कामरान ने मिर्जा हिंदाल को लमगानात और उसके निकटवर्ती दर्रों का गवर्नर नियुक्त किया तो मिर्जा हिंदाल नाराज होकर बदख्शां चला गया तथा वहाँ एकांतवास करने लगा। हिंदाल की माता उसे बदख्शां से काबुल ले आई। उधर हुमायूँ सिंध के ‘जून’ नामक स्थान पर अपनी बुआ खानजादः बेगम के लौटकर आने की प्रतीक्षा करता रहा। हुमायूँ का आर्थिक संकट गहराता जा रहा था और उसके पास सैनिकों की संख्या भी बहुत कम रह गई थी। इसलिए हुमायूँ स्वयं ही कांधार की तरफ जाने का विचार करने लगा।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि ठट्ठा के शासक मिर्जा शाह हुसैन ने हुमायूँ के पास अपने दूत भेजकर उससे कहलवाया कि अब आपके लिए उचित है कि आप सिंध छोड़कर कांधार चले जाएं। हुमायूँ को लगा कि मेरी स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि अब तो दुश्मनों को भी मुझ पर दया आ गई।
पाठकों को स्मरण होगा कि सेहवन के किलेदार मीर अलैकः ने हुमायूँ की नावों को सामान सहित पकड़ लिया था और हुमायूँ को सलाह दी थी कि पुराने नमक का विचार करके मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप सेहवन से चले जाएं। इस पर हुमायूँ ने सेहवन के किलेदार की सलाह मानकर सेहवन का क्षेत्र छोड़ दिया था। अब ठीक यही सलाह ठट्ठा का शासक भी दे रहा था।
हुमायूँ ने मिर्जा शाह हुसैन की यह सलाह स्वीकार कर ली तथा मिर्जा शाह हुसैन को सूचित किया कि मेरे कंप (शिविर) में घोड़े एवं ऊंट बहुत कम बचे हैं, यदि तुम हमें कुछ घोड़े एवं ऊंट दे दो तो हम कांधार चले जावें।
मिर्जा शाह हुसैन ने हुमायूँ की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा उससे कहलवाया कि जब आप नदी पार करेंगे, तब एक हजार ऊंट जो उस पार हैं, हम आपके पास पास भेज देंगे। इस पर हुमायूँ अपने स्त्री, पुत्र, सैनिक एवं कर्मचारियों के साथ नावों में सवार हुआ और तीन दिन तक नदी में चलता रहा। ठट्ठा राज्य की सीमा के पार ‘नवासी’ नामक एक गांव था जहाँ हुमायूँ तथा उसके साथियों ने नावों से उतर कर स्थल मार्ग से यात्रा करने का विचार किया।
हुमायूँ ने अपने मुख्य ऊंटवान सुल्तान कुली को मिर्जा शाह हुसैन के अधिकारियों के पास भेजा ताकि वह शाह द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे ऊंटों को ले आए। सुल्तान कुली हुमायूँ के आदेशानुसार मिर्जा शाह के अधिकारियों से एक हजार ऊंट ले आया। हुमायूँ ने सभी ऊंट अपने उन सैनिकों को दे दिए जिनके पास सवारी करने के लिए घोड़ा या ऊंट नहीं बचा था। शेष बचे हुए ऊंट सामान ढोने के लिए नियत किए गए। गुलबदन बेगम ने मिर्जा शाह हुसैन द्वारा उपलब्ध कराए गए ऊंटों का बड़ा रोचक वर्णन किया है जिससे ज्ञात होता है कि मिर्जा ने हुमायूँ को ऊंट उपलब्ध करवाकर उसके प्रति उदारता का परिचय नहीं दिया था अपितु यह भी मिर्जा शाह हुसैन द्वारा हुमायूँ को बरबादी के अंतिम छोर पर पहुंचाने का बहुत बड़ा षड़यंत्र था।
ये ऊंट सीधे जंगलों से पकड़ कर लाए गए थे और इन पर कभी भी किसी मनुष्य ने सवारी नहीं की थी। इसलिए जब इन ऊंटों पर सैनिक और अन्य मनुष्य सवार हुए तो ऊंट उन्हें धरती पर पटक कर जंगल की तरफ भाग गए। जिन ऊंटों पर बोझा लादा गया, वे या तो बोझा गिराकर जंगलों में भाग गए या फिर पीठ पर बोझा लिए हुए ही उछलते-कूदते हुए जंगलों की तरफ भाग गए।
बहुत से ऊंट घोड़ों की टापों से बिदक जाते थे और उछलने लगते थे। इस कारण बहुत से सैनिक घायल हो गए और ऊंटों की पीठ पर लदा हुआ सामान ऊंटों की ही लातों द्वारा कुचल कर नष्ट कर दिया गया। इस प्रकार हुमायूँ का बहुत सा रसद और आवश्यकता का अन्य सामान नष्ट हो गया। तब कहीं जाकर हुमायूँ को समझ में आया कि दुश्मन ने हुमायूँ पर दया नहीं की थी, अपितु बर्बादी का जाल रचा था। दो सौ से अधिक ऊंट हुमायूँ को बरबाद करके जंगलों में भाग गए।
इस प्रकार हर ओर से मायूस होकर हुमायूँ ने भारत की भूमि छोड़ दी और उसने जीवन में एक बार फिर कांधार की तरफ कूच करने का निर्णय किया।
जब हुमायूँ का काफिला ‘सीबी’ के निकट पहुंचा तो वहाँ मिर्जा शाह हुसैन का मुख्य ऊंटवान महमूद स्वयं मौजूद था। उसने सीबी के किले को भीतर से बंद कर लिया और हुमायूँ के लिए नया जाल बुनने लगा। हुमायूँ ने सीबी से छः कोस की दूरी पर अपना डेरा लगाया। यह स्थान वर्तमान समय में पाकिस्तान के बलोचिस्तान नामक प्रांत में स्थित है तथा दुनिया की सबसे गर्म पहाड़ियों के लिए जाना जाता है। इन पहाड़ियों का तापमान गर्मियों में 52 डिग्री सैल्सियस तक पहुंच जाता है किंतु इस समय सर्दियां थीं इसलिए हुमायूँ को मौसम की तरफ से कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई।
हुमायूँ ने अपने कुछ गुप्तचर हुमायूँ के प्रति कामरान की मनोदशा जानने के लिए मीर अलादोस्त नामक अपने एक परिचित के पास भेजे जो कांधार में रहता था। इन गुप्तचरों के लौट कर आने तक हुमायूँ ने इसी स्थान पर टिके रहने का निश्चय किया। मिर्जा शाह हुसैन के मुख्य ऊंटवान महमूद ने हुमायूँ के गुप्तचरों को पकड़ लिया किंतु हुमायूँ को यह बात ज्ञात नहीं हो सकी। वह उन गुप्तचरों की प्रतीक्षा में सीबी के निकट ही रुका रहा। किसी तरह से ये गुप्तचर स्वयं को मुक्त करवाकर मीर अलादोस्त तक पहुंचे।
मीर अलादोस्त ने उन गुप्तचरों के साथ तीन हजार अनार तथा कुछ मेवा हुमायूँ के लिए भिजवाई और उसे सलाह दी- ‘इस समय मिर्जा अस्करी कांधार में है। यदि वह हुमायूँ को आमंत्रित करे तभी हुमायूँ कांधार की तरफ जाए अन्यथा कांधार और काबुल से दूर ही रहे। बादशाह को समझना चाहिए कि उनके पास सेना नहीं है अतः बादशाह स्वयं ही सोच लें कि कामरान उनके साथ कैसा व्यवहार करेगा!’
इस विचित्र संदेश को सुनकर बादशाह हुमायूँ गहरी चिंता में डूब गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता