हसन नसरुल्लाह की मौत पर मुस्लिम देशों में बेचैनी है तथा मध्य एशिया के मुस्लिम दुशों में शिया-सुन्नी दंगे भड़क गए हैं।
इस बीच हजारों पाकिस्तानियों ने 30 सितम्बर को पाकिस्तान की सरकार पर आरोप लगाया कि वह काफिरों का साथ दे रही है। इसके जवाब में पाकिस्तान की सरकार ने पाकिस्तान के कई शहरों में पुलिस सड़कों पर उतार दी तथा आम जनता पर तड़ातड़ गोलियां बरसाईं। कितने मरे, कितने घायल हुए, कितने गायब हुए, इसका कोई आंकड़ा पाकिस्तान की सरकार नहीं दे रही।
पाकिस्तान की जनता पाकिस्तान की सरकार से इस सवाल का जवाब चाहती है कि वह काफिरों का साथ क्यों दे रही है। पाकिस्तान की जनता की दृष्टि में अमरीकी और इजराइली सेनाएं काफिर हैं जिन्होंने मिलकर मुस्लिम जगत को नीचा दिखाया है?
सारा रोना-पीटना हिजबुल्ला चीफ हसन नसरुल्लाह के मारे जाने पर मचा है। 30 सितम्बर को पाकिस्तान के लोग हसन नसरुल्लाह की मौत का मातम मनाते हुए बड़ी संख्या में सड़कों पर निकले तथा कराची में अमरीकी कांसुलेट की तरफ बढ़ने लगे। जब पाकिस्तान की पुलिस ने उन्हें रोका तो पाकिस्तान के मुल्लाओं ने हाय-तौबा मचानी आरम्भ कर दी तथा आरोप लगाया कि शहबाज शरीफ की सरकार काफिरों का साथ दे रही है।
यह तो नहीं पता कि पाकिस्तान के लोग हाथों में पत्थर लेकर उग्र भीड़ के रूप में अमरीकी कोंसुलेट तक पहुंचकर किस सीमा तक हसन नसरुल्लाह का बदला लेना चाहते थे किंतु जब उग्र भीड़ पुलिस पर ही पत्थर फैंकने लगी तो पुलिस ने उस भीड़ पर गोलियां चलाईं। एक बार पुलिस की बंदूकों के मुंह खुले तो बहुत देर बाद ही बंद हो सके।
जैसे ही इस गोलीबारी के दृश्य पाकिस्तानी मीडिया के चैनलों पर दिखाई दिए तथा सोशियल मीडिया में तेजी से दौड़ने लगे तो इस्लामाबाद सहित कई शहरों में पाकिस्तान के लोग नसरुल्ला का मातम मनाने के लिए सड़कों पर निकल पड़े। इस कारण शहर-शहर में पुलिस को मोर्चा संभालना पड़ा और पूरे पाकिस्तान में अघोषित आपात काल जैसे हालात बन गए।
हैरानी इस बात पर है कि जहाँ दुनिया के 57 मुस्लिम बहुल दशों में से अधिकांश देशों में सुन्नी समुदाय नसरुल्ला की मौत पर खुशियां मना रहा है और वहाँ शिया-सुन्नी दंगे भड़के हुए हैं, वहीं पाकिस्तान जो कि सुन्नी बहुल देश है और जहाँ पर शियाओं को काफिर माना जाता है। वहाँ की जनता शिया नेता नसरुल्ला की मौत पर मातम मना रही है और पाकिस्तान की सरकार पर काफिर होने का आरोप लगा रही है।
समझ नहीं आता कि काफिरों के साथ कौन खड़ा है, पाकिस्तान की सरकार या जनता?
पाकिस्तान की जनता ने ओ आई सी अर्थात् ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कण्ट्रीज पर भी काफिरों के साथ खड़े होने का आरोप लगा है क्योंकि ओ आई सी का कोई भी सदस्य नसरुल्ला की मौत पर कुछ भी करने या बोलने को तैयार नहीं है, सिवाय ईरान के जो कि स्वयं ईसाई देश है और हसन नसरुल्लाह जिसका एक बड़ा मोहरा था!
ईरान की शिया सेना कई बार पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र पर बमबारी करती रहती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमान पाकिस्तान से भागकर ईरान में घुसें। इसके बावजूद पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमान हिज्बुल्ला के शियाओं का साथ न देने के लिए अपनी ही सरकार को काफिर बता रहे हैं।
हसन नसरुल्लाह की मौत पर लेबनान की राजधानी बेरूत में भी सुन्नी मुसलमानों ने घर से बाहर निकलकर खुशियां मनाई हैं तथा सुन्नी औरतों ने सड़कों पर आकर मिठाइयां बांटी हैं क्योंकि नसरुल्ला के आतंकी आए दिन सुन्नी लड़कियों को उनके घरों से खींच कर ले जाते थे।
बेरूत की सड़कों पर ईसाई लड़कियों ने भी हाथों में प्ले कार्ड लेकर सार्वजनिक रूप से नाच-गाना किया है तथा इस बात की खुशी मनाई है कि अब बेरूत से और पूरे लेबनान से हिज्बुल्ला के आतंकियों का सफाया होने का रास्ता खुल गया है।
जब बेरूत में मुसलमान औरतें हसन नसरुल्लाह की मौत पर खुशियां मना रही हैं, ओआईसी देशों में नसरुल्ला की मौत पर शिया-सुन्नी दंगे भड़के हुए हैं तो पाकिस्तान की जनता अपनी छाती पर गोलियां क्यों खा रही है, यह बड़ी हैरानी करने वाली बात है!
ऐसा लगता है कि उचित नेतृत्व के अभाव में पाकिस्तान की जनता असमंजस के गहरे भंवर में फंसी हुई है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता