ई.1917 में गोधरा में गुजरात सभा की राजनैतिक परिषद् हुई। इस परिषद में बाल गंगाधर तिलक, उनके परम सहयोगी शापर्डे, विट्ठलभाई पटेल, मोहनदास गांधी और मुहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रीय नेता आये।
इसी परिषद में गांधी और वल्लभभाई की पहली भेंट हुई। गांधी को इस परिषद का अध्यक्ष और वल्लभभाई को महामंत्री चुना गया। परिषद में निर्णय लिया गया कि प्रत्येक व्यक्ति गुजराती में ही भाषण देगा, अंग्रेजी में कोई नहीं बोलेगा। लोकमान्य तिलक को गुजराती नहीं आती थी,
इसलिये वे हिन्दी में बोले और शापर्डे ने दुभाषिया बनकर उनके भाषण का गुजराती में अनुवाद सुनाया। गुजरात सभा का वार्षिक राजनैतिक अधिवेशन ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी की शपथ के साथ आरम्भ होता था किंतु इस अधिवेशन के प्रारम्भ में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी की शपथ नहीं ली गई क्योंकि गांधीजी का तर्क था कि स्वयं अंग्रेज भी, किसी कार्यक्रम या सभा के आरम्भ में इस प्रकार की शपथ नहीं लेते।
गोधरा अधिवेशन में यह भी निर्णय लिया गया कि परिषद की गतिविधियां वर्ष भर चलेंगी, इससे पहले परिषद द्वारा वर्ष में केवल एक अधिवेशन का ही आयोजन किया जाता था।