इतिहास की पुस्तकों में लिखा है कि अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं। कहा नहीं जा सकता कि इनमें से कितनी अकबर की बेगमें थीं, कितनी रखैलें थीं और कितनी ऐसी दासियां थीं जिनसे अकबर के बेटे – बेटियाँ हुए!
खानदेश का शासक रजाअली खाँ अकबर की अधीनता स्वीकार कर चुका था किंतु रजाअली खाँ के मर जाने के बाद उसके पुत्र मीरन बहादुर खाँ ने असीरगढ़ को अपनी राजधानी बनाकर स्वतन्त्र शासक की तरह व्यवहार करना आरम्भ कर दिया।
अभेद्य माना जाने वाला असीरगढ़ दुर्ग खानदेश के मध्य में स्थित था। यह दुर्ग दिल्ली से दक्षिण भारत जाने वाले मार्ग पर स्थित होने से दक्षिण का फाटक कहलाता था। दक्षिण विजय के लिए इस दुर्ग पर अधिकार करना आवश्यक था।
अकबर के आदेश से एक सेना ने खानदेश की राजधानी बुरहानपुर पर तथा दूसरी सेना ने असीरगढ़ दुर्ग पर घेरा डाला। मुगल सेना ने बड़ी सरलता से बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया किंतु असीरगढ़ का घेरा 6 महिने तक चलता रहा। जब सफलता मिलती दिखाई नहीं दी तब अकबर ने मीरन बहादुर खाँ को संधि करने के बहाने से अपने शिविर में बुलाया तथा उसे छल से कैद कर लिया।
मीरन बहादुर खाँ के कैद हो जाने पर भी असीरगढ़ के दुर्ग रक्षकों ने मुगलों के लिए असीरगढ़ दुर्ग के फाटक नहीं खोले। इस पर अकबर ने दुर्ग रक्षकों को रिश्वत देकर दुर्ग का द्वार खुलवा लिया और उस पर अधिकार कर लिया। अहमदनगर तथा असीरगढ़ पर मुगलों का अधिकार हो जाने से मुगलों के लिये दक्षिण के अन्य राज्यों पर विजय का काम आसान हो गया।
एक तरफ चाँद बीबी के नहीं रहने से और दूसरी तरफ शहजादे मुराद के मर जाने से खानखाना अब्दुर्रहीम दोस्ती और दुश्मनी की सभी तरह की दुविधाओं से बाहर निकल आया था और अब वह दक्षिण में जबर्दस्त दबाव बना रहा था।
खानखाना के पुत्र एरच ने भी पिता का बहुत साथ दिया। खानखाना ने उसे मलिक अम्बर के पीछे लगाया। एरच ने मलिक अम्बर को कई मोर्चों पर परास्त किया। शहजादा दानियाल दक्खिन का अभियान अपने श्वसुर अब्दुर्रहीम और साले ऐरच के मजबूत हाथों में सौंप कर स्वयं शराब के नशे में डूब गया।
अकबर को जब दानियाल के बारे में तरह-तरह के समाचार मिलने लगे तो उसने दानियाल को लिखा कि वह आगरा आ जाये। दानियाल कतई नहीं चाहता था कि वह अपने पिता के सामने जाये।
वहाँ जाने से उसकी शराब और मौज-मस्ती में विघ्न पड़ जाने की पूरी-पूरी संभावना थी। अतः दानियाल ने अकबर को पत्र भिजवाया कि खानखाना अब्दुर्रहीम एक नम्बर का हरामखोर है। उस पर दृष्टि रखने के लिये मेरा दक्षिण में ही रहना आवश्यक है।
पाठकों को यह सुनकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि दानियाल ने अपने श्वसुर एवं विजयी सेनापति खानखाना अब्दुर्रहीम के लिए इतना बड़ा झूठ लिखा! अकबर के बेटे इतने ही कृतघ्न और मक्कार थे।
यह स्मरण दिलाना उचित होगा कि जब खानखाना ने मुराद के लिए सुहेल खाँ, आदिलशाह और कुतुबशाह की सम्मिलित सेनाओं को पराजित किया था, तब मुराद ने भी अकबर से यह शिकायत की थी कि खानखाना अहमदनगर की सुल्ताना चांद बीबी से मिल गया है और वह दक्षिण फतह नहीं करना चाहता।
जब अकबर को दानियाल का पत्र मिला तो अकबर ने उसे वापिस पत्र लिखा कि मैं जानता हूँ कि हरामखोर कौन है! तू शराब पीने के लिये ही मुझसे दूर रहना चाहता है। खानखाना तेरी तरह से शराब नहीं पीता। तेरी तरह से झूठ नहीं बोलता। न ही तेरी तरह विश्वस्त सेवकों पर मिथ्या दोषारोपण करता है। तू फौरन आगरा चला आ अन्यथा भविष्य में तुझसे कोई सम्बन्ध नहीं रखूंगा।
इस पर भी दानियाल आगरा नहीं गया। अकबर ने क्रोधित होकर खानखाना अब्दुर्रहीम को बहुत भला-बुरा लिखा कि तेरे रहते हुए भी दानियाल मौत के मुँह में जा रहा है। यदि तूने दानियाल की शराब पर पाबंदी नहीं लगायी तो मुझसा बुरा कोई न होगा।
बादशाह का पत्र पाकर खानखाना ने अकबर के बेटे दानियाल पर पहरा बैठा दिया और शहजादे के डेरे में शराब ले जाने की मनाही कर दी। इस पर भी दानियाल की चापलूसी में लगे हुए नमक हराम लोग बंदूक की नालियों में तेज शराब भरकर ले जाते और दानियाल को पिलाते।
खानखाना इस बात को नहीं जान सका और एक दिन दानियाल अत्यधिक शराब पीकर मर गया। जब खानखाना को मालूम हुआ कि किस युक्ति से शराब शहजादे के डेरे के भीतर पहुँचाई जाती थी तो उसने नमक हराम लोगों को मृत्युदण्ड दिया किंतु जाने वाला जा चुका था। उसे किसी तरह लौटाया नहीं जा सकता था!
बाबर ने मुगलिया हरम में शराब एवं अफीम के नशे का प्रचलन किया था। बाबर के बेटे हुमायूँ की मौत अफीम के नशे में हुई थी। अकबर भी दिन-रात अफीम एवं शराब के नशे में डूबा रहता था। वह भांग, चरस और गांजा का सेवन भी किया करता था। अकबर के बेटे मुराद और दानियाल शराब पी-पीकर मर गए थे।
अकबर का अब एक ही बेटा जीवित बचा था सलीम। वह भी इतनी शराब पीता था कि किसी भी दिन मौत को गले लगा सकता था। इस प्रकार शराब अफीम, गांजा, चरस और भांग मुगल शहजादों की बलि ले रहे थे।
देखा जाए तो दानियाल की मृत्यु से जितना बड़ा कहर अकबर पर टूटा था, उतना ही बड़ा कहर खानखाना अब्दुर्रहीम पर भी टूटा था। दानियाल की मृत्यु से खानखाना की बेटी जाना बेगम विधवा हो गयी। उसने अकबर के बेटे दानियाल के शव के साथ मर जाने की चेष्टा की किंतु खानखाना ने किसी तरह बेटी को ऐसा करने से रोका। जाना बेगम ने अपने पिता के कहने से जान तो नहीं दी किंतु उसने सदा-सदा के लिये फटे हुए और मैले-कुचैले कपड़े पहन लिये।
कुछ दिनों पहले ही अब्दुर्रहीम की पत्नी माहबानूं की मृत्यु हुई थी। अब खानखाना पर यह दूसरा कहर था। उससे बेटी जाना का मुँह देखा नहीं जाता था। वह अंदर से टूटने लगा। मुगलिया राजनीति की खूनी चौसर पर खड़ा खानखाना का परिवार एक-एक करके बरबादी और मृत्यु के मुंह में जा रहा था।
मुराद के बाद दानियाल के मरने की खबर पाकर अकबर का मन हर उस वस्तु से उचाट हो गया जो उसके आस-पास थी। वह मन की शांति प्राप्त करना चाहता था किंतु उसका कोई उपाय नहीं सूझता था।
उसने मक्का जाने का विचार किया किंतु उस युग में एक बादशाह के लिये मक्का तक के मार्ग में पड़ने वाले समस्त राज्यों को जीते बिना अपनी सेना लेकर वहाँ तक पहुँचना संभव नहीं था और बिना सेना के जाने का अर्थ उसी गति को प्राप्त हो जाने जैसा था जिस गति को बैराम खाँ प्राप्त हुआ था।