Sunday, August 17, 2025
spot_img

संत नामदेव

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के काल में महाराष्ट्र में हुए वैष्णव भक्तों में संत नामदेव का नाम अग्रणी है। उनका जन्म ई.1270 में महाराष्ट्र के नरसी बामनी गांव के एक दर्जी परिवार में हुआ।

संत नामदेव के पिता का नाम दयाशेठ और माता का नाम गोणाई था। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही कर दिया गया तथा पिता की मृत्यु के बाद परिवार का बोझ भी उनके कन्धों पर आ पड़ा। माता और पत्नी ने उन्हें पैतृक व्यवसाय करने के लिए प्रेरित किया परन्तु नामदेव केवल हरि-कीर्तन करते रहे।

कुछ समय बाद नामदेव पण्ढरपुर में जाकर बस गए। बीस वर्ष की आयु में नामदेव की भेंट संत ज्ञानेश्वर से हुई। इसके बाद नामदेव ने भारत के कई प्रांतों की यात्रा की। दक्षिण भारत की जनता पर नामदेव के उपदेशों का बड़ा प्रभाव पड़ा। वे उत्तर भारत में भी पंजाब सहित कई प्रान्तों में गए किंतु उनका सर्वाधिक प्रभाव पंजाब के लोगों पर पड़ा।

गुरु नानकदेव के विचारों में संत नामदेव के उपदेशों का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। आज भी पंजाब में उनके लाखों अनुयायी हैं और उन्हें उनके नाम के साथ ‘नामदेव’ जोड़ते हैं। विष्णु-भक्ति का प्रचार करते हुए वे पुनः पुण्ढरपुर आ गए।

नामदेव प्रेमाश्रयी भक्ति धारा के कवि थे। उन्होंने जनसाधारण को रीति-रिवाजों एवं जाति-पाँति के बन्धनों से मुक्त होकर प्रेममयी-भक्ति करने का उपदेश दिया। रामानंद की तरह नामदेव के शिष्यों में भी समस्त जातियों और वर्गों के लोग थे। संत नामदेव ने हिन्दू और मुसलमान दोनों से अपनी बुराइयां त्यागने को कहा-

हिन्दू अन्धा, तुरको काना।

दूवौ तो ज्ञानी सयाना।

हिन्दू पूजै देहरा, मुसलमान मसीद,

नामा सोई सेविया जहं देहरा न मसीद।।

नामदेव एकेश्वरवादी थे और मूर्ति-पूजा करने तथा पुरोहितों के नियन्त्रण में रहने के विरुद्ध थे। नामदेव की मान्यता थी कि केव भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है।

संत नामदेव के लिए प्रभु स्मरण ही जीवन का आधार था और सभी मनुष्यों को प्रभु के नाम का स्मरण करने का संदेश देते थे। वे भगवान के सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूपों को भजने योग्य मानते थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के सगुण स्वरूप का गुणगान किया और साथ ही निर्गुण ईश्वर की उपासना की महत्ता भी बताई। उन्होंने कहा-

‘त्रिवेणी पिराग करौ मन मंजन।

सेवौ राजा राम निरंजन।’

संत नामदेव की शिक्षा समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने और मानव मात्र के प्रति प्रेम और सेवा की भावना को जागृत करने का आह्वान करती है। वे कहते हैं-

हमारे करता राम सनेही,

काहे रे नर गरब करत हो।

बिनस जायगी देही।

हरि नाम हीरा हरि नाम हीरा,

हरि नाम लेत मिटें सब पीरा।’

संत नामदेव ने मराठी में अभंग और हिंदी में पदों की रचना की। उनके भजनों और पदों में प्रभु स्मरण, सामाजिक समरसता और जीवन में भक्ति की महत्ता का बखान है।

संत नामदेव के भजन और पद गुरुग्रंथ साहिब में सम्मिलित किए गए। इन भजनों से नामदेव के व्यापक दृष्टिकोण की जानकारी मिलती है। वे समस्त प्राणियों में एक ही परमात्मा को देखते थे- ‘एकल माटी कुंजर चींटी, भाजन हैं बहु नाना रे।’

गुरुग्रंथ साहिब में उनका एक पद इस प्रकार से है-

‘कहा करउ जाती कहा करउ पाति,

राम को नाम जपउ दिन राति।’

गुरुग्रंथ साहिब में उनका एक अन्य प्रसिद्ध पद इस प्रकार से है-

‘भइया कोई तुलै रे रामाँय नाम,

जोग यज्ञ तप होम नेम व्रत। ए सब कौंने काम।।

संत नामदेव का मानना था कि राम नाम के समक्ष सारे यज्ञ, हवन, तपस्या, और व्रत तुच्छ हैं।

संत कबीर और संत रैदास आदि संतों ने संत नामदेव की महिमा का गुणगान किया है। संत रैदास ने कहा-

नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरे।

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै। नामदेव द्वारा रचित पद एवं अभंग महाराष्ट्र के घर-घर में गाए जाते हैं। देश भर में भ्रमण करने वाले साधु-संत भी नामदेव द्वारा रचित भजन एवं पद गाते हैं। माना जाता है कि 80 वर्ष की आयु में ई.1350 में नामदेव ने शरीर छोड़ा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

भारत का मध्य-कालीन भक्ति आंदोलन

भगवद्भक्ति की अवधारणा

भक्ति आन्दोलन का पुनरुद्धार एवं उसके कारण

मध्य-युगीन भक्ति सम्प्रदाय

भक्तिआन्दोलन की प्रमुख धाराएँ

भक्ति आन्दोलन का प्रभाव

मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

रामानुजाचार्य

माधवाचार्य

निम्बार्काचार्य

संत नामदेव

रामानंदाचार्य

वल्लभाचार्य

सूरदास

संत कबीर

भक्त रैदास

गुरु नानकदेव

मीरा बाई

तुलसीदास

संत तुकाराम

दादूदयाल

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source