इस शृंखला में व्यक्तित्व विकास से सम्बन्धित आलेख लिखे गए हैं। मनुष्य का व्यक्तित्व एक ऐसी प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक निखरती चलती है। मनुष्य के जीवन में हर क्षण व्यक्तित्व विकास की संभावनाएं रहती हैं। मनुष्य का व्यक्तित्व ही विकसित होकर उसे मनुष्यत्व से ईश्वरत्व तक पहुंचा सकता है। मनुष्य के प्रत्येक हाव-भाव, चेष्टा एवं क्रिया पर उसके व्यक्तित्व का ही प्रभाव छाया रहता है। मनुष्य का बाहरी व्यक्तित्व एक ऐसा दर्पण है जिसमें मनुष्य का भीतर व्यक्तित्व भी आसानी से देखा जा सकता है।
यह किसी पाठशाला या कोचिंग सेंटर में सीखी जा सकने वाली प्रक्रिया नहीं है। यह तो मनुष्य के चिंतन एवं अभ्यास से ही निखरता है।