बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला ईस्वी 1757 में मर गया था किंतु पूरे 267 साल बाद फिर से जीवित होकर भारत में घुसने की कोशिश कर रहा है।
बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के अधीन वर्तमान बांग्लादेश के साथ-साथ पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्र भी शामिल थे। बांग्लादेश के मुसलमानों ने मांग की है कि सिराजुद्दौला के शासन वाले पूरे क्षेत्र बांग्लादेश को मिलने चाहिए।
बांग्लादेश के मुसलमानों की इस बात के दो अर्थ निकलते हैं, पहला यह कि नवाब सिराजुद्दौला जैसे घृणित लोग कभी मरते नहीं, वे हर काल में जीवित होकर लौट कर आते हैं और दूसरा यह कि बांगलादेश के मुसलमान स्वयं को सिराजुद्दौला के वंशज और उत्तराधिकारी समझते हैं।
ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान में कुछ लोग स्वयं को महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी की औलाद मानते हैं तथा उनके नामों से तोपें और मिसाइलें बनाकर दुनिया को मारना चाहते हैं।
ठीक वैसे ही जैसे भारत में कुछ लोग स्वयं को बाबर के वंशज और उत्तराधिकारी मानते हैं, और वक्फ के माध्यम से पूरे भारत को हड़प जाना चाहते हैं।
आज के भारत में वक्फ बोर्ड के पास दस लाख एकड़ धरती है, इतनी धरती तो स्वयं महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, बाबर या सिराजुद्दौला के पास भी नहीं थी।
बांगलादेश के मुसलमानों की इस खतरनाक मांग पर मीठी सी प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांग्लादेश के उन मुसलमानों को खुश एवं सुखी रहने की शुभकामनाएं देते हुए कहा है- ‘आम्ही लॉलीपॉप खात बसणार नाही।’ अर्थात् हम लॉलीपॉप खाकर बैठे नहीं रहेंगे।
ममता बनर्जी ने यह लॉलपॉप छाप प्रतिक्रिया इसलिए दी है कि कहीं पश्चिमी बंगाल में बैठे उनके मुस्लिम वोटर नाराज न हो जाएं। ये वही ममता बनर्जी हैं जो अपने मुस्लिम मतदाओं को खुश करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दीपावली पर मिठाई के स्थान पर पत्थर भेजने की इच्छा व्यक्त कर चुकी हैं तथा नरेन्द्र मोदी की कमर में रस्सी बांधकर बांगलादेश भेजने का इरादा भी जता चुकी हैं।
हैरानी होती है ममता बनर्जी के मुस्लिम-मतदाता प्रेम को देखकर! क्या उनकी प्रतिक्रिया केवल इतनी सी होनी चाहिए थी कि हम बैठकर लॉलीपॉप नहीं खाएंगे! क्या उन्हें ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए था कि भारत माता की तरफ बढ़ने वाले हाथ काट दिए जाएंगे, भारत के विरुद्ध बोलने वालों की जीभ खींची ली जाएगी! जब तक मेरे शरीर में रक्त की एक बूंद है, तब तक कोई बांग्लादेशी भारत की एक इंच भूमि भी नहीं ले सकता!
ममता बनर्जी को यहीं पर छोड़ देते हैं, क्योंकि उनके लिए इतना ही काफी है। अब थोड़ी सी चर्चा उस सिराजुद्दौला की करते हैं जो मरने के बाद जीवित होकर एक बार फिर से भारत में घुसना चाहता है।
ईस्वी 1748 में दिल्ली का निकम्मा और अय्याश बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला घृणित यौन रोगों की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए अत्यधिक शराब पीकर मर गया। उसके मरते ही बंगाल के सूबेदार अली वर्दी खाँ ने स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र नवाब घोषित कर दिया।
उस समय बंगाल सूबे में आज का बांग्लादेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्र आते थे। अलीवर्दी खाँ के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसने अपनी छोटी पुत्री के पुत्र सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी बनाया। जब ईस्वी 1756 में अलीवर्दी खाँ मर गया तो अलीवर्दी खाँ का यही नवासा सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना।
इसी सिराजुद्दौला और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना के बीच 23 जून 1757 को कलकत्ता के पास प्लासी के मैदान में प्लासी का युद्ध लड़ा गया था। सिराजुद्दौला की सेना में 50,000 सैनिक थे। जबकि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर लॉर्ड क्लाइव के पास केवल 800 यूरोपियन तथा 2200 भारतीय सैनिक थे।
नवाब सिराजुद्दौला ने अंग्रेजों पर चारों तरफ से आक्रमण करने के लिए अपनी सेना के चार टुकड़े किए तथा प्रत्येक टुकड़े को एक मुस्लिम सेनापति के अधीन रखा। जब युद्ध आरम्भ होने ही वाला था, तब नवाब सिराजुद्दौला के चार में से तीन सेनापति सिराजुद्दौला को छोड़कर लॉर्ड क्लाइव की ओर चले गए। इन बागी सेनापतियों का नेतृत्व नवाब सिराजुद्दौला का जवांई मीर जाफर कर रहा।
नवाब सिराजुद्दौला भी युद्ध का मैदान छोड़कर पटना की ओर भाग गया। अंग्रेजों ने उसे पटना पहुंचने से पहले ही पकड़कर कैद कर लिया। 28 जून 1757 को अँग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया।
2 जुलाई 1757 को मीर जाफर के पुत्र मीरन ने अपने नाना नवाब सिराजुद्दौला की हत्या कर दी। इतिहासकार के. एम. पणिक्कर ने लिखा है- ‘प्लासी एक ऐसा सौदा था, जिसमें बंगाल के धनी लोगों और मीर जाफर ने नवाब को अँग्रेजों के हाथों बेच दिया था।’
इस युद्ध के बाद अंग्रजों ने भारत में राजनीतिक सत्ता स्थापित की। इसी बंगाल से आगे बढ़कर अंग्रेजों ने पहले अवध पर, बाद में दिल्ली पर और अंत में लगभग पूरे भारत पर कब्जा किया था।
जब अंग्रेजों ने भारत में 11 ब्रिटिश प्रांत स्थापित किए, तब बंगाल को भी एक प्रांत बनाया गया था। उस बंगाल प्रांत में आज का बांग्लादेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के क्षेत्र आते थे।
ईस्वी 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल प्रांत के दो टुकड़े किए। उसने पूर्वी बंगाल नामक प्रांत में मुसलमानों की संख्या अधिक रखकर बंगाली हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बनाया और पश्चिमी बंगाल में बिहारी एवं उड़िया भाषी लोगों की संख्या रखकर बंगाली हिन्दुओं का अल्पंख्यक बनााया।
कर्जन का उद्देश्य यह था कि पूर्वी बंगाल के लोग मजहब के नाम पर बंगाली हिन्दुओं को मारें तथा पश्चिमी बंगाल के लोग भाषा के नाम पर बंगाली हिन्दुओं को मारें।
उस समय बंगाली हिन्दुओं ने ऐसी अद्भुत एकता दिखाई तथा इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया कि ईस्वी 1911 में अंग्रेजों को बंगाल का विभाजन रद्द करके फिर से एक प्रांत बनाना पड़ा।
ईस्वी 1947 में जब जिन्ना ने भारत का विभाजन करवाया, तब वह पूरा का पूरा बंगाल पूर्वी पाकिस्तान के नाम से चाहता था किंतु सरदार पटेल तथा उनके सचिव वी. पी. मेनन, वायसराय लॉर्ड माउण्टबेटन को यह समझाने में सफल रहे कि यदि पूरा बंगाल पाकिस्तान को दिया गया तो बंगाल में हिन्दुओं का नर-संहार होगा। इसलिए यह तय किया गया कि पूर्वी बंगाल अर्थात् मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान को दिया जाए तथा पश्चिमी बंगाल अर्थात् हिन्दू बहुल क्षेत्र भारत में रहने दिया जाए।
इस विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान अर्थात् आज के बांगलादेश से हिन्दुओं को भारत अर्थात् आज के पश्चिमी बंगाल में आना था और यहाँ के मुसलमानों को पूर्वी पाकिस्तान में जाना था किंतु गांधी की जिद पर ऐसा नहीं हो सका। इस कारण बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू जनसंख्या पूर्वी पाकिस्तान में रह गई जिन्हें 1947 के बाद सेे ही समाप्त किया जा रहा है।
1947 में बांग्लादेश में 22 प्रतिशत हिन्दू थे। जब भारत विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ तब वहां के हिन्दुओं ने पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं के लिए एक अलग देश की मांग की किंतु नेहरू ने लियाकत अली से समझौता कर लिया तथा बंगाली हिन्दुओं की इस मांग को ठुकरा दिया।
अब बांग्लादेश में केवल 8 प्रतिशत बंगाली हिन्दू रह गए हैं। बांग्लादेश के मुसलमान न केवल इन 8 प्रतिशत हिन्दुओं का सफाया करना चाहते हैं, अपितु पश्चिमी बंगाल, बिहार और उड़ीसा को बांग्लादेश में लेकर इन क्षेत्रों के हिन्दुओं का भी सफाया करना चाहते हैं।
इसी निश्चय के साथ पूरे 267 साल के बाद बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला न जाने किस कब्र से निकलकर बाहर आ गया है और पूरा बंगाल मांग रहा है। वही सिराजुद्दौला जिसे उसके ही दौहित्र मीरन ने अपनी ही तलवार से कतल कर दिया था।
ममता बनर्जी लॉलीपॉप खाने की बात करके, सिराजुद्दौला को रोकने की बजाय लीपापोती कर रही हैं ताकि ममता बनर्जी पर कोई देशद्रोही होने का आरोप न लगा सके। कानूनी रूप से देशद्रोही न सही, किंतु व्यावहारिक रूप से वे क्या हैं, कोई भी समझदार आदमी यह आसानी से समझ सकता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता