मई 1923 में नागपुर के अंग्रेज जिलाधीश ने तिरंगा झण्डा लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया। इस पर स्वराजियों के जत्थे झण्डे लेकर निकलने लगे और गिरफ्तारियां देने लगे। एक दिन जमनालाल बजाज ने स्वराजियों का नेतृत्व करते हुए झण्डा जुलूस निकाला। उन्हें भी बंदी बना लिया गया।
जब यह समाचार, सरदार पटेल को मिला तो वे भी आंदोलन का नेतृत्व करने नागपुर पहुंचे। उन्होंने जिलाधीश के आदेश को अमान्य ठहराते हुए झण्डा आंदोलन जारी रखने की घोषणा की। इस पर जिलाधीश ने सरदार पटेल को वार्त्ता के लिये बुलाया।
सरदार पटेल जिलाधीश के कार्यालय पहुंचे और उसे समझाया कि इस प्रकार के आंदोलनों पर रोक लगाने का न कोई औचित्य है और न कोई कानूनी आधार।
जिलाधीश समझ चुका था कि जब सरदार पटेल आंदोलन में कूद पड़े हैं तो उसका परिणाम ब्रिटिश शासन के लिये अच्छा नहीं होगा इसलिये जिलाधीश ने पटेल की बात मान ली और तिरंगा झण्डा लेकर चलने पर रोक हटा ली। उसने बंदी बनाये गये समस्त सत्याग्रहियों को भी रिहा कर दिया।