनके पुरखे हिन्दू थे और जो लोग विगत 800 सालों से हिन्दुओं के बीच में, हिन्दुओं के साथ रह रहे हैं।
देश को एक करने का हमारे सामने यही उज्जवल समय है। हम अपने दिलों और दिमागों के दरवाजे खोलें। जो घर छोड़कर चले गए हैं, उन्हें प्रेम से बुलाएं और इज्जत देकर बैठाएं। मेरी समझ में तो सुख और शांति की बस यही राह निकलती है।
यदि हिन्दू जाति अपनी सांस्कृतिक विरासत एवं परम्परा को बचाना चाहती है तो हिन्दू धर्म को अपने दरवाजे उन लोगों के लिए खोलने होंगे जो विगत एक हजार सालों में अन्य मजहबों में चले गए हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता