जब से चांद बीबी ने श्रीकृष्ण की भक्ति करनी आरम्भ की थी, तब से दक्षिण भारत के सभी शिया एवं सुन्नी मुसलमान यहाँ तक कि हब्शी मुसलमान भी चांद बीबी की हत्या करने पर उतारू हो गए।
जब खानखाना दक्षिण में पहुँचा तो दानियाल ने उसे सबसे पहले अहमदनगर पर ही घेरा डालने के आदेश दिये। शहजादे के आदेश से खानखाना अब्दुर्रहीम ने अहमदनगर को घेर लिया।
मुगलों को फिर से आया देखकर चांद सुलताना ने अभंग खाँ हब्शी को पंद्रह हजार घुड़सवारों सहित किले से बाहर निकाल कर चित्तार की तरफ से दानियाल पर आक्रमण करने भेजा तथा चीते खाँ हब्शी को किले की आंतरिक सुरक्षा के लिये नियुक्त किया।
अब्दुर्रहीम खानखाना किसी भी कीमत पर चांद सुल्ताना से लड़ना नहीं चाहता था। अतः वह शहजादे दानियाल से अनुमति लेकर एक बार फिर चांद बीबी से मुगलों की अधीनता स्वीकार करवाने के लिए किले के भीतर गया।
चांद बीबी ने खानखाना से पूछा- ‘आप मुझे केवल इतना बताएं कि जब संधि की शर्तों के अनुसार मैं बराड़ पर अपना अधिकार त्याग चुकी हूँ, तब किस खुशी में आपकी सेनाओं ने फिर से अहमदनगर का रुख किया है?’
खानखाना ने कहा- ‘मैंने तो तुम्हें उसी समय चेता दिया था कि मुराद से संधि का कोई अर्थ नहीं है! वह तो मुराद को उस समय अहमदनगर से दूर ले जाने की चेष्टा मात्र थी। इस पर चांद ने पूछा कि अब आप दानियाल को किस तरह दूर ले जायेंगे?’
-‘एक और संधि करके।’ खानखाना ने जवाब दिया।
इस पर चांद ने पूछा- ‘पिछली बार की संधि में तो मुगलों को बरार दिया गया था, इस बार की संधि में हमें क्या देना होगा?’
– ‘यदि अहमदनगर को बचाना चाहती हैं तो बहादुर निजाम मेरे हवाले कर दें।’ खानखाना ने जवाब दिया।
पाठकों को स्मरण होगा कि बहादुर निजाम अहमदनगर का अवयस्क शासक था। वह चाँद के मरहूम भाई इब्राहीम निजामशाह का बेटा था। इससे चाँद बीबी बहादुर निजामशाह की बुआ लगती थी। चूंकि बहादुर निजामशाह बालक था इसलिये उसके स्थान पर चाँद ही शासन का काम देखती थी और इसी अधिकार से सुलताना कहलाती थी।
खानखाना ने चांद बीबी को वचन दिया कि मैं बहादुर निजामशाह को अपनी सुरक्षा में बादशाह अकबर के पास ले जाउंगा और बादशह से कहूंगा कि अहमदनगर का निजाम आपकी अधीनता स्वीकार करता है और इसके बदले में अपने राज्य की सुरक्षा चाहता है। उसके बाद मैं बहादुर निजाम शाह को वापिस सुरक्षित अहमदनगर लाऊंगा और तुम्हें सौंप दूंगा।
-‘क्या और कोई उपाय नहीं है?’ चांद ने पूछा।
-‘दूसरा उपाय शक्ति है किंतु इस समय भारत में किसी के पास भी ऐसी शक्ति नहीं है जो अकबर की सेनाओं को हरा सके।’ खानखाना ने जवाब दिया।
इस पर चांद ने कहा- ‘आप जो कुछ भी कह रहे हैं, यदि मैं उसे स्वीकार कर लूं तो इसका अर्थ होगा कि अहमदनगर ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।’
खानखाना ने कहा- ‘जिस प्रकार उत्तर भारत के हिन्दू राजाओं ने अपने राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिये मुगलिया सल्तनत की अधीनता स्वीकार कर ली है, उसी प्रकार यदि दक्षिणी राज्यों के सुलतान भी मुगलिया सल्तनत का प्रभुत्व स्वीकार कर लें तो वे अपने राज्य और प्रजा दोनों की सुरक्षा कर सकते हैं। जब मौका लगेगा तो सारे के सारे राज्य फिर से अपनी-अपनी खोई हुई स्वतंत्रता प्राप्त कर ही लेंगे।’
अहमदनगर राज्य की सुरक्षा का और कोई उपाय न देखकर चांद बीबी ने अब्दुर्रहीम खानखाना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसने अहमदनगर का अल्पवय शासक बहादुर निजामशाह अब्दुर्रहीम को सौंप दिया। खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बुरहानपुर के लिये रवाना हुआ जहाँ अकबर स्वयं डेरा डाले हुए था और युद्ध की समस्त प्रगति पर निगाह रख रहा था।
इधर खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बुरहानपुर के लिये रवाना हुआ और उधर राजू दखनी और अम्बर चम्पू हब्शी ने शाहअली के बेटे मुर्तिजा निजामशाह को अहमदनगर का स्वामी घोषित करके बादशाही थानों पर धावा बोल दिया। खानखाना बहादुर निजामशाह को लेकर बादशाह की सेवा में हाजिर हुआ और चाँद सुलताना का संदेश पढ़कर सुनाया कि यदि बादशाह अहमदनगर राज्य की सुरक्षा करे तो चाँद मुगलों की अधीनता स्वीकार कर लेगी। चाँद सुलताना के पत्र और बहादुर निजामशाह को अपनी सेवा में आया देखकर अकबर बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने चांद बीबी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा शहजादे दानियाल का विवाह खानखाना की बेटी जाना बेगम से करने की घोषणा की। इसके बाद बादशाह पूरी तरह संतुष्ट होकर आगरा लौट गया।
अभंग खाँ हब्शी जो स्वयं को चाँद सुलताना का विश्वसनीय आदमी बताते हुए थकता नहीं था, उसने चित्तार पहुँच कर अपना इरादा बदल लिया और अपने डेरों में खुद आग लगाकर जुनेर के किले को भाग गया।
चाँद ने यह समाचार सुना तो सिर पीटकर रह गयी किंतु जब चाँद सुलताना ने मुर्तिजा निजामशाह, राजू दखनी और अम्बर चम्पू को पूरी तरह नालायकी पर उतरे हुए देखा तो उसने सोचा कि यह ठीक ही हुआ जो अभंग खाँ जुनेर चला गया।
चाँद ने किलेदार चीते खाँ हब्शी से विचार विमर्श किया कि इन बदली हुई परिस्थितयों में बेहतर है कि किला दानियाल को सौंप दिया जाये और राजकीय कोष तथा राज्य सामग्री लेकर जुनेर के किले को चला जाये ताकि वहाँ हमारी सुरक्षा अधिक अच्छी तरह से हो सके।
चीते खाँ हब्शी ने यह बात सुनते ही सबसे यह कहना आरंभ कर दिया कि चाँद सुलताना मुगलों से मिल गयी है और उनको किला सौंपती है। चीते खाँ ने किले से बाहर नियुक्त दक्खिनियों से सम्पर्क किया और उनके लिये किले के गुप्त-मार्ग खोल दिये।
जब दक्खिनी किले में प्रवेश कर गये तो हब्शी भी उनसे जा मिले। इन लोगों ने मिलकर उसी दिन चांद बीबी की हत्या कर दी। इस प्रकार चांद सुल्ताना राजनीति की गंदी दलदल में फंसकर दर्दनाक मृत्यु को प्राप्त हुई।
जब खानखाना अब्दुर्रहीम बुरहानपुर से बहादुर निजामशाह को लेकर अहमदनगर लौटा तो उसने मार्ग में चांद बीबी की हत्या का समाचार सुना। इस समाचार को सुनकर खानखाना के दुःख का पार न रहा। उसके मुँह से बरबस ही निकला-
रहिमन मनहिं लगाहि के, देखि लेहु किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय।
अर्थात्- कोई किसी से भी प्रेम कर ले, उससे क्या होता है? मनुष्य के वश में क्या है? जो कुछ है नारायण की इच्छा के अधीन है।