Sunday, March 23, 2025
spot_img

ओरछा के रामराजा सरकार

ओरछा के रामराजा सरकार रानी गणेश कुंविर के पुत्र माने जाते हैं। रानी गणेश कुंवरि ने भगवान राम को पुत्र के रूप में पूजा और उन्हें अपना पुत्र बनाकर अयोध्या से ओरछा ले आईं! यह ऐतिहासिक घटना सोलहवीं शताब्दी ईस्वी में घटित हुई।

भगवान के करोड़ों-करोड़ भक्तों ने भगवान को अपनी-अपनी आस्था के रूप में पूजा और पाया है। सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रभाव के कारण हिन्दू महिलाओं में वात्सल्य एवं भक्ति दोनों ही प्रकार के भाव संसार की अन्य महिलाओं की अपेक्षा अधिक होते हैं। इसलिए हिन्दू महिलाओं में भावुकता की भी अधिकता होती है। कई बार यह भावुकता ऐसे अनोखे कार्य करवा देती है जो किसी प्रकार के बुद्धिबल, बाहुबल एवं धनबल से किए जाने संभव नहीं है।

ऐसी ही एक अनोखी घटना आज से चार सौ साल पहले ओरछा में घटित हुई थी जब ओरछा की रानी गणेश कुंवरि अयोध्या के राजा रामचंद्र को अपना पुत्र बनाकर ओरछा ले आई थीं। पुत्र होने के कारण राम ही ओरछा के राजसिंहासन पर बैठे तथा उन्हें ओरछा के रामराजा सरकार के नाम से जाना गया। इस घटना के पीछे एक अनोखा इतिहास छिपा हुआ है।

मधुकरशाह बुंदेला ईस्वी 1554 से 1592 तक ओरछा का राजा था। कहा जाता है कि एक दिन राजा मधुकरशाह बुंदेला ने अपनी रानी गणेश कुंवरि राजे से वृंदावन चलने को कहा किंतु रानी ने अयोध्या जाने के लिए कहा। राजा ने पुनः वृंदावन जाने की इच्छा व्यक्त की किंतु रानी ने अयोध्या जाने की जिद पकड़ ली। इस पर राजा मधुकरशाह ने झुंझलाकर कहा कि यदि तुम इतनी ही रामभक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ।

राजा के ऐसा कहने पर ओरछा की रानी गणेश कुंवरि भगवान को लाने के लिए अयोध्या चली गईं। उन्हें पूरा विश्वास था कि भगवान राम उनकी प्रार्थना स्वीकार कर लेंगे तथा राजा के सामने उनकी बात नहीं गिरेगी।

उन दिनों संत तुलसीदास भी अयोध्या में साधनारत थे। रानी गणेश कुंवरि ने तुलसीदासजी के दर्शन किए तथा उनसे आशीर्वाद लेकर सरयू नदी के किनारे स्थित लक्ष्मण टीले के निकट कुटी बनाकर साधना करने लगीं।

रानी ने भगवान राम से प्रार्थना की कि जिस तरह वे कौसल्या के पुत्र बनकर अयोध्या में रहे, उसी तरह वे मेरे पुत्र बनकर ओरछा चल कर रहें। रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। एक दिन जब रानी ने स्नान करते समय सरयू नदी में डुबकी लगाई तो नदी के तल में उन्हें रामराजा के एक विग्रह के दर्शन हुए। रानी ने भगवान से कहा कि वे मेरे पुत्र बनकर ओरछा चलें। रामराजा ने दो शर्तों पर ओरछा चलना स्वीकार किया। पहली शर्त यह थी कि अयोध्या से ओरछा तक पैदल यात्रा करनी होगी। दूसरी शर्त यह थी कि यात्रा केवल पुष्य नक्षत्र में होगी।

रानी ने भगवान की दोनों बातें शिरोधार्य कर लीं तथा ओरछा महाराज मधुकरशाह बुंदेला को संदेश भेजा कि वे रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। राजा मधुकरशाह बुंदेला ने रामराजा के लिए चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाना आरम्भ किया।

जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल की भोजनशाला में रखवा दी ताकि किसी शुभ मुर्हूत में रामाजा की प्रतिमा को चतुर्भुज मंदिर में रखकर प्राण प्रतिष्ठा की जा सके। जब मंदिर बनकर पूरा हो गया तब रामराजा के विग्रह को मंदिर में प्रतिष्ठित करने हेतु उठाया गया किंतु रामराजा का विग्रह वहाँ से नहीं उठा। मान्यता है कि चूंकि रानी भगवान को अपने पुत्र के रूप में ओरछा लाई थीं, इसलिए भगवान ने अपनी माता का महल छोड़ना स्वीकार नहीं किया।

रामराजा को उसी महल में प्रतिष्ठित रहने दिया गया जहाँ वे आज भी विराजमान हैं। ओरछा के रामराजा सरकार की प्रतिमा मंदिर की ओर मुंह न होकर महल की ओर मुंह किए हुए है। रामराजा के लिए बनाये गये चतुर्भुज मंदिर में आज भी कोई विग्रह नहीं है।

मान्यता है कि संवत 1631 में जिस दिन ओरछा के रामराजा सरकार का आगमन हुआ, उसी दिन गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस का लेखन प्रारंभ किया। यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु की जो मूर्ति ओरछा के रामराजा के रूप में विद्यमान है वह मूर्ति भगवान राम ने उस समय माता कौशल्या को दी थी, जब भगवान राम वनवास के लिए जा रहे थे। माँ कौशल्या उसी मूर्ति को भोग लगाया करती थीं। कुछ भक्तों की मान्यता है कि जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्याजी ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। वही मूर्ति रानी गणेश कुंवरि राजे को सरयू नदी में मिली थी।

वस्तुतः जब मुसलमानों ने अयोध्या पर आक्रमण किया था, उस समय भगवान राम एवं अन्य देवी-देवताओं की सैंकड़ों मूर्तियां सरयू नदी में छिपा दी गई थीं ताकि मुस्लिम आक्रांता उन्हें भंग न कर सकें। आज भी भक्तों को यदा-कदा ये मूर्तियां प्राप्त होती रहती हैं। ऐसी ही एक मूर्ति कुछ साधुओं को मिली थी जो रामलला के रूप में लगभग 80 साल तक रामजन्म भूमि मंदिर में प्रतिष्ठित रही।

ओरछा के रामराजा सरकार का मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ भगवान राम की पूजा राजा के रूप में होती है तथा राजा की समस्त मर्यादाओं का पालन किया जाता है। ओरछा में रामचंद्रजी को ओरछाधीश तथा रामराजा सरकार भी कहा जाता है। सूर्याेदय एवं सूर्यास्त के समय भगवान को राजा की तरह गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।

ओरछा के रामराजा सरकार मंदिर के चारों तरफ हनुमानजी के कई मंदिर हैं जो रामराजा मंदिर के सुरक्षा चक्र के रूप में स्थित हैं। इनमें छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान आदि प्रमुख हैं। ओरछा में स्थित लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर भी श्रद्धा के केन्द्र हैं।

ओरछा नगर रामराजा के इसी महल के चारों ओर बसा हुआ है। राम नवमी पर यहाँ देश भर से  हजारों श्रद्धालु आते हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source