Sunday, October 13, 2024
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अकबर के दरबारी (151)

मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी की दृष्टि में अकबर के दरबारी मूर्खों की टुकड़ी थे जो हर समय अकबर को प्रसन्न करने के लिए इस्लाम विरोधी बातें करते थे और अकबर को सूअर एवं कुत्तों की पूजा करने के लिए उकसाते थे। मुल्ला की दृष्टि में अकबर के दरबारी कितने गिरे हुए थे, इसे लक्ष्य करके मुल्ला ने लिखा है-

मूर्खों की यह टुकड़ी चिथड़ों में है,

वे कुछ रहस्यमय शब्द बुदबुदाते हैं!

 मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने अपनी पुस्तक मुंतखब उत तवारीख में लिखा है कि इस्लाम में त्याज्य सूअर एवं कुत्ते जिन्हें नापाक माना जाता था, अकबर उन्हें अपने हरम में और अपने किले के नीचे रखने लगा और रोज सुबह उन्हें देखना अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझने लगा। अकबर के दरबारी हिन्दू जो पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, उन्होंने अकबर को विश्वास दिलाया कि जंगली नर सूअर दस अवतारों में से एक है जो ईश्वर के पृथ्वी पर आने के लिए लिया गया था।

अपने इस मत के समर्थन में अकबर के दरबारी हिंदू किसी संत की कहावत उद्धृत करते हैं कि कुत्ते में दस गुण होते हैं, यदि किसी में उसका एक गुण भी आ जाए तो वह संत हो जाता है। कुछ दरबारी जो सभी प्रकार के संगीत, गायन एवं वादन में निष्णात थे और कविता में रुचि रखते थे, कहावत बन गए।

अकबर के दरबारी अपने साथ अक्सर कुत्तों को मेज तक लेकर जाते और उनके साथ खाना खाते। ईराक और हिन्दुस्तान के कुछ विधर्मी शायर बजाय इसके कि कुत्ते को मेज तक ले जाने का विरोध करें, स्वयं भी उनका अनुसरण करने लगे। यहाँ तक कि कुत्ते की जीभ अपने मुंह में रखकर इसकी डींग हांकने लगे और ईर्ष्या करने लगे। कुत्तों के प्रति सम्मान का भाव रखने वालों के विरुद्ध मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने एक शेर लिखा है-

मीर से कहो, तुम्हारी खाल के नीचे एक कुत्ता है,

शव है उसके दर के सामने कुत्ता दौड़ता,

उसे रसोई का साथी मत बनाओ।

अर्थात्- कुत्ता अत्यंत घृणित प्राणी है क्योंकि वह शव खाता है, इसलिए उसे अपनी रसोई में मत आने दो।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि अकबर ने इस्लाम की बहुत सी बातों के विरुद्ध काम करना आरम्भ कर दिया। उसने शेर और सूअर का मांस खाने की इजाजत दी क्योंकि जो मनुष्य इनको खाएगा, उसमें इन दो साहसी प्राणियों के साहस का संचार हो जाएगा। अकबर ने यह तर्क दिया कि स्त्री से संसर्ग के बाद में स्नान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि स्नान करना ही है तो स्त्री-संसर्ग से पहले किया जाए। मुल्ला की दृष्टि में अकबर का यह तर्क मजहब के उसूलों के खिलाफ था।

मुल्ला ने लिखा है कि अकबर ने चचेरे भाई-बहिनों में सम्बन्धों की मनाही कर दी। क्योंकि इससे काम-वासना में कमी आएगी। अकबर ने आदेश दिया कि लड़के सोलह साल से कम आयु में शादी नहीं कर सकेंगे और लड़कियां चौदह साल से कम की नहीं। क्योंकि जल्दी शादी करने वालों की औलादें कमजोर होती हैं।

अकबर के इन कामों से मुल्ला लोग नाराज थे ही किंतु जब अकबर ने मीर मुईज्जु-अल-मुल्क एवं मुल्ला मुहम्मद यज्दी को जौनपुर से बुलाकर नदी के बीच में ही मरवा डाला तो मुल्ला, मौलवियों एवं शेखों का विश्वास अकबर के ऊपर से पूरी तरह से हट गया। अब वे अकबर के दरबार में जाने से भी कतराने लगे। उन्हें लगता था कि अकबर द्वारा किए जा रहे इन प्रकार के कामों के पीछे अकबर के दरबारी हैं जो भारत से इस्लाम खत्म करना चाहते हैं।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि अकबर ने हकीमुलमुल्क जीलानी को पांच लाख रुपए दिए तथा मक्का जाकर खैरात बांटने के आदेश दिए। हकीम जीलानी उन रुपयों को लेकर मक्का चला गया और वहाँ से कभी नहीं लौटा। अकबर ने उसे वापस बुलाने के लिए कई आदमियों को भेजा किंतु हकीम जीलानी कभी लौट कर नहीं आया। अब वह अकबर की सल्तनत में नहीं रहना चाहता था।

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अकबर ने पंजाब से शेख मुत्तही अफगान कासी को अपने दरबार में बुलाने के लिए पालकी भिजवाई किंतु उसने बादशाह द्वारा भेजी गई पालकी में बैठना पसंद नहीं किया। इसलिए शेख मुत्तही शाही फरमान पाकर पैदल ही सीकरी के लिए रवाना हुआ। जब शेख मुत्तही सीकरी पहुंच गया तो वह शेख जमाल बिख्तयार नामक एक दरवेश के घर ठहर गया और बादशाह को संदेश भिजवाया कि मेरी आंख शहंशाह के किसी आशीर्वाद पर नहीं ठहरती। इस पर बादशाह ने आदेश भिजवाया कि उसे हमारे दरबार में आने की आवश्यकता नहीं है। वह फिर से वहीं चला जाए, जहाँ से आया है।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि सभी विषयों पर अधिकृत ज्ञान रखने वाला शेख उल हदयाह बादशाह के दरबार में बुलाया गया। अकबर ने उससे एक सवाल पूछा। इस पर शेख उल हदयाह ने अपने कानों की तरफ संकेत कर दिया। बादशाह को कोई जवाब नहीं दिया। इस पर बादशाह ने उसे वापस जाने के लिए कह दिया।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि शेखों, मुल्लाओं एवं काजियों आदि की अकबर के प्रति नाराजगी को चापलूस किस्म के शेखों ने अपने लिए सुअवसर समझा और वे अकबर के दरबार में जाने लगे। अर्थात् अब वे ही अकबर के दरबारी बन गए। मुल्ला बदायूनी ने उनके लिए लिखा है-

मूर्खों की यह टुकड़ी चिथड़ों में है,

वे कुछ रहस्यमय शब्द बुदबुदाते हैं।

वे विश्वसनीयता व पवित्रता में आगे नहीं बढ़े हैं

हालांकि इन्होंने बहुतों का नाम खराब किया है।

मुल्ला बदायूनी ने शेख अब्दुल अजीज के उत्तराधिकारी शेख चानीडाल्ड सिवानाह का उदाहरण देते हुए लिखा है कि शहंशाह के निर्देश पर वह इबादतखाने में गया और भ्रष्ट इबादत बोलना एवं प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। उसने भविष्यवाणी की कि फलानी औरत के लड़का होगा, पर हुई लड़की। उसकी तरह सैयद हाशिम फिरोजाबादी ने भी सौ चमत्कारों के साथ यह धंधा आरम्भ किया। उसके कारण पुराने गुरुओं का भी अपमान हुआ।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि इस साल निकृष्ट व्यक्तियों ने जो अपने आप को विद्वान दिखाते थे किंतु जो वास्तव में मूर्ख थे, प्रमाण एकत्रित किए कि बादशाह साहिब-ए-जमाँ हैं जो इस्लाम के बहत्तर पंथों एवं हिन्दुओं के समस्त मतभेद दूर कर देंगे।

शरीफ बसव्वान के महमूद की रचनाओं को लाया जिसमें कहा गया कि हिजरी 990 अर्थात् ई.1582 में एक ऐसा आदमी होगा जो धरती से सभी झूठ खत्म कर देगा। उसका संकेत अकबर की तरफ था।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि शीराज के ख्वाजा मौलाना जफरदार का विधर्मी मक्का के किन्हीं शरीफों की पुस्तिका लेकर आया जिसमें एक रिवाज लिखा हुआ था कि जमीं सात हजार साल तक अस्तित्व में रहेगी उसके बाद महदी प्रकट होगा। अब वह समय आ गया है जब बताया गया महदी प्रकट होगा। संभवतः महदी का अर्थ कयामत होने से सम्बन्धित किसी लक्षण से है।

इस प्रकार के और भी उदाहरण मुल्ला ने अपनी पुस्तक में दिए हैं जिनके कारण अकबर के दरबारी ही अकबर को इस्लाम विरोधी बना रहे थे।

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