अठारहवीं सदी में जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैंड राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बँटे हुए थे, जिनके बीच-बीच में कुछ स्वायत्त क्षेत्र भी स्थित थे। इसी प्रकार पूर्वी और मध्य यूरोप के क्षेत्र निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन थे और इन क्षेत्रों में तरह-तरह के लोग रहते थे जो प्राचीन काल में किसी न किसी कबीले से सम्बद्ध थे।
इस कारण वे एक बड़े देश के रूप में अपनी सामूहिक पहचान को नहीं देख पाते थे तथा एक दूसरे की संस्कृति को अस्वीकार्य दृष्टि से देखते थे। इन समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व, केवल सम्राट के प्रति उनकी निष्ठा थी। 18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नेपोलियन बोनापार्ट के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया। इटली, पोलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन ने ही ‘नवयुग’ का संदेश पहुँचाया।
नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ। 19वीं शताब्दी में यूरोप में राष्ट्रवाद (Nationalism) की लहर चली जिसने बहुत से यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। इस लहर ने जर्मनी, इटली, रोमानिया, यूनान, पोलैण्ड, बल्गारिया आदि देशों का निर्माण एवं एकीकरण किया। बहुत से देशों ने राष्ट्रवाद की भावना से उद्वेलित होकर स्वाधीनता संग्राम लड़े तथा अपने देशों को उपनिवेशवाद के दैत्य से मुक्ति दिलवाई।
इटली में राष्ट्रवाद का उदय
यूरोप में तेजी से पनप रहे राष्ट्रवाद के दौर में इटली में भी राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ। इटलीवासियों ने भी जातीय समूहों एवं कबीलों की पहचान से ऊपर उठकर सम्पूर्ण देश में एकता की आवश्यकता को अनुभव किया और उन्होंने इटली के छोटे-छोटे राज्यों को जोड़कर एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने का निश्चय किया। उन्हें रोम के प्राचीन गौरव का इतिहास ज्ञात था।
विद्या, कला और विज्ञान के क्षेत्र में वह प्राचीन काल में संसार का नेतृत्व करता था। अतः वे एक बार फिर से इटली को एक देश के रूप में गठित करके उसे पुनः संसार में गौरवशाली स्थान दिलाने का स्वप्न देखने लगे। इस कारण अनेक विफलताओं के उपरांत भी यह आंदोलन तब तक चलता रहा जब तक कि इटली के एकीकरण का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लिया गया।
इस आंदोलन का इतिहास बहुत लम्बा है। इटली के एकीकरण को इतालवी भाषा में ‘रिसोरजिमेंटो’ अर्थात् ‘पुनरुत्थान’ कहा जाता है। यह 19वीं सदी में इटली में घटित एक राजनैतिक और सामाजिक अभियान था जिसने इतालवी प्रायद्वीप के विभिन्न राज्यों को संगठित करके एक राष्ट्र बना दिया। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया ई.1814 से लेकर ई.1870 तक चली।
इटली में राष्ट्रवाद की चिन्गारी को दावानल में बदलने का काम उन यूरोपीय दैत्यों द्वारा आयोजित वियेना कांग्रेस के बाद आरम्भ हुआ जो स्वयं को महाशक्ति कहने का दंभ भरते थे।
राष्ट्रीयता के प्रसार में कवियों एवं लेखकों का योगदान
इटली में राष्ट्रीय भावनाओं के उदय में इटली के कवियों एवं लेखकों का बहुत बड़ा योगदान था किंतु इटली से बाहर के साहित्यकारों की इटली में उपस्थिति भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी।
अंग्रेज कवि कीट्स की रोम में मृत्यु
यूरोपीय साहित्यकारों एवं अंग्रेज कवियों को रोम इतना प्रिय लगता था कि उन्नीसवीं सदी के तीन बड़े अंग्रेज कवियों- शेली, कीट्स एवं बायरन में से एक कीट्स अपना देश छोड़कर रोम आ गया और यहीं निर्धनता एवं अभावों में जीवन बिताता हुआ कविताएं लिखता रहा। ई.1821 में केवल 26 वर्ष की आयु में रोम में कीट्स की मृत्यु हुई। तब कीट्स को दुनिया में कोई नहीं जानता था, रोम भी नहीं। कीट्स की मृत्यु के बाद उसके साहित्य को विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त हुई और वह आज भी दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
अंग्रेज कवि शेली की इटली के समुद्री तट पर मृत्यु
आज विश्व की शायद ही ऐसी कोई यूनिवर्सिटी होगी जिसमें अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थियों को अंग्रेज कवि ‘शेली’ न पढ़ाया जाता हो। शेली ने ‘गुलामी’ पर एक लम्बी कविता लिखी जिसका आशय इस प्रकार था-
स्वतंत्रता क्या है?
यह तो तुम खूब बता सकते हो,
है क्या चीज गुलामी,
नाम तुम्हारे का ही गुंजन।
यही गुलामी है-
कि काम तुम करते रहो मजदूरी लेकर,
केवल उतनी ही बस जिससे
अटके रहें तुम्हारे तन में प्राण तुम्हारे,
काल कोठरी के बंदी की भांति
परिश्रम अत्याचारी के हित करने।
बन जाओ तुम करघे, हल, तलवार, फावड़े उनके
और जुट जाओ उनकी रक्षा में, उनके पोषण में,
बिना विचारे इच्छा है या नहीं तुम्हारी।
यही गुलामी है-
कि तुम्हारे बच्चे भूखों मरें,
और उनकी माताएं सूख-सूख कर कांटा हो जावें-
जाड़े की चली हवाएं ठण्डी
जिनसे मरने लगे दीन बेचारे।
तुम्हें तरसते रहना है उस भोजन को,
जिसको धनवाला, मतवाला हो,
फैंक रहा अपने मोटे कुत्तों के आगे,
जो उसकी आंखों के नीचे।
छककर मस्त पड़े हैं सोते।
यही गुलामी है-
जिसमें बनना है तुमको दास आत्मा से भी,
जिससे रहे न तुमको काबू अपनी इच्छाओं पर,
और बनो तुम वैसे, जैसा लोग दूसरे तुम्हें बनावें।
और अंत में जब तुम करने लगो शिकायत,
धीरे-धीरे वृथा रुदन कर,
तब अत्याचारी के नौकर
तुमको और तुम्हारी पत्नियों को घोड़ों के तले कुचल कर,
ओस कणों की भांति लहू की बूंदें देते बिछा घास पर।
शेली ने ‘नास्तिकता की आवश्यकता’ शीर्षक से एक अंग्रेजी कविता लिखी। इस कविता के कारण इंग्लैण्ड के अंग्रेज उससे इतने नाराज हो गए कि शेली को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया। वह अपना देश छोड़कर इटली आ गया। कीट्स की मृत्यु के लगभग एक वर्ष बाद ई.1822 में इटली के समुद्री तट पर डूब जाने से शेली की मृत्यु हुई।
कीट्स एवं शेली दोनों इंग्लैण्ड छोड़कर इटली आए और दोनों ने निर्धनता का जीवन व्यतीत करते हुए सामाजिक व्यवस्था से विद्रोह करते हुए कविताओं की रचना की, इन दोनों घटनाओं से उन्नीसवीं सदी में रोम की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दुर्दशा का स्वतः ही पता चल जाता है।