पाकिस्तान की नींव में पाँच लाख हिन्दुओं एवं सिक्खों का खून दबा हुआ है और कम से कम पांच करोड़ लोगों का पलायन छिपा हुआ है। पाकिस्तान बनने के 70 वर्ष बाद भी मौत एवं पलायन ही है पाकिस्तान की नियति !
मर कर भी न मिला चैन
भारत के तीन टुकड़े हो गये किंतु मर कर भी न मिला चैन वाली उक्ति चरितार्थ हुई। अलग होकर भी काश्मीर का विवाद ऊँट की पूँछ की तरह हवा में अटक गया। उसे लेकर पहले ई.1948 में, फिर ई.1965 में, उसके बाद ई.1971 में और उसके बाद ई.1993 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किये।
काश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी पाकिस्तान दबाये हुए बैठा है जिसमें से काफी बड़ा हिस्सा उसने चीन को लीज पर दे दिया है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि जम्मू-काश्मीर रियासत से भारत को जो भू-भाग प्राप्त हुआ था उसमें से आज भारत के नियंत्रण में जम्मू, काश्मीर घाटी, लद्दाख एवं सियाचिन ग्लेशियर को मिलाकर केवल 45 प्रतिशत ही बचा है। जबकि पाकिस्तान के नियंत्रण में गिलगित, बाल्टिस्तान एवं आजाद काश्मीर के नाम से 35 प्रतिशत हिस्सा है। शेष 20 प्र्रतिशत हिस्सा अर्थात् अक्साई-चिन तथा ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट चीन के नियंत्रण में है।
ई.1971 में जब पश्चिमी-पाकिस्तान ने पूर्वी-पाकिस्तान की जनता पर जुल्म ढाये तो लगभग एक करोड़ बांगलादेशी भारत में घुस गए। इस पर भारत ने मुक्तिवाहिनी भेजकर बांगलादेशियों की रक्षा की और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये। इससे पाकिस्तान को विश्व-समुदाय के समक्ष नीचा देखना पड़ा। इसकी कसक आज भी पाकिस्तान के मन में है और विगत कई दशकों से सीमापार से आतंकी हमले हो रहे हैं जिनमें हजारों भारतीय नागरिक और सिपाही अपनी जान गंवा चुके हैं।
आज का भारत मानव सभ्यता के उस मोड़ पर है जहाँ से उसे चंद्रमा और मंगल के धरातल पर मानव के विकास की कहानी नये सिरे से लिखनी है। विज्ञान के क्षेत्र में हमारे कदम इतने आगे बढ़ चुके हैं कि हमने एक साथ 29 सैटेलाइट अंतरिक्ष में लॉन्च किए हैं, अंतरिक्ष में घूमते हुए सैटेलाइट को मार गिराया है तथा भारतीय वैज्ञानिक अंतरिक्ष में युद्धाभ्यास कर रहे हैं किंतु दुर्भाग्य की बात है कि आतंकवादियों के बोझ तले दबा हुआ पाकिस्तान हमारे आगे बढ़ते हुए कदमों को पीछे की ओर खींचता रहता है।
पिछले 72 वर्षों में पाकिस्तान में हिन्दुस्तान के विरुद्ध नफरत और बैर पलता रहा है। पाकिस्तान के मदरसों में बच्चों को भारत के विरुद्ध नफरत का पाठ पढ़ाया जाता है। जिसके चलते मौत एवं पलायन का सिलसिला जारी है। पाकिस्तान के सैन्य प्रशिक्षण संस्थानों में भारत को शत्रु राष्ट्र के रूप में चित्रित किया जाता है। पाकिस्तान के नेता भारत के विरुद्ध अनर्गल दुष्प्रचार करके चुनाव जीतते हैं। विभाजन के बहत्तर साल बाद भी हमारी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। हम अच्छे पड़ौसी नहीं बन सके हैं।
भारत से अलग होने के बाद से ही पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमा पर निरंतर बमबारी हो रही है और भारतीय जवान उसका जवाब दे रहे हैं। इस कारण दोनों ओर के सैनिक अनवरत मारे जा रहे हैं। पाकिस्तान से हर साल सैंकड़ों आतंकवादी भारत में घुस आते हैं और निर्दोष प्रजा एवं सैनिकों का संहार करते हुए मारे जाते हैं। पूरी दुनिया यह तमाशा देख रही है और हम पाकिस्तान से शांति की आशा कर रहे हैं।
हमारी पहली और आखिरी इच्छा विश्व में शांति की स्थापना करने की है किंतु क्या हमें पाकिस्तान से उस समझदारी की आशा करनी चाहिये जो भारत और पाकिस्तान को भविष्य में कभी भी दो अच्छे पड़ौसियों के रूप में स्थापित होने में सहायता कर सकती है!
भारत ने अपनी ओर से समझदारी दिखाने के लिये क्या कुछ नहीं किया! सीमापार से लगातार हो रहे आतंकी हमलों और वहाँ से आ रही नकली मुद्रा एवं हथियारों के उपरांत भी भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक सम्बन्ध बनाए रखे हैं किंतु इस पर भी पाकिस्तान की ओर से मौत एवं पलायन का क्रम बंद नहीं होता!
पाकिस्तान में आने वाली बाढ़ एवं भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं में उसकी सहायता की है। यहाँ तक कि उसके साथ रेल एवं बस की परिवहन सेवाएं भी चला रखी हैं। बहत्तर साल तक ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा दिए रखने के बाद हमने ‘पुलमावा-त्रासदी’ होने पर उसका यह दर्जा समाप्त किया है।
इसे विडम्बना ही कहा जाना चाहिए कि पुलमावा हमले के बाद भारत को आने वाली कोई भी अंतर्राष्ट्रीय उड़ान पाकिस्तान के ऊपर से होकर नहीं होती, उसे हिन्द महासागर में डेढ़ हजार किलोमीटर का अतिरिक्त मार्ग तय करना पड़ता है किंतु बस और रेल आज भी चल रही हैं!
भारत के वायुयान का अपहरण एवं दहन
जनवरी 1971 में दो काश्मीरी युवकों मोहम्मद अशरफ एवं हाशिम कुरैशी ने श्रीनगर से जम्मू जा रहे भारतीय विमान का अपहरण कर लिया एवं उसे पाकिस्तान ले गए। पाकिस्तान की नियति में मौत एवं पलायन का यह रूप भी लिखा है!
इस पर पाकिस्तान में भारी समारोह मनाया गया। पाकिस्तान सरकार ने भारत सरकार की सहायता करने के स्थान पर भारत पर ही आरोप लगाया कि उसने जान-बूझ कर अपना विमान अपहरण करवाया और उसे पाकिस्तान भेज दिया। पाकिस्तान सरकार ने विमान को खाली करवाकर उसमें बैठे भारतीय नागरिकों को अमृतसर जाने वाले सड़कमार्ग पर छोड़ दिया तथा लाहौर हवाईअड्डे पर खड़े भारतीय विमान में आग लगा दी।
विमान के अपहर्ता मोहम्मद अशरफ एवं हाशिम कुरैशी पाकिस्तान में नायकों की तरह पूजे जाने लगे। लाहौर यूनिवर्सिटी की लड़कियाँ उन्हें सिर आंखों पर बिठाती थीं और कइयों की तो उनके पास रात गुजारने के लिए आपस में तकरार हो जाती थी, क्योंकि वे फख्र महसूस करती थीं कि मुजाहदीने कौम के सााि अपनी रात बिता रही हैं।
इन आतंकियों ने लाहौर, लायलपुर, मुल्तान, मिंटमुगरी आदि स्थानों पर सार्वजनिक रूप से सभाएं की एवं भारत के विरुद्ध भाषण दिए। भारत सरकार के अत्यधिक दबाव बनाए जाने पर इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें भारत की जेलों से भागकर आया हुआ आतंकवादी मकबूल बट्ट भी शामिल था। इन लोगों ने कोर्ट में बयान दिया कि पाकिस्तान सरकार हम पर बिना मतलब मुकदमा चला रही है, हमने तो यह कार्य पाकिस्तान सरकार की सहमति से किया था।
आतंक की खेती
विगत कुछ दशकों से पाकिस्तान में खुले रूप में आतंक की खेती हो रही है। ताकि मौत एवं पलायन का क्रम अनवतरत रूप से चलता रहे! हजारों देशी-विदेशी आतंकवादी पाकिस्तान में मिलिट्री ट्रेनिंग लेते है। उन्हें हथियार तथा रुपया देकर भारत की सीमा में धकेल दिया जाता है। जब भारत इन आतंकवादियों को पकड़ लेता है तो पाकिस्स्तान की सरकार और मिलिट्री उन्हें छुड़वाने के लिये कई तरह के हथकण्डे अपनाती है।
कांधार प्रकरण इसकी जीती-जागती मिसाल है जब भारत सरकार ने अजहर मसूद को कांधार ले जाकर छोड़ा और वह आज भी पाकिस्तान में रहकर आतंकवादी घटनाओं की साजिश रचता है। वास्तविकता तो यह है कि मसूद अजहर एवं हाफिज सईद जैसे आतंकवादी पाकिस्तान के वास्तविक शासक बन गये हैं।
मौत एवं पलायन के इन आकाओं के आदेश से पाकिस्तान का शासन संचालित होता है। कसाब जैसे आतंकियों को भारत भेजते रहना और भारत की जनता में भय का वातावरण बनाये रखना ही इन आतंकवादियों का वास्तविक उद्देश्य है।
वर्ष 2008 में इस्लामाबाद के मेरियेट होटल में आतंकवादियों ने 50 से अधिक विदेशी नागरिकों को मार डाला। इसके बाद ब्रिटिश एयरवेज ने 11 साल तक पाकिस्तान को अपनी एक भी उड़ान नहीं भरी। सितम्बर 2016 में काश्मीर के उरी मिलिट्री कैम्प पर हमला होने के बाद भारतीय सेना ने 30 सितम्बर 2016 की रात्रि में पाकिस्तान की सीमा में घुसकर आतंकी लांचिंग पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की जिसमें लगभग 50 आतंकी मारे गये तथा आतंकियों के 7 बड़े कैम्प नष्ट हुए। पुलमावा प्रकरण के बाद 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र पर हवाई हमला करके बड़ी संख्या में आतंकियों को मार डाला।
परमाणु बम फैंकने की धमकी
डॉ. अब्दुल कादिर खान को पाकिस्तान परमाणु कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। वह ई.1972-75 के बीच एम्सटरडम में फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी में काम करता था। इस दौरान उसने यूरेनियम के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाईं तथा ई.1976 में नीदरलैंड से कुछ गोपनीय दस्तावेज चुराकर पाकिस्तान भाग आया। पाकिस्तान में कादिर खान ने यूरेनियम संवर्धन प्लांट विकसित किया। वह चोरी-छिपे काम करता रहा। ई.1983 में कादिर खान पर नीदरलैण्ड से न्यूक्लिअर दस्तावेजों की चोरी का आरोप लगा।
इसके बाद कादिर खान का नाम उत्तर कोरिया, ईरान, ईराक और लीबिया को न्यूक्लियर डिजाइन्स और सामग्री बेचने से भी जुड़ा। कादिर खान द्वारा नीदरलैण्ड के यूरेंका ग्रुप की प्रयोगशालाओं से चुराई गई जानकारी के आधार पर ही पाकिस्तान में अपना परमाणु बम विकसित किया।
यूएनओ द्वारा पाकिस्तान से कादिर खान के विरुद्ध कार्यवाही करने को कहा गया। कादिर खान को बंदी बना लिया गया किंतु पाकिस्तान की कोर्ट ने उसे निर्दोष पाया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर माना जाता है कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में चीन ने मदद की। पाकिस्तान द्वारा परमाणु बम विकसित कर लिए जाने के बाद से, जब भी भारत पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कदम उठाता है तो पाकिस्तान, भारत पर परमाणु बम फैंकने की धमकी देता है।
पाकिस्तान में परमाणु बम का बटन पाकिस्तानी सेना के पास है जो आतंकवाद के अंतर्राष्ट्रीय सरगनाओं द्वारा नियन्त्रित होती है और पाकिस्तान की सरकार को अंधेरे में रखकर कभी भी कोई खतरनाक कदम उठा सकती है।
इसलिये भारत की कार्यवाहियां हमेशा कमजोर दिखाई देती हैं किंतु उरी और पुलमावा हमले के बाद पूरी दुनिया में पाकिस्तान के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। दुनिया के बहुत से देशों ने भारत द्वारा 30 सितम्बर 2016 तथा 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान में घुस कर किये गये मिलिट्री ऑपरेशन्स को समर्थन दिया है।
भविष्य की आशंकाएँ
इंटरनैशनल फिजिशंस फॉर द प्रिवेंशन ऑफ न्यूक्लियर वार (आईपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा दिसंबर 2013 में जारी रिपोर्ट ‘परमाणु अकाल: दो अरब लोगों को खतरा’ में कहा गया कि यदि भारत पाकिस्तान में एक और युद्ध हुआ और उसमें परमाणु हथियारों का प्रयोग किया गया तो सम्भवतः पृथ्वी पर मानव सभ्यता का ही अंत हो जाएगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, परमाणु युद्ध वैश्विक पर्यावरण और कृषि उत्पादन पर इतना बुरा प्रभाव डालेगा कि दुनिया की एक-चौथाई जनसंख्या अर्थात् दो अरब से अधिक लोगों की मृत्यु हो सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के साथ ही चीन की भी पूरी की पूरी मानव जनसंख्या समाप्त हो जाए।
चीन है पाकिस्तान के आतंकियों का समर्थक
भारत की नरेन्द्र मोदी सरकार ने यूएनओ के माध्यम से मसूद अजहर को अंतराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाने के प्रयास नए सिरे से प्रारम्भ किए। पूरी दुनिया को भारत का समर्थन मिला किंतु चीन ने वीटो करके पाकिस्तान का समर्थन किया तथा मसूद अजहर को आतंकी घोषित नहीं किया जा सका। चीन ने कई वर्षों तक यही नीति अपनाई। अंततः अमरीका, रूस, फ्रांस, इंग्लैण्ड सहित विश्व के अनेक देशों के दबाव पर 2 मई 2019 को मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया गया।
नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान को एक्सपोज कर रहे हैं
अमरीका विगत लगभग 70 साल से पाकिस्तान की गरीब जनता को मदद पहुंचाने की आड़ में भारत-रूस मैत्री के विरुद्ध अपनी गतिविधियां चलाता रहा है किंतु त्रासदी यह है कि अमरीका से मिला धन पाकिस्तान के आतंकवादी छीन लेते हैं और उसी धन से वे अमरीका सहित पूरे विश्व में आतंकी गतिविधियों का संचालन करते हैं तथा मौत एवं पलायन का घृणित खेल खेलते हैं।
जब उत्तरी कोरिया ने अमरीका पर परमाणु बम फोड़ने की धमकी दी और चीन पाकिस्तान की सरकार को पैसे देकर ग्वादर बंदरगाह तक चढ़ आया तो अमरीका को एशिया में विश्वसनीय और मजबूत मित्र देश की आवश्यकता पड़ी जो अमरीका और उत्तरी कोरिया के बीच होने वाले संभावित युद्ध के समय अमरीका की सहायता कर सके तथा चीन के विरुद्ध मजबूती से खड़ा रह सके।
इसलिये वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद से अमरीका के रुख में तेजी से परिवर्तन आया है और उसने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की बजाय भारत का समर्थन करना आरम्भ किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका, इजराइल एवं जापान के साथ किए गए समझौतों एवं प्रयासों के कारण रूस एवं चीन को भी भारत की तरफ ध्यान देने पर विवश किया है और ये देश पाकिस्तान की बजाय भारत को प्राथमिकता दे रहे हैं।
इस प्रकार भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों के आइने में अन्तर्राष्ट्रीय समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और संसार भर के सामने पाकिस्तान की वास्तविक तस्वीर पहुंच रही है। दुनिया जान रही है कि मौत एवं पलायन के अतिरिक्त पाकिस्तान के पास और कुछ नहीं है।
वे फिर आ रहे हैं …….
रोहिंग्या मुसलमान मूलतः पूर्वी-पाकिस्तान के निवासी हैं किंतु 1960 के दशक में वे भुखमरी से जूझ रहे पूर्वी-पाकिस्तान को छोड़कर म्यांमार (बर्मा) के रखाइन प्रांत में घुस गए। ई.1962 से 2011 तक बर्मा में सैनिक शासन रहा। इस अवधि में रोहिंग्या शांत बैठे रहे किंतु जैसे ही वहाँ लोकतंत्र आया, रोहिंग्या मुसलमान बदमाशी पर उतर आए।
जून 2012 में बर्मा के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती से बलात्कार किया। जब स्थानीय बौद्धों ने इसका विरोध किया तो रोहिंग्याओं ने बौद्धों पर हमला बोल दिया। इस संघर्ष में लगभग 200 लोग मरे जिनमें रोहिंग्याओं की संख्या अधिक थी।
रोहिंग्याओं ने ‘अराकान रोहिंग्या रक्षा सेना’ का निर्माण किया तथा बौद्धों के कई गांव नष्ट करके बौद्धों के शव खड्डों में गाढ़ दिए। रोहिंग्या रक्षा सेना ने अक्टूबर 2016 में रखाइन में कई पुलिस कर्मियों की भी हत्या कर दी। इसके बाद बर्मा-पुलिस, रोहिंग्याओं को बेरहमी से मारने और उनके घर जलाने लगी।
इस कारण बर्मा से रोहिंग्याओं के पलायन का नया सिलसिला आरम्भ हुआ। उन्होंने नावों में बैठकर थाइलैण्ड की ओर पलायन किया किंतु थाइलैण्ड ने इन नावों को अपने देश के तटों पर नहीं रुकने दिया। इसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों की नावें इण्डोनेशिया की ओर गईं और वहाँ की सरकार ने उन्हें शरण दी।
बहुत से रोहिंग्या मुसलमानों ने भागकर बांग्लादेश में शरण ली किंतु भुखमरी तथा जनसंख्या विस्फोट से संत्रस्त बांग्लादेश, रोहिंग्या मुसलमानों का भार उठाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए रोहिंग्याओं ने भारत की राह पकड़ी। भारत का पूर्वी क्षेत्र पहले से ही बांग्लादेशी घुसपैठियों से भरा हुआ है, अतः भारत रोहिंग्याओं को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।
भारत में कम्युनिस्ट विचारधारा तथा मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों ने भारत सरकार पर दबाव बनाया कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत स्वीकार करे क्योंकि श्रीलंका तथा तिब्बत से आए बौद्ध शरणार्थियों को, पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों को एवं बांग्लादेश से आए हिन्दू एवं बिहारी-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत स्वीकार करता रहा है।
बांग्लादेश तथा बर्मा से आए रोहिंग्या मुसलमान 1980 के दशक से भारत में रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी के अनुसार भारत में रोहिंग्या मुसलमानों की पंजीकृत संख्या 14 हजार से अधिक है। भारतीय एजेंसियों के अनुसार भारत में 40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे हैं। ये मुख्य रूप से भारत के जम्मू, हरियाणा, हैदराबाद, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में रहते हैं। जम्मू में रोहिंग्या मुसलमानों ने हिन्दुओं पर आक्रमण भी किए हैं।
पाकिस्तानियों का पेट भरने वाला कोई नहीं!
अविभाजित भारत का क्षेत्रफल 43,16,746 वर्ग किमी, जनसंख्या 39.50 करोड़ तथा जनसंख्या घनत्व लगभग 92 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था। ई.1947 में विभाजन के बाद भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी, जनसंख्या 33 करोड़ तथा जनसंख्या घनत्व 100 हो गया।
नवनिर्मित पूर्वी-पाकिस्तान का क्षेत्रफल 1,47,570 वर्ग किमी, जनसंख्या 3.00 करोड़ एवं जनसंख्या घनत्व 203 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था जबकि पश्चिमी पाकिस्तान का कुल क्षेत्रफल 8,81,913 वर्ग किमी, जनसंख्या 3.5 करोड़ एवं जनसंख्या घनत्व 40 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था।
इस प्रकार पूर्वी-पाकिस्तान एवं पश्चिमी-पाकिस्तान में जनसंख्या का असमान वितरण हुआ। विगत 72 सालों में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) एवं पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) से भारत की ओर जनसंख्या का पलायन होते रहने पर भी वर्तमान में भारत का जनसंख्या घनत्व 416, बांग्लादेश का 1,116 तथा पाकिस्तान का 265 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।
परिवार नियोजन का विरोध करने वाले बांग्लादेश एवं पाकिस्तान का जनसंख्या घनत्व तेजी से बढ़ रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान इस विशाल जनसंख्या का पेट नहीं भर सकते। इस कारण वहाँ की जनता पश्चिमी बंगाल तथा असम सहित भारत के विभिन्न भागों में आकर छिप रही है।
ये वही लोग हैं जिनके लिए जिन्ना ने भारत के शांति-प्रिय लोगों का रक्त बहाकर पाकिस्तान बनाया था। आज इनका पेट भरने वाला कोई नहीं है। संसार में आज इनका कोई दोस्त नहीं है। इन्हें संसार में किसी बात से कोई लेना-देना नहीं है, यदि इनका सम्बन्ध किसी बात से है तो वह है मौत एवं पलायन का अनंतकाल तक चलने वाला सिलसिला!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता