जब बाबर को सांगा की सेना दिखाई दी तो बाबर को अपनी मृत्यु साक्षात् दिखाई देने लगी। भयभीत बाबर ने अपने पापों से तौबा करने का निश्चय किया तथा शराब का सेवन न करने की शपथ ली। इस समय बाबर अपनी जन्मभूमि फरगना और अपनी राजधानी काबुल से हजारों किलोमीटर दूर अनजानी भूमि पर खड़ा था।
उसके सिर पर प्रबल शत्रु खड़ा था और उसके संगी-सहायक विश्वसनीय नहीं थे, जो थे वे भी हिम्मत हार चुके थे। हिन्दुस्तानियों अर्थात् हिन्दुस्तान में सदियों से शासन कर रहे अफगानियों की योग्यता एवं नीयत पर बाबर तनिक भी भरोसा नहीं करता था। बाबर ने अपने आत्मकथा में बार-बार लिखा है कि हिन्दुस्तानियों अर्थात् अफगानी सेनापतियों को जिम्मेदारी भरे कार्य नहीं सौंपे जा सकते क्योंकि वे अयोग्य हैं तथा धोखेबाज हैं।
बाबर के पास काबुल से आए अफगानी सैनिकों एवं बेगों की संख्या कई हजार थी जिन्हें बाबर अग्रिम मोर्चे सौंपकर युद्ध करना चाहता था। 17 मार्च 1526 को बाबर की सेना ने खानवा के मैदान में शिविर लगाया। खेमे गाढ़ दिए गए और उनके चारों ओर तेजी से खाइयां खोदी जाने लगीं ताकि रात्रि में शत्रु मुगल शिविर में न घुस सके।
बाबर ने अपने सैनिकों की संख्या का उल्लेख नहीं किया है किंतु अपनी आत्मकथा में अपने समकालीन लेखक शेख जैनी की पुस्तक फतहनामा के हवाले से राणा सांगा की सेना का विवरण देते हुए लिखा है कि-
‘सांगा के पास कम से कम 2 लाख 22 हजार सैनिक थे जिनमें 1 लाख सैनिक राणा तथा उसके अधीन-सामंतों के थे और 1 लाख 22 हजार सैनिक मित्र-राजाओं के थे जिनमें वागड़ अर्थात् डूंगरपुर के रावल उदयसिंह के पास 12 हजार, चंदेरी के शासक मेदिनीराय के पास 12 हजार, सलहदी के पास 30 हजार, हसन खाँ मेवाती के पास 12 हजार, ईडर के राजा वारमल के पास 4 हजार, नरपत हाड़ा के पास 7 हजार, कच्छ के राजा सत्रवी के पास 6 हजार, धर्मदेव के पास 4 हजार, वीरसिंह देव के पास 4 हजार और सिकंदर लोदी के पुत्र महमूद खाँ के पास 10 हजार घुड़सवार सैनिक थे।’
शेख जैनी ने एक ओर तो सांगा के दल में एकत्रित सैनिकों की संख्या अत्यंत बढ़ा-चढ़ाकर लिखी है तो दूसरी ओर मारवाड़ के राव गांगा की सेना, आम्बेर के राव पृथ्वीराज की सेना, बीकानेर के कुंवर कल्याणमल की सेना, अन्तरवेद से चंद्रभाण चौहान और माणिकचंद चौहान आदि बड़े राजाओं की सेनाओं का उल्लेख ही नहीं किया है। स्पष्ट है कि शेख जैनी ने बिना जानकारी के ही सांगा की सेना का वर्णन किया है और चालाक बाबर ने उसी विवरण को अपनी पुस्तक में लिख दिया है।
शेख जैनी ने लिखा है- ‘वह अभिमानी काफिर अर्थात् राणा सांगा जो कि दिल का अंधा और पत्थर-हृदय वाला था, अभागे एवं विनाश को प्राप्त होने वाले काफिरों की सेना लेकर इस्लाम के अनुयाइयों से युद्ध करने हजरत मुहम्मद की जिन पर अल्लाह की कृपा हो, शरीअत के विनाश हेतु अग्रसर हुआ। बादशाही सेना के मुजाहिद आसमानी आदेश के समान काने दज्जाल पर टूट पड़े।’
इस्लाम में मान्यता है कि कयामत से पहले दज्जाल नामक शैतान प्रकट होगा जो एक आंख से काना होगा। शेख जैनी ने महाराणा सांगा की तुलना उसी दज्जाल से की है क्योंकि महाराणा सांगा भी एक युद्ध में अपनी एक आंख गंवा चुका था। शेख जैनी ने लिखा है- ‘उस दज्जाल ने बुद्धिमानों पर यह बात स्पष्ट कर दी कि जब दुर्भाग्य प्रारम्भ हो जाता है तो आंखें भी अंधी हो जाती हैं और उनके सामने यह आयत रख दी- जो कोई भी व्यक्ति सच्चे धर्म को उन्नति देने की चेष्टा करता है वह अपनी आत्मा के भले के लिए ही प्रयत्नशील होता है।’
अर्थात् शेख जैनी के अनुसार राणा सांगा ने हिन्दुओं को समझाया कि वे सच्चे धर्म की उन्नति के लिए प्रयत्नशील होकर अपनी आत्मा का भला करें। चूंकि हिन्दुओं का दुर्भाग्य आरम्भ हो गया था इसलिए वे अंधे हो गए थे और उन्हें दज्जाल अर्थात् राणा सांगा की बातें अच्छी लगने लगी थीं!
शेख जैनी ने लिखा है- ‘इस समय काफिर सेना खानवा गांव के क्षेत्र में स्थित एक पहाड़ी के निकट पड़ाव किए हुए थी और हमारी सेना से दो कुरोह अर्थात् 4 मील दूर थी। जब दुष्ट काफिरों ने इस्लाम की सेना की गूंज सुनी तो उन्होंने अपनी अभागी सेना की पंक्तियाँ सुव्यवस्थित कर लीं और वे संगठित एवं एक-हृदय होकर पर्वत रूपी एवं देव सरीखे हाथियों पर भरोसा करके इस्लामिक शिविर की ओर अग्रसर हुए।
उन्हें देखकर इस्लामी सेना के योद्धा भी अपने सेना की पंक्तियों को सुव्यवस्थित करके अपने कलगी को ऊंचा किए हुए अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए अग्रसर हुए। हमने सावधानी के लिए रूम के गाजियों का अनुसरण करते हुए तुफंगचियों अर्थात् बंदूकचियों और राद-अंदाजों अर्थात् तोपचियों को सेना के आगे रखा तथा गाड़ियों की पंक्तियों को जंजीरों से बांधकर उनके आगे रखा।’
शेख जैनी ने बाबर की सेना के सेनापतियों की एक लम्बी सूची दी है तथा बाबर की सेना के दाईं एवं बाईं ओर नियुक्त तूलगमा सेना का भी वर्णन किया है।
बाबर ने अपनी सेना में कुछ ऐसे अधिकारी नियुक्त किए जो युद्ध के दौरान सेना के प्रत्येक हिस्से से सूचनाएं बाबर तक पहुंचाते रहें तथा बाबर के आदेश लेकर सेना के प्रत्येक हिस्से में ‘खानों’ एवं ‘बेगों’ तक पहुंचाएं। संभवतः युद्ध के दौरान नियुक्त होने वाले इस तरह के संदेशवाहकों का उल्लेख भारत के इतिहास में पहली बार मिलता है। इस व्यवस्था के कारण सेना के प्रत्येक अंग में तालमेल बना रहता था और अफवाहें नहीं फैल पाती थीं।
हिन्दुओं की सेना में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए हिन्दुओं की सेना में किसी भी अफवाह का फैल जाना एक आम समस्या थी। मुस्लिम सेनाओं को भारतीयों की इस कमजोरी का पता था इसलिए वे युद्ध के दौरान हिन्दू-सेना में अफवाहें फैलाते रहते थे।
अफगानिस्तान से आने वाली मुस्लिम सेनाओं में पानी पिलाने वालों की नियुक्ति भी की जाती थी जो युद्ध के मैदान में घूम-घूमकर सैनिकों एवं घायलों को पानी पिलाते रहते थे। हिन्दुओं की सेना में इस तरह की नियुक्तियों के बारे में इतिहास की किसी भी पुस्तक में उल्लेख नहीं मिलता है।
लगभग एक पहर तथा दो घड़ी दिन व्यतीत हो जाने पर दोनों ओर की सेनाएं एक दूसरे के निकट पहुंच गईं। अब युद्ध किसी भी क्षण आरम्भ हो सकता था। बाबर ने लिखा है- ‘जिस प्रकार प्रकाश का अंधकार से युद्ध हुआ करता है, उसी प्रकार दोनों दलों की मुठभेड़ हुई। दायें तथा बायें बाजू में ऐसा घनघोर युद्ध आरम्भ हुआ मानो भूकम्प आ गया हो और आकाश की अंतिम सीमा पर तेज झनझनाहट होने लगी हो!’
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता