दिसम्बर 1929 में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन होना तय हुआ। कांग्रेस अब तक औपनिवेशिक राज्य को ही अपनी मुख्य मांग बताती आई थी किंतु युवा नेताओं को यह मांग पसंद नहीं आती थी। वे पूर्ण स्वराज्य को अपना लक्ष्य घोषित करना चाहते थे। प्रांतों से इस अधिवेशन के अध्यक्ष पद के लिये तीन नाम आये।
पांच प्रांतों ने गांधीजी का, तीन प्रांतों ने सरदार पटेल का तथा दो प्रांतों ने जवाहरलाल नेहरू का नाम भेजा। गांधीजी चाहते थे कि जवाहरलाल को इस अधिवेशन की अध्यक्षता दी जाये, इसलिये उन्होंने स्वयं अध्यक्ष बनने से मना कर दिया। पटेल ने भी लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता करने से मना कर दिया।
जब लोगों ने पटेल से इसका कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि मेरे सेनापति गांधीजी हैं, जहाँ वे रहेंगे, वहीं मैं रहूंगा। इस प्रकार जवाहरलाल को इस अधिवेशन की अध्यक्षता मिल गई।जवाहरलाल ने इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हो गया।
31 दिसम्बर 1929 को जवाहरलाल ने रावी नदी के तट पर तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के संकल्प की घोषणा कर दी। यह एक नये संघर्ष का आरम्भ था। आगे का पथ कांटों से भरा था जिसमें मुसीबतों के अतिरिक्त और कुछ न था। देश के सामने आग का दरिया था जिसे डूबकर पार करना था।