भारत से लंदन तक की यात्रा लम्बी, थकाऊ और उबाऊ थी। इस लम्बी, थकाऊ और उबाऊ यात्रा के लिये वल्लभभाई ने पहले से ही अच्छी तैयारी की। वे भारत से अपने साथ कानून की ढेर सारी पुस्तकें ले गये। जहाँ दूसरे यात्री, यात्रा की बोरियित को मिटाने के लिये मनोरंजन के विविध उपायों का सहारा लेते वहीं वल्लभभाई ने इस समय का उपयोग रोमन कानून का अध्ययन करने में किया।
वे सुबह से शाम तक इन पुस्तकों में खोये रहते, रोमन कानून की बारीकियां समझते और उन्हें याद करने का प्रयास करते। इस प्रकार सी-सिकनेस की बीमारी में भी वे पुस्तकों का आनंद लेते रहे। यात्रा की थकान उन पर हावी नहीं हुई और उन्होंने बोरियत भी अनुभव नहीं की। भारत से लंदन पहुंचने तक उन्होंने रोमन कानून की कई पुस्तकें पढ़ लीं तथा महत्त्वपूर्ण अंशों को कण्ठस्थ कर लिया।
यह तैयारी आगे चलकर बहुत काम आई। जिस उपाधि को प्राप्त करने के लिये वे लदंन जा रहे थे, और जो असाधारण सफलता वे अर्जित करने वाले थे, उसकी नींव वस्तुतः इस यात्रा के दौरान ही रख ली गई। वल्लभभाई जैसे मनस्वी और दृढ़संकल्पी व्यक्ति के लिये यह कोई कठिन कार्य नहीं था।