Sunday, August 17, 2025
spot_img

भक्तिआन्दोलन की प्रमुख धाराएँ

मध्यकालीन भक्तिआन्दोलन की प्रमुख धाराएँ देखने में भले ही अलग-अलग लगती हों किंतु वस्तुतः एक ही लक्ष्य को लेकर चलती हैं। वह लक्ष्य है भगवत्-प्राप्ति।

श्रीमद्भगवत्गीता में मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बताये गये हैं- ज्ञान, कर्म एवं भक्ति। इनमें से ज्ञान-मार्ग सर्वाधिक कठिन और भक्ति-मार्ग सर्वाधिक सरल है। भक्ति अपने उपास्यदेव के प्रति भक्त की अपार श्रद्धा तथा असीम प्रेम है। भक्ति करने से भक्त को ईश्वर का प्रसाद अर्थात् विशेष कृपा प्राप्त होती है जिससे मोक्ष मिलता है। ईश्वर भक्ति के तीन प्रधान मार्गों- ज्ञान, प्रेम तथा उपासना को आधार बनाकर भक्ति की तीन धाराएं प्रवाहित हुईं- ज्ञान-मार्गी धारा, प्रेम-मार्गी धारा तथा भक्ति-मार्गी धारा।

ज्ञान-मार्गी धारा

ज्ञान-मार्गी धारा के संतों ने हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बाह्याडम्बरों तथा मिथ्याचारों की आलोचना करके दोनों को एक दूसरे के निकट लाने का प्रयत्न किया। इस धारा के प्रधान प्रवर्तक कबीर थे। वे एकेश्वरवादी तथा निर्गुण-निराकार ब्रह्म के उपासक थे। उन्होंने नाम तथा गुरु दोनों की महत्ता को स्वीकार किया।

प्रेम-मार्गी धारा

प्रेम-मार्गी धारा के सन्तों ने ईश्वर के विभिन्न रूपों से प्रेम करने का मार्ग अपनाया। इन सन्तों ने ईश्वर को स्वामी, पिता, पति एवं सखा आदि सम्बन्धों से स्वीकार किया तथा उसी भाव से उन्हें भजने का मार्ग पुष्ट किया। तुलसी के लिए वे स्वामी थे, सूर के लिए सखा थे, मीरां के लिए पति थे और नामदेव के लिए वे पिता थे। प्रेम-मार्गी भक्तों की हरिदासी आदि धाराओं के संतों ने स्वयं को अपने उपास्य देव की प्रेयसी घोषित किया।

भक्ति-मार्गी धारा

भक्ति-मार्गी धारा के सन्त अपने इष्टदेव की पूजा तथा उपासना में लीन रहते थे। वे ईश्-भजन को जीवात्मा के कल्याण का सर्वोत्तम उपाय मानते थे। भक्ति-मार्गी सन्तों को राज-दरबार के ऐश्वर्य के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। इन सन्तों ने विष्णु एवं उनके अवतारों राम तथा कृष्ण के सगुण-साकार स्वरूप की भक्ति की। वे दुर्गा, लक्ष्मी एवं सरस्वती आदि ईश्वरीय शक्तियों की भी उपासना करते थे।

इन सन्तों ने अपने कर्मों तथा गुणों की अपेक्षा भगवत् कृपा को अधिक महत्व दिया। इस युग के संतों ने जिस धार्मिक धारा का आह्वान किया वह पूर्णतः आस्तिक थी, वेदों की सर्वोच्चता में विश्वास रखती थी एवं श्रीराम और श्रीकृष्ण को वैदिक देवता ‘विष्णु’ का अवतार मानती थी। भक्ति-मार्गी सन्तों की दो धाराएं हैं- राम-भक्ति धारा एवं कृष्ण-भक्ति धारा-

(1.) राम-भक्ति धारा

राम-भक्ति धारा के सन्तों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी अतिशय विनयशीलता तथा मर्यादाशीलता है। रामानुजाचार्य, रामानंदाचार्य तथा तुलसीदास, राम-भक्ति मार्गी सन्त थे। इन सन्तों ने विभिन्न मत-मतान्तरों, उपासना-पद्धतियों तथा विचार-धाराओं में समन्वय स्थापित किया तथा हिन्दू जाति को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया।

(2.) कृष्ण-भक्ति धारा

कृष्ण-भक्ति धारा के सन्तों ने श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का गुणगान किया और श्रीकृष्ण की उपासना पर बल दिया। निम्बार्काचार्य, चैतन्यमहाप्रभु तथा सूरदास, मीराबाई आदि कृष्ण-भक्ति मार्गी सन्त थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

भारत का मध्य-कालीन भक्ति आंदोलन

भगवद्भक्ति की अवधारणा

भक्ति आन्दोलन का पुनरुद्धार एवं उसके कारण

मध्य-युगीन भक्ति सम्प्रदाय

भक्तिआन्दोलन की प्रमुख धाराएँ

भक्ति आन्दोलन का प्रभाव

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

रामानुजाचार्य

माधवाचार्य

निम्बार्काचार्य

संत नामदेव

रामानंदाचार्य

वल्लभाचार्य

सूरदास

संत कबीर

भक्त रैदास

गुरु नानकदेव

मीरा बाई

तुलसीदास

संत तुकाराम

दादूदयाल

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source