Sunday, December 8, 2024
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दक्षिण के शिया राज्य (165)

अकबर पूरे भारत पर अधिकार करना चाहता था इसलिए दक्षिण के शिया राज्य अकबर की आंखों की किरकिरी बने हुए थे।

विंध्याचल की पहाड़ियाँ भारत को उत्तर-भारत तथा दक्षिण-भारत में विभक्त करती हैं। उत्तर भारत के कई शासक दक्षिण भारत पर आक्रमण करके उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित करते आये थे।

अकबर ने दक्षिण भारत पर अधिकार करने का निश्चय किया, इसके कई कारण थे। पाठकों को स्मरण होगा कि अकबर ने सम्पूर्ण भारत पर अधिकार करने का निश्चय किया था। अब तक वह पूर्व में बिहार, उड़ीसा, एवं बंगाल के आखिरी छोर तक अधिकार कर चुका था।

पश्चिम में गजनी से लेकर काबुल एवं कांधार तक का क्षेत्र उसके अधीन था। उत्तर में कांगड़ा एवं कश्मीर उसके अधीन थे। जबकि दक्षिण में वह केवल गुजरात एवं मालवा तक ही पहुंच सका था।

इन दिनों दक्षिण भारत की दशा अत्यंत शोचनीय थी। बहमनी राज्य छिन्न-भिन्न होकर पाँच स्वतन्त्र राज्यों- अहमद नगर, बीजापुर, गोलकुण्डा, बीदर तथा बरार में विभक्त हो गया था।

जब तक विजय नगर का हिन्दू राज्य जीवित था, तब तक ये पाँचों राज्य संगठित होकर उससे मोर्चा लेते रहे परन्तु जब ई.1565 में विजयनगर की पराजय तथा उसका उन्मूलन हो गया तब दक्षिण के मुसलमान राज्य सर्वोच्चता के लिए परस्पर संघर्ष करने लगे। अकबर ने दक्षिण की इस राजनीतिक कुव्यवस्था से लाभ उठाने का निश्चय किया। 

दक्षिण के राज्यों में इन दिनों शिया, सुन्नी तथा महदवी लोग एक-दूसरे को उन्मूलित करने का प्रयास कर रहे थे। अकबर को लगता था कि दक्षिण भारत के मुसलमानों की धार्मिक कट्टरता अंततः इस्लाम का ही नुक्सान कर रही थी इसलिये अकबर ने दक्षिण भारत को मुगल सल्तनत के अधीन लाने का निश्चय किया।

इन दिनों अरब सागर के तट पर पुर्तगालियों की शक्ति तेजी से बढ़ रही थी। ये लोग अपनी राजनीतिक तथा व्यापारिक शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ ईसाई धर्म का प्रचार भी कर रहे थे। वे धार्मिक उन्माद के कारण मुसलमानों पर बड़े अत्याचार करते थे। इसलिये अकबर ने उन्हें अरब सागर के तट से उन्मूलित करने का निश्चय किया।

पुर्तगालियों को उन्मूलित करने के दो उपाय थे- या तो अकबर स्वयं एक विशाल जहाजी बेड़े का निर्माण करके पुर्तगालियों पर आक्रमण करता या फिर वह दक्षिण भारत के राज्यों पर अधिकार करके उनके साधनों से पुर्तगालियों पर आक्रमण करता। अनेक कारणों से जहाजी बेड़े का निर्माण कर पाना संभव नहीं था। इसलिये अकबर ने दक्षिण के राज्यों को मुगल साम्राज्य के अधीन लाने का निर्णय किया।

दक्षिण भारत पर आक्रमण करने का एक बड़ा कारण और भी था। साम्राज्य विस्तार के लिये अकबर ने विशाल सेना का निर्माण कर लिया था। इस सेना को राजधानी के निकट रखना अत्यंत खतरनाक था। वह किसी भी समय विद्रोह कर सकती थी। सेना की विभिन्न टुकड़ियों में संघर्ष न हो इसके लिये उसे निरन्तर युद्धों में संलग्न रखना आवश्यक था।

इस सेना का वेतन चुकाने के लिये धन की आवश्यकता रहती थी। सेना की इन तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति दक्षिण भारत पर आक्रमण करके की जा सकती थी।

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अकबर के दक्षिण अभियान की चर्चा आरम्भ करने से पहले हमें दक्षिण भारत के पांच शिया मुस्लिम राज्यों के उदय के इतिहास की कुछ चर्चा करनी चाहिए। आज जिस भूभाग को महाराष्ट्र के नाम से जाना जाता है, किसी समय उस भूभाग पर देवगिरि नामक अत्यंत प्राचीन राज्य स्थित था।

ई.1306 में अल्लाउदीन खिलजी के गुलाम मलिक काफूर ने देवगिरि के राजा रामचंद्र और उसके परिवार को कैद करके दिल्ली भेज दिया था और देवगिरि को दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित कर लिया था। तब से दक्षिण में मुस्लिम शासन का आरंभ हुआ।

इसी देवगिरि में हसन गंगू नामक एक शिया मुसलमान का जन्म हुआ। फरिश्ता ने लिखा है कि बड़े होने पर हसन गंगू ने एक ब्राह्मण के यहाँ नौकरी कर ली।

एक दिन उस ब्राह्मण ने हसन गंगू की भाग्य-रेखाओं को देखकर बताया कि एक दिन तू इस प्रदेश का राजा बनेगा। उसी ब्राह्मण के निर्देश पर हसन गंगू मुहम्मद बिन तुगलक की सेना में भर्ती हो गया और शीघ्र ही वह दक्षिण भारत में दिल्ली सल्तनत का सबसे विश्वस्त आदमी बन गया।

ई.1347 में देवगिरि का सुल्तान मर गया। स्थितियाँ कुछ इस तरह की बनीं कि हसन गंगू ‘हसन अब्दुल मुजफ्फर अलाउद्दीन बहमनशाह’ के नाम से देवगिरि का सुल्तान बन गया और उसने अपने ब्राह्मण स्वामी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये अपने नवनिर्मित राज्य का नाम ‘बहमनी राज्य’ रख दिया। अपने उसी पुराने ब्राह्मण स्वामी को हसन ने अपना प्रधानमंत्री बनाया।

कुछ लोग हसन गंगू की इस कहानी को झूठ मानते हैं। उनके अनुसार हसन गंगू एक विदेशी मुसलमान था। वह कुछ विद्रोहियों के साथ राजधानी दिल्ली छोड़कर दक्षिण भारत की ओर भाग आया था। उसने इस्माइल अफगान को सुल्तान के पद से हटा दिया और 3 अगस्त 1347 को स्वयं दक्कन का सुल्तान बन गया।

हसन गंगू ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया। उसने जफर खाँ की उपाधि धारण की तथा अल्लाउद्दीन बहमनशाह के नाम से सुल्तान की गद्दी पर बैठा। उसके राज्य को बहमनी सल्तनत कहा गया। वह स्वयं को ईरान के शाह बहमन बिन असफन्द यार का वंशज बताता था।

हसन गंगू के वंशज एक से बढ़कर एक क्रूर और अत्याचारी सुल्तान हुए तथा उन्होंने अपनी पूरी शक्ति अपने पड़ौसी विजयनगर साम्राज्य को कुचलने में लगाई। ई.1422 में अहमदशाह बहमनी राज्य का सुल्तान हुआ। वह हसन गंगू की पांचवी पीढ़ी में था।

उसने विजयनगर पर आक्रमण करके बीस हजार स्त्री पुरुषों को मौत के घाट उतारा। विजयनगर के राजा देवराय को अपनी प्रजा की रक्षा के लिये अहमदशाह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।

ई.1461 में हसन गंगू की सातवीं पीढ़ी में उत्पन्न हुमायूँ बहमनी राज्य का सुल्तान हुआ। वह क्रूरता की जीती-जागती मिसाल था। उसे इतिहास में जालिम हुमायूँ कहा गया है।

उसके अमीर जब प्रातः उसे सलाम करने जाते थे तो अपने बच्चों से अंतिम विदा लेकर जाते थे क्योंकि उनके वापिस जीवित लौटने की निश्चितता नहीं थी। वह कुसूरवार को ही नहीं अपितु उसके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार देता था।

हसन खाँ गंगू के वंशज पौने दो सौ साल तक बहमनी राज्य पर शासन करते रहे। ई.1538 में इस वंश के अंतिम सुल्तान कलीमुल्ला शाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा इलहमातउल्ला वेश बदल कर मक्का भाग गया। उसके बाद बहमनी राज्य पाँच राज्यों में विभक्त हो गया।

पहला राज्य अहमदनगर, दूसरा खानदेश, तीसरा बीजापुर, चौथा बरार और पाँचवा गोलकुण्डा। इन पाँचों राज्यों में शिया मुस्लिम शासन करने लगे। वे सब के सब अपने आप को बादशाह कहते थे। जब पूर्व-पश्चिम तथा उत्तर में भारत के विशाल क्षेत्र अकबर के अधीन हो गए तब अकबर ने दक्षिण भारत के इन पांचों शिया राज्यों को निगलने की तैयारी आरम्भ कर दी।

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