लंदन पहुंचकर वल्लभभाई ने अपना अध्ययन मिडिल टेंपुल में आरम्भ किया। वे एक सस्ते बोर्डिंग हाउस में रहने लगे तथा अपना अधिकांश समय पुस्तकों के अध्ययन में व्यतीत करने लगे। वल्लभभाई के बोर्डिंग हाउस से उनका कॉलेज लगभग 19 किलोमीटर दूर था। वे राशि बचाने के लिये सदैव पैदल चलकर वहाँ पहुंचते।
इसके लिये वे बहुत जल्दी बोर्डिंग से निकल जाते ताकि 9 बजे पुस्तकालय खुलने से पहले वहाँ पहुंच जायें। उनके अध्ययन का आधार केन्द्र यही पुस्तकालय था। पुस्तकों का भारी-भरकम मूल्य बचाने के लिये ऐसा किया जाना आवश्यक था। वल्लभभाई घण्टों वहाँ बैठकर पढ़ते रहते तथा पुस्तकालय बंद होने से पहले कभी भी वहाँ से नहीं निकलते थे।
अपने भोजन के लिये वल्लभभाई ने बहुत साधारण व्यवस्था कर रखी थी। तेतीस साल का एक विधुर जिसके बच्चे हजारों किलोमीटर दूर भारत में हों, उसके लिये लंदन में आकर्षणों की कमी नहीं थी किंतु वल्लभभाई को लंदन की चमक-दमक से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने अपने संस्कारों को कभी नहीं छोड़ा। अपने संकल्प को कभी नहीं त्यागा। अपने लंदन प्रवास के दौरान वे सारे दिन या तो पैदल चलते या फिर पुस्तकें पढ़ते।