Friday, August 29, 2025
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मुहम्मद तुगलक पागल था!

क्या मुहम्मद बिन तुगलक पागल था? कुछ इतिहासकारों ने मुहम्मद बिन तुगलक को पागल तथा झक्की बताया है। एल्फिन्सटन पहला इतिहासकार था जिसने सुल्तान में पागलपन का कुछ अंश होने का लांछन लगाया। परवर्ती यूरोपीय इतिहासकारों हैवेल, इरविन, स्मिथ तथा लेनपूल ने भी एल्फिन्स्टन के इस मत का अनुमोदन किया परन्तु आधुनिक इतिहासकार इस मत को स्वीकार नहीं करते।

यद्यपि बरनी तथा इब्नबतूता ने सुल्तान के कार्यों की तीव्र आलोचना की है तथापि उस पर पागलपन का लांछन नहीं लगाया है। वास्तव में यह आरोप केवल वे इतिहासकार ही लगा सकते हैं जो मुहम्मद बिन तुगलक के चरित्र तथा कार्यों की ठीक से समीक्षा नहीं करते।

गार्डिनर ब्राउन ने लिखा है- ‘उसके समय के किसी भी व्यक्ति ने इस बात की ओर संकेत नही किया है कि वह पागल था। उसके व्यावहारिक तथा सक्रिय चरित्र से यह पता नहीं लगता कि वह काल्पनिक था।’

(1) रक्तपात में रुचि होने का आरोप

आरोप का कारण

मुहम्मद बिन तुगलक को पागल सिद्ध करने के लिए सबसे पहला प्रमाण यह दिया जाता है कि उसमें रक्तपात के प्रति बड़ी रुचि थी। इस कारण उसे अकारण ही लोगों का रक्तपात करने में आनन्द आता था। इस धारणा का मूल आधार इब्नबतूता का यह कथन प्रतीत होता है कि सदैव कोई न कोई मृत शरीर सुल्तान के महल के समक्ष दृष्टिगोचर होता था। एल्फिन्स्टन तथा अन्य यूरोपीय इतिहासकारों ने मुहम्मद बिन तुगलक को इसी आधार पर पागल सिद्ध करने का प्रयास किया है।

अरोप की समीक्षा: विचारणीय बात यह है कि किन कारणों से तथा किन लोगों की सुल्तान हत्या किया करता था। वास्तव में सुल्तान बड़ा क्रोधी तथा उग्र प्रकृति का व्यक्ति था और वह इस बात को सहन नहीं कर पाता था कि लोग उसका विरोध करें। वह विभिन्न अपराधों में भेद नहीं कर पाता था।

यह भी ध्यान देने की बात है कि मध्य युग में अपराधियों को यूरोप तथा एशिया में प्रायः प्राण दण्ड दिया जाता था। इस बात के लिए कोई आधार नहीं कि सुल्तान को मनुष्यों का रक्तपात करने में आनन्द आता था। इस प्रकार का लांछन केवल इब्नबतूता तथा बरनी द्वारा लगाया गया है परन्तु यह नहीं भूलना चाहिये कि बरनी उलेमा वर्ग का था जो सुल्तान से बड़ा वैमनस्य रखता था क्योंकि सुल्तान ने इस वर्ग को विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया था और अपराध करने पर उन्हें साधारण व्यक्तियों की भांति दण्ड मिलता था।

निष्कर्ष: वास्तव में सुल्तान बड़े स्वतन्त्र विचार का तथा अपने समय से बहुत आगे था। जब उसकी योजनाएँ असफल होती थीं और लोग उसकी अवहेलना करते थे तो वह विरोधियों को प्रायः मृत्यु दण्ड तथा अंग-भंग करने के दण्ड देता था। ऐसा उस युग के हर सुल्तान ने किया था।

(2) बीस गुना कर वृद्धि का आरोप

आरोप का कारण

मुहम्मद बिन तुगलक को पागल सिद्ध करने के लिए दूसरा प्रमाण यह दिया जाता है कि उसने दोआब में कर वृद्धि करके बड़ी बर्बरता के साथ उसे वसूल किया। कहा जाता है कि एक पागल शासक की भांति मुहम्मद तुगलक ने इसे दस या बीस गुना कर दिया। इतना ही नहीं, घरों तथा चरागाहों पर भी कर लगाया गया। इन असह्य करों के कारण प्रजा को भयानक कष्ट सहने पड़े।

इसी बीच में अकाल पड़ गया। सल्तनत के कर्मचारियों ने प्रजा की संकटापन्न स्थिति में इतनी कठोरता से कर वसूल करना आरम्भ किया कि किसान लोग भयभीत होकर जंगलों में भाग गये। बरनी का कहना है कि सुल्तान ने जंगलों में भी किसानों का पीछा करने की आज्ञा दी। वहाँ उन्हें घेर कर कठोर दण्ड दिया गया। अपनी प्रजा के साथ इस प्रकार का व्यवहार एक पागल सुल्तान ही कर सकता था।

आरोप की समीक्षा

बरनी की यह उक्ति विश्वसनीय नहीं है। उलेमा वर्ग का होने के कारण बरनी सुल्तान से द्वेष रखता था और उसकी निन्दा करता था। सुल्तान ने बरनी की जन्म-भूमि बरान के निवासियों को कठोर दण्ड दिया था। इस कारण बरनी ने सुल्तान की कर नीति की इतनी तीव्र आलोचना की है और सुल्तान द्वारा दिये गये दण्ड का अतिरंजित चित्रण किया है।

गार्डनर ब्राउन के अनुसार करों में बहुत साधारण वृद्धि की गई थी। फरिश्ता ने इस वृद्धि को तीन से चार गुना बताया है। ए.एल. श्रीवास्तव के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक ने करों में 5 से 10 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिये भूमि कर को बढ़ाने की बजाय मकान तथा चारागाहों पर कर लगाया था।

दोआब की कर-वृद्धि में पागलपन की कोई बात नहीं थी। दो आब में कर वृद्धि का कार्य अलाउद्दीन खिलजी ने आरम्भ किया। मुहम्मद बिन तुगलक तो केवल उस नीति के परम्परागत रूप का निर्वहन कर रहा था। वह युग ऐसा ही था। उसमें हिन्दुओं को धन संग्रहण करने से रोकने तथा उन्हें हमेशा के लिये निर्धन बनाने का काम धार्मिक काम समझा जाता था।

इसलिये गयासुद्दीन तुगलक ने हिन्दुओं के नाम यह आदेश जारी किया कि वे धन संग्रहण नहीं करें। दोआब अत्यन्त धन सम्पन्न प्रदेश था। अच्छी फसल होने के कारण वहाँ के लोग प्रायः विद्रोह का झण्डा खड़ा कर देते थे। उनकी आर्थिक स्थिति को तोड़ने के लिये यह आवश्यक था कि उन पर इतना कर लगाया जाये कि उनके पास रोटी खाने के अलावा और कुछ न बचे। अतः सुल्तान ने पूरी जांच कराने के बाद बड़ी सावधानी के साथ इस योजना को तैयार करवाया था।

हो सकता है कि सरकारी कर्मचारियों ने प्रजा के साथ जो अत्याचार किया, उससे सुल्तान अवगत न रहा हो। इसमें सन्देह नहीं कि जब सुल्तान को प्रजा के कष्ट का पता चला तब उसने निराकरण की समुचित व्यवस्था की। उसने कर घटा दिया। भोजन तथा चारे का प्रबन्ध करवाया और किसानों में 70 लाख रुपये की तकावी बंटवाई।

उसने ढाई साल तक अपना मुख्यालय सरगद्वारी में बनाये रखा और वहाँ रहकर वह किसानों को अकाल राहत पहुँचाने का कार्य करता रहा। ये समस्त कार्य सुल्तान की उदारता के परिचायक हैं। किसी अन्य सुल्तान ने अकाल के समय किसानों के साथ ऐसी सहानुभूति नहीं दिखाई थी।

निष्कर्ष: कर-वृद्धि के आधार पर सुल्तान को पागल कहना निराधार है। हिन्दुओं की आर्थिक स्थिति खराब करने तथा उन्हें विद्रोह करने योग्य न छोड़ने का कार्य उस युग के हर सुल्तान ने किया था।

(3) राजधानी के परिवर्तन का आरोप

आरोप का कारण: सुल्तान को पागल सिद्ध करने के लिए तीसरा प्रमाण यह दिया जाता है कि एक पागल की भांति वह अपनी राजधानी को दिल्ली से देवगिरि ले गया था। सुल्तान ने दिल्ली के समस्त निवासियों को देवगिरि चले जाने की आज्ञा दे दी। सुल्तान की आज्ञा के उल्लंघन का साहस किसी को नहीं हुआ।

व्यापारी, दुकानदार, सरकारी कर्मचारी समस्त को भयभीत होकर देवगिरि के लिए प्रस्थान कर देना पड़ा। बरनी का कहना है कि दिल्ली नगर बिल्कुल उजड़ गया और मनुष्य की कौन कहे, कुत्ते तथा बिल्ली भी वहाँ पर नहीं रह गये। अन्धे, लँगड़े तथा लूले भी घसीट कर देवगिरि पहुँचाये गये। इस प्रकार का कार्य एक पागल तथा झक्की सुल्तान ही कर सकता था।

आरोप की समीक्षा: बरनी का कथन पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है। उसमें अतिरंजना प्रतीत होती है। वास्तव में राजधानी के परिवर्तन में ऐसी कोई बात नहीं थी जिसके कारण सुल्तान को पागल कहा जाये। राजधानी का परिवर्तन प्राचीन काल से ही भारत में होता चला आया है।

देवगिरि, दिल्ली सल्तनत के केन्द्र में स्थित था जहाँ से शासन को सुचारू रीति से चलाया जा सकता था। राजधानी का परिवर्तन सुल्तान की बुद्धिमत्ता तथा उसकी दूरदर्शिता का द्योतक है, न कि उसके पागलपन का! अपनी योजना को कार्यान्वित करते समय सुल्तान ने वे समस्त व्यवस्थाएँ कीं जो एक बुद्धिमान शासक को करनी चाहिये थीं। फिर भी सुल्तान अपनी योजना में असफल रहा जिसका कारण यह था कि प्रजा दिल्ली से दौलताबाद जाकर रहना नहीं चाहती थी।

निष्कर्ष: सफलता अथवा असफलता के आधार पर ही किसी योजना के औचित्य का निश्चय नहीं किया जा सकता। अतः इस आधार पर मुहम्मद बिन तुगलक को पागल नहीं माना जा सकता।

(4) संकेत-मुद्रा के प्रचलन का आरोप

आरोप का कारण: सुल्तान को पागल सिद्ध करने के लिए चौथा प्रमाण यह दिया जाता है कि उसने संकेत मुद्रा का प्रचलन एक मूर्ख तथा झक्की व्यक्ति की भांति किया था। एक पागल की भांति उतावलेपन में आकर उसने तांबे की मुद्राएँ चला दीं।

न उसने मुद्राओं के निर्माण पर राज्य का एकाधिकार रखा और मुद्राओं पर ऐसे चिन्ह अंकित करने की व्यवस्था की जिससे सर्वसाधारण इन मुद्राओं का निर्माण न कर सके। इससे बढ़कर और क्या पागलपन हो सकता था। परिणाम यह हुआ कि समस्त कुशल लोग अपने घरों में ताँबे की मुद्राएँ बनाने लगे जिससे व्यापार ध्वस्त हो गया और जब सुल्तान ने इन संकेत मुद्रओं के बदले सोने-चाँदी की मुद्राएँ देना आरम्भ किया, तब राजकीय कोष रिक्त हो गया जिससे साम्राज्य पतनोन्मुख हो चला। इस प्रकार सुल्तान की योजना तथा उसका क्रियात्मक स्वरूप दोनों ही सुल्तान के पागलपन के द्योतक हैं।

आरोप की समीक्षा

संकेत मुद्रा का प्रचलन मुहम्मद बिन तुगलक के पागलपन का प्रतीक नहीं है। उससे पहले ही चीन तथा फारस में कागज की संकेत मुद्रा का प्रचलन हो चुका था। आधुनिक युग में भी संकेत-मुद्रा का प्रचलन है। अतः इस योजना में कोई ऐसी बात न थी जिससे उस पर पागलपन का लांछन लगाया जाये।

क्रियात्मक रूप में योजना की असफलता का कारण यह था कि यह योजना अपने समय से बहुत आगे थी। उस काल की जनता चांदी के सिक्के छोड़कर ताम्बे के सिक्के स्वीकार नहीं कर सकी। सुनारों ने भी ताम्बे के सिक्के ढालकर इस योजना को निष्फल कर दिया।

निष्कर्ष

मुहम्मद बिन तुगलक को इस योजना में अपनी प्रजा का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ परन्तु योजना की असफलता के आधार पर ही सुल्तान को पागल कहना उचित नहीं है।

(5) खुरासान तथा चीन की विजय योजनाएं बनाने का आरोप

आरोप का कारण

मुहम्मद बिन तुगलक के पागलपन के पक्ष में पाँचवा प्रमाण यह दिया जाता है कि एक पागल आदमी की तरह उसने खुरासान तथा चीन विजय की योजनाएँ बर्नाईं। दिल्ली से इतनी दूर स्थित देशों को जीतने की योजना बनाना सुल्तान के पागलपन का प्रमाण है।

आरोप की समीक्षा

मुहम्मद बिन तुगलक की चीन तथा खुरासान पर विजय प्राप्त करने की योजनाओं में ऐसी कोई बात नहीं थी जिसके आधार पर उसे पागल कहा जाये! वह महत्वाकांक्षी सुल्तान था। राज्य को चलाने के लिये धन प्राप्त करने तथा इतिहास में स्थान प्राप्त करने के लिये ख्याति प्राप्त करने की आकांक्षा करना किसी भी सुल्तान के लिये पागलपन का प्रमाण नहीं मानी जा सकतीं।

सिकन्दर ऐसा ही कर चुका था। अलाउद्दीन खिलजी भी ऐसा करना चाहता था। बाद में समरकंद और फरगना का शासक बाबर भी भारत विजय करने में सफल रहा था। जब बाहर से आकर शासक भारत विजय कर सकते थे तो भारत से बाहर जाकर शासक ऐसा क्यांे नहीं कर सकते थे।

यह भी विचारणीय है कि मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भारत में अब कुछ विजय करना शेष नहीं रह गया था। उसके पास विजय योजनाओं के लिए प्रचुर साधन भी थे। जब उसे इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ दिखाई नहीं दीं तो उसने इन योजनाओं को छोड़ दिया।

निष्कर्ष: चीन तथा खुरासान पर विजय प्राप्त करने के लिये बनाई गई योजनाओं के लिये मुहम्मद बिन तुगलक को पागल नहीं कहा जा सकता, वरन् उसकी प्रशंसा की जानी चाहिये कि वह दूरदर्शी राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ था। ये योजनाएँ सुल्तान की महत्वाकांक्षा का द्योतक हैं, न कि उसके पागलपन का।

(6) काल्पनिकता का आरोप

आरोप का कारण: मुहम्मद बिन तुगलक के पागल होने के पक्ष में एक यह भी प्रमाण उपस्थित किया जाता है कि वह उन्मुक्त व्यक्ति की भांति कल्पनाएँ किया करता था।

आरोप की समीक्षा: मुहम्मद बिन तुगलक अत्यंत कल्पनाशील सुल्तान था। नई योजनाएं बनाने में उसकी विशेष रुचि रहती थी। कई बार इन योजनाओं को कार्यरूप में परिणत करना असम्भव हो जाता था और अन्ततोगत्वा ये योजनाएं असफल हो जाती थीं किंतु केवल असफलताओं के आधार पर सुल्तान को पागल कहना सर्वथा अनुचित होगा।

उसमें मौलिक प्रतिभा थी। इसलिये उसमें कल्पनाशीलता तथा योजना प्रेमी होना स्वाभाविक ही था। उसकी कोई भी योजना ऐसी नहीं थी जो अनुकूल परिस्थितियों में कार्यान्वित नहीं की जा सकती थी। उसकी योजनाएँ इस कारण विफल नहीं हुईं कि वे कार्यान्वित नहीं की जा सकती थीं, वरन् वे इसलिये विफल हुईं क्योंकि वे अपने समय से बहुत आगे थीं। उन योजनाओं को सफल बनाने में राज्याधिकारियों तथा जनसाधारण का सहयोग प्राप्त नहीं हो सका।

निष्कर्ष

उपरोक्त समीक्षा से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मुहम्मद बिन तुगलक पागल नहीं था अपितु वह अपने समय से बहुत आगे था। उस परम्परागत वातावरण में उसकी क्रांतिकारी योजनाएं उसके समय के लोगों की समझ में नहीं आती थीं। यदि वह आधुनिक काल में हुआ होता तो उसकी गणना महान् बादशाहों में हुई होती। वास्तव में मुहम्मद बिन तुगलक युगांतरकारी सोच का धनी था।

उसने उस काल की संकीर्णता तथा असहिष्णुता को हटाने का प्रयत्न किया था। वह कठमुल्लाओं के राज्य की जगह स्वतंत्र विचारों पर आधारित राजतन्त्र स्थापित करना चाहता था और राजनीति को धार्मिक प्रभाव से मुक्त करना चाहता था परन्तु ऐसा करना उस काल की धारणा के विरुद्ध था। इसमें संदेह नहीं कि वह स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश था, परन्तु उसका शासन उदार था जो उसके ह्नदय की विशालता तथा उसके व्यापक दृष्टिकोण का परिचायक है। अतः सुल्तान को पागल कहना सर्वथा निराधार है।

लेनपूल ने लिखा है- ‘मुहम्मद बिन तुगलक मध्यकाल में सर्वाधिक आकर्षक व्यक्ति था। वह ऐसा व्यक्ति था जिसके विचार अपने समय से बहुत आगे थे। अलाउद्दीन खिलजी ने शासन की समस्याओं पर विचार किया था परन्तु उसका मस्तिष्क शक्तिशाली था, सभ्य नहीं। मुहम्मद बिन तुगलक अपनी योजनाओं में उससे अधिक साहसी था तथा उसके विचार एक शिक्षित और सभ्य मस्तिष्क के विचार थे।’

डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है- ‘यह सत्य है कि वह असफल रहा परन्तु उसकी असफलता का कारण बहुत बड़े अंश में वे परिस्थितियाँ थीं जिन पर उसका बहुत थोड़ा या बिल्कुल नियन्त्रण नहीं था।’

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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