अकबर के स्त्री-प्रेम की चर्चा पूरी सल्तनत में थी। गोआ के पुर्तगाली भी अकबर की इस कमजोरी से परिचित थे। इसलिए उन्होंने अकबर के दरबार एवं महल में पहुंच बनाने के लिए पुर्तगाली लड़कियों का सहारा लेने का निश्चय किया। ऐसा करना उनके लिए कठिन भी नहीं था।
अबुल फजल लिखता है कि जब अकबर (AKBAR) सूरत में था, तब गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) अकबर से मिलने के लिए आए। उन दिनों गोआ और उसके आसपास के क्षेत्रों पर पुर्तगालियों का अधिकार था।
गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) ईसाई थे और इस क्षेत्र में ईसाई धर्म को बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। अबुल फजल (ABUL FAZAL) लिखता है कि गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) नहीं चाहते थे कि अकबर (AKBAR) का सूरत के दुर्ग पर अधिकार हो। इसलिए वे लोग सूरत दुर्ग में रह रहे बागी मिर्जाओं की सहायता करने के लिए आए थे किंतु जब उन्होंने अकबर की विशाल सैन्य-शक्ति को देखा तो उन्होंने बागी मिर्जाओं की सहायता करने की बजाय अकबर से मित्रता करने का विचार किया।
गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) दल ने अकबर (AKBAR) को बहुत सारी भेंट एवं उपहार देकर अकबर के प्रति मित्रता का प्रदर्शन किया। अबुल फजल (ABUL FAZAL) लिखता है कि अकबर बड़ी उत्सुकता से उन पुर्तगालियों से मिला तथा उनसे पुर्तगाल देश के बारे में जानकारी प्राप्त की। अकबर ने उन लोगों से यूरोप के शिष्टाचार एवं अन्य प्रथाओं की भी जानकारी ली। अकबर पुर्तगालियों से मिलने में इसलिए भी रुचि रखता था क्योंकि कुछ वर्ष पहले पुर्तगालियों ने अकबरको दो सुंदर पुर्तगाली लड़कियां भेंट की थीं।
गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) जिन लड़कियों को भेंट करने के लिए लाए थे, इनमें से एक का नाम मारिया मस्केरेन्हास था, वह 18 साल की थी और दूसरी लड़की का नाम जूलियाना मस्केरेन्हास था, वह 17 साल की थी। अकबर (AKBAR) ने मारिया मस्केरेन्हास से विवाह कर लिया तथा उसकी बहिन जूलियाना मस्केरेन्हास अकबर के हरम में चिकित्सक नियुक्त की गई ताकि वह हरम की औरतों की चिकित्सा कर सके।
अकबर (AKBAR) के दरबारी लेखक अबुल फजल (ABUL FAZAL) तथा अकबर के कट्टर आलोचक मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने अपनी पुस्तकों में इन पुर्तगाली औरतों का उल्लेख नहीं किया है, इसलिए बहुत समय तक इन पुर्तगाली औरतों का इतिहास अंधकार में ही रहा।
ग्रीस देश के पत्रकार थॉमस स्मिथ ने तथा फ्रांस के प्रथम बारबौन राजा फिलिप्पे पर शोध करने वाले ग्रीस के प्रिंस मिशेल ने अपनी पुस्तक ले राजाह डे बरबोन में इस स्त्री का उल्लेख किया तो अकबर (AKBAR) की गुमनाम पुर्तगाली बेगम का इतिहास भारतीयों के सामने आया।
जे. ए. इज्मेल ग्रेसियाज ने भी अपनी शोध में सिद्ध किया है कि अकबर (AKBAR) की एक पुर्तगाली बेगम थी।
ग्रीस तथा फ्रांस के इन लेखकों ने सिद्ध किया है कि लेडी जूलियाना अकबर (AKBAR) के दरबार में रहने वाली ईसाई स्त्री थी। वह अकबर के हरम की चिकित्सक थी। वह अकबर की एक पत्नी की बहिन थी। लेडी जूलियाना का विवाह बौरबन राजकुमार जीन फिलिप्पि से हुआ था। लेडी जूलियाना के प्रयासों से आगरा में पहला क्रिश्चियन चर्च बना।
यूरोपियन लेखक लिखते हैं कि किसी समय ये दोनों बहनें ईसाई मिशनियों द्वारा आगरा में लाई गई थीं तथा अकबर (AKBAR) को भेंट की गई थीं। कुछ स्थानों पर यह भी संदर्भ मिलता है कि ये दोनों बहिनें पुर्तगाली नहीं थीं अपितु अकबर के न्यायमंत्री अब्दुल हाई की पुत्रियां थीं तथा वे अपने पिता के साथ पश्चिमी आरमीनिया के सिलसिया कस्बे से भारत आई थीं।
थॉमस स्मिथ नामक पत्रकार ने लिखा है कि ये दोनों लड़कियां आरमीनिया से भारत आई थीं तथा अकबर (AKBAR) ने उनमें से एक का विवाह फ्रांस के राजकुमार जीन फिलिप्पे से किया था जो आगे चलकर फ्रांस का राजा बना। थॉमस स्मिथ लिखता है कि जीन फिलिप्पे एक धनी फ्रैंच सैनिक का पुत्र था। यह परिवार फ्रांस के शाही परिवार से सम्बन्धित था।
प्रिंस मिशेल ने अपनी पुस्तक ले राजाह डे बरबोन में लिखा है कि जीन फिलिप्पे ने अकबर (AKBAR) की पुर्तगाली क्रिश्चियन स्त्री की बहिन से विवाह किया था। अकबर ने जीन फिलिप्पे को भारत में बड़े क्षेत्र का राजा बनाया तथा उसे बहुत सी धनराशि भेंट की। प्रिंस मिशेल के अनुसार जीन फिलिप्पे फ्रांस के सम्राट हेनरी (चतुर्थ) का भतीजा था। बाद में जीन फिलिप्पे फ्रांस का प्रथम बोरबन राजा बना।
प्रिंस मिशेल के अनुसार जब जीन फिलिप्पे अकबर (AKBAR) से मिलने के लिए भारत आया तो आगरा आकर बीमार पड़ गया। अकबर के आदेश से अकबर के हरम की चिकित्सक जूलियाना ने फिलिप्पे की चिकित्सा की।
फिलिप्पे इस लेडी चिकित्सक से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अकबर (AKBAR) से जूलियाना का हाथ अपने लिए मांग लिया। अकबर ने जूलियाना फिलिप्पे को सौंप दी। इस औरत से फिलिप्पे को कुछ औलादें हुईं जो भारत के भोपाल शहर में रहती थीं। बताया जाता है कि इस परिवार के वंशज आज भी भोपाल में निवास करते हैं।
कुछ विद्वानों ने लिखा है कि अकबर (AKBAR) के महल में जूलियाना नाम की और भी औरतें थीं जिनमें से एक का नाम लेडी जूलियाना डिया-डाकोस्टा था। संभवतः लेडी जूलियाना डिया-डाकोस्टा (Juliana D’Costa) एवं अकबर की साली जूलियाना मस्केरेन्हास ग्रेसियाज (Juliana Mascarenhas Gracias) के इतिहास एक दूसरे से गड्डमड्ड हो गए हैं।
एक लेखक ने लिखा है कि जूलियाना मस्केरेन्हास (Juliana Mascarenhas Gracias) की बहिन मारिया मस्केरेन्हास (Maria Mascarenhas) को मरियम मकानी कहा गया क्योंकि वह ईसाई थी। जमन नामक एक शोधकर्ता ने इस मत को अस्वीकार करते हुए सिद्ध किया है कि मारिया मस्केरेन्हास (Maria Mascarenhas) को मरियम मकानी नहीं कहा गया। यह उपाधि तो मुगलों में पहले से ही चल रही थी। अकबर (AKBAR) की माँ हमीदा बानू बेगम को मरियम मकानी की उपाधि दी गई थी। अकबर की हिन्दू पत्नी जो आम्बेर की राजकुमारी थी, उसे भी मरियम मकानी की उपाधि दी गई थी। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि मारिया मस्केरेन्हास को ईसाई होने के कारण मरियम मकानी की उपाधि दी गई। फ्रैडरिक फैंथम ने ई.1895 में प्रकाशित अपनी पुस्तक रेमीनेंसेज ऑफ आगरा में लिखा है कि अकबर (AKBAR) की एक क्रिश्चियन पत्नी थी जिसका नाम मैरी था। वह लिखता है कि इतिहासकारों ने अकबर की इस बेगम का अकबर पर प्रभाव बहुत कम करके आंका है। इस बेगम के प्रभाव के कारण अकबर (AKBAR) ईसाई धर्म की तरफ झुकने लगा था। जमन नामक शोधकर्ता ने लिखा है कि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अकबर (AKBAR) के शासन काल में मुगल एम्पायर पर यूरोप की ईसाई औरतों का प्रभाव था किंतु जूलिया मस्केरेन्हास की कहानी में कुछ काल्पनिक सामग्री भी जोड़ दी गई है।
अकबर (AKBAR) ने ई.1562 में आगरा में एक चर्च बनाने की अनुमति प्रदान की। लगभग 74 साल तक यह चर्च आगरा में खड़ा रहा। ई.1636 में अकबर के पोते शाहजहाँ ने इस चर्च को तुड़वाया। जब भारत पर अंग्रेजों का बोलबाला हो गया, तब उसी स्थान पर सेंट पीटर्स रोमन कैथोलिक कैथेडरल नाम से एक नया चर्च बनाया गया।
गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) मूल की भारतीय प्रोफेसर लुई डे आसिस कोरिया ने अपनी पुस्तक पोर्चूगीज इण्डिया एण्ड मुगल रिलेशन्स (1510-1735) में लिखा है कि अकबर (AKBAR) के जोधा नामक कोई स्त्री नहीं थी। डोना मारिया मैस्केरेन्हास (The Hindi phrase “डोना मारिया मैस्केरेन्हास” (Dona Maria Mascarenhas) एक पुर्तगाली स्त्री थी जिसे जोधा नाम दिया गया।
प्रोफेसर लिखती है कि मारिया मस्केरेन्हास तथा उसकी बहिन जूलियाना (Juliana Mascarenhas Gracias) को पुर्तगालियों ने तस्करों के हाथों से मुक्त करवाकर गुजरात के शासक बहादुरशाह को सौंपा था। बहादुरशाह ने उन बहिनों को अकबर (AKBAR) के दरबार में उपहार के रूप में भिजवाया।
प्रोफेसर लुई डे आसिस कोरिया के अनुसार अकबर (AKBAR) ने मारिया मस्केरेन्हास (Maria Mascarenhas) की पहचान छिपाने के लिए उसे जोधा बाई नाम दिया। कुछ विद्वानों ने इस बात पर भी शोध की है कि मुगल इतिहासकारों ने इन बहिनों का इतिहास क्यों छिपाया!
यह बात सही नहीं लगती कि अकबर (AKBAR) ने इन बहिनों का इतिहास छुपाया। जब मुगल इतिहासकारों ने अकबर की हिन्दू बेगमों की पहचान नहीं छिपाई तो उन्होंने भला अकबर की ईसाई बेगमों की पहचान क्यों छिपाई होगी!
गोआ के पुर्तगाली (PORTUGUESE OF GOA ) मूल की इन बहिनों के इतिहास पर शोध के निष्कर्ष अलग-अलग बातें कह सकते हैं किंतु सारांश रूप में इतना कहा जा सकता है कि ये पुर्तगाली बहिनें गोआ के पुर्तगालियों द्वारा अकबर (AKBAR) को उपहार स्वरूप दी गई थीं तथा अकबर इन औरतों के प्रभाव के कारण ईसाई धर्म की तरफ झुकने लगा था।
✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।




