डॉ. मोहनलाल गुप्ता भारतीय इतिहास, संस्कृति और दर्शन के सुप्रसिद्ध लेखक हैं। इस पुस्तक “क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त” (Quantum Brahmand Aur Vedant) में उन्होंने एक ऐसे विषय-संगम को प्रस्तुत किया है, जहाँ आधुनिक विज्ञान और प्राचीन भारतीय अध्यात्म एक-दूसरे का पूरक बनकर उभरते हैं। यह पुस्तक न केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा को संतुष्ट करती है, बल्कि वेदांत की पारंपरिक चिंतन-धारा के माध्यम से ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने का एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करती है।
क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त की वैचारिक भूमिका
डॉ. गुप्ता ने आरंभ में ही यह स्थापित किया है कि विज्ञान और आध्यात्म—दोनों का उद्देश्य सत्य की खोज है। क्वाण्टम भौतिकी जहाँ सूक्ष्मतम स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का अध्ययन करती है, वहीं वेदांत “ब्रह्म” को अंतिम सत्य मानते हुए जगत के मूल स्वरूप की व्याख्या करता है। लेखक दिखाते हैं कि दोनों अलग-अलग मार्गों से एक ही सत्य की ओर अग्रसर होते हैं—एक अनुभवजन्य प्रयोगों के द्वारा, और दूसरा अंतर्ज्ञान, तर्क तथा अनुभूति द्वारा।
क्वांटम सिद्धांत और वेदांत का संगम
पुस्तक के प्रथम भाग में क्वाण्टम भौतिकी (Quantum Physics) के प्रमुख सिद्धांतों—जैसे वेव-पार्टिकल द्वैत, अनिश्चितता सिद्धांत, क्वाण्टम एंटैंगलमेंट, क्वाण्टम टनलिंग आदि—का सरल भाषा में विवरण किया गया है। उल्लेखनीय यह है कि लेखक इन सिद्धांतों को अत्यधिक तकनीकी न बनाकर सामान्य पाठक के लिए सुगम कर देते हैं।
इसके बाद लेखक इन सिद्धांतों की तुलना वेदांतिक अवधारणाओं से करते हैं। उदाहरण के लिए—
- वेव-पार्टिकल द्वैत की तुलना “निराकार–साकार ब्रह्म” से,
- क्वाण्टम अनिश्चितता की तुलना माया सिद्धांत से,
- और एंटैंगलमेंट की तुलना अद्वैत वेदांत के ‘एकत्व’ सिद्धांत से की गई है।
लेखक यह नहीं कहते कि प्राचीन ऋषियों ने सीधे-सीधे क्वांटम भौतिकी को समझ लिया था, बल्कि यह कि उनके अनुभवजन्य निष्कर्ष आज के वैज्ञानिक सिद्धांतों से सामंजस्य रखते हुए प्रतीत होते हैं। यह संतुलित दृष्टिकोण पुस्तक को अतिरंजना से बचाता है।
ब्रह्माण्ड की संरचना और वेदांत
पुस्तक का दूसरा भाग ब्रह्माण्ड विज्ञान (Brahmand Science) पर केंद्रित है। यहाँ बिग बैंग सिद्धांत, ब्रह्माण्ड के विस्तार, डार्क मैटर–डार्क एनर्जी, मल्टीवर्स जैसी चर्चित वैज्ञानिक अवधारणाओं का परिचय दिया गया है। लेखक बताते हैं कि आधुनिक विज्ञान ब्रह्माण्ड को एक सतत परिवर्तनशील, ऊर्जा-प्रधान संरचना के रूप में देखता है, जबकि वेदांत (Vedant) उसे ‘ब्रह्म की अभिव्यक्ति’ कहता है।
डॉ. गुप्ता इन दोनों दृष्टिकोणों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए यह निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, संरचना और अंत—ये सब प्रश्न विज्ञान और अध्यात्म दोनों के अध्ययन की सीमाओं को चुनौती देते हैं। वेदांत ‘चक्राकार समय’ की अवधारणा प्रस्तुत करता है, जबकि विज्ञान प्रारंभ और अंत की रैखिक अवधारणा पर आधारित है। यह तुलना पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह दोनों विचारधाराएँ अंततः किसी साझा आधार पर मिल सकती हैं।
वेदांत का दार्शनिक विमर्श
क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त के तीसरे भाग में वेदांत के मूल सिद्धांत—ब्रह्म, आत्मा, माया, कर्म, पुनर्जन्म, अद्वैत, चेतना की प्रकृति—का विस्तृत विवेचन मिलता है। डॉ. मोहनलाल गुप्ता विशेष रूप से चेतना (Consciousness) पर वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चेतना को अधिकतर न्यूरोलॉजिकल या कम्प्यूटेशनल प्रक्रिया माना जाता है, जबकि वेदांत इसे ब्रह्म का स्वरूप मानते हुए प्राथमिक तत्व घोषित करता है। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि आज क्वांटम कॉन्शसनेस, इंटीग्रेटेड इन्फॉर्मेशन थ्योरी जैसी वैज्ञानिक संकल्पनाएँ इस विमर्श को नई दिशा दे रही हैं। लेखक इन सिद्धांतों और वेदांत के दृष्टिकोण के बीच संभावित समानताओं और मतभेदों का संयत विश्लेषण देकर पाठक को गहन चिंतन के लिए प्रेरित करते हैं। लेखक ने इन विषयों के दार्शनिक पक्ष को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न उपनिषदों एवं श्रीमद्भगवद् गीता के साथ-साथ तुलसीदास कृत रामचरित मानस से भी ढेरों उदाहरण दिए हैं जिनसे इस विषय को सारगर्भित रूप से समझने में सहायता मिलती है। रामचरित मानस के विभिन्न पक्षों पर यद्यपि अनेक प्रकार से शोध कार्य किए गए हैं किंतु मानस के दार्शनिक पक्ष को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर देखने का कार्य इससे पहले नहीं हुआ है।
कागभुशुण्डि के माध्यम से गोस्वामीजी से ब्रह्माण्ड में जीव की स्थिति को समझाया है तो क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त पुस्तक में मानस के इसी विषय को क्वाण्टम के साथ जोड़कर स्पष्ट किया गया है।
क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त की विशेषताएँ
- सरल भाषा और वैज्ञानिक संतुलन – पुस्तक जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को भी सहज शैली में समझाती है।
- तुलनात्मक अध्ययन – विज्ञान और वेदांत के विचारों को बिना कट्टरता और बिना अनावश्यक चमत्कारवाद के तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- विस्तृत संदर्भ – पुस्तक में वैज्ञानिक सिद्धांतों, उपनिषदों, वेदांत शास्त्रों और आधुनिक दार्शनिक विमर्शों का अच्छा संदर्भ मिलता है।
- चिन्तन-प्रधान ग्रंथ – यह पुस्तक उत्तरों से अधिक प्रश्नों को जन्म देती है, जिससे पाठक स्वयं विचार करने को प्रेरित होता है।
समीक्षात्मक निष्कर्ष
“क्वाण्टम, ब्रह्माण्ड और वेदान्त” उन पुस्तकों में से है जो ज्ञान के दो भिन्न क्षेत्रों—विज्ञान और अध्यात्म—के बीच संवाद की आवश्यकता पर बल देती है। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने इसे केवल वैचारिक कड़ी बनाने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विषय को व्यापक संदर्भों में रखकर समझाने का प्रयास किया है। कहीं-कहीं तुलना पाठक को दार्शनिक अधिक और वैज्ञानिक कम लग सकती है, किंतु लेखक का उद्देश्य विज्ञान की कठोर पद्धति को वेदांत पर थोपना नहीं, बल्कि दोनों की संगति और संभावनाओं को उजागर करना है।
समग्रतः यह पुस्तक उन पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो ब्रह्माण्ड, चेतना, अस्तित्व और सत्य की खोज के संबंध में गहन तथा समन्वित दृष्टि प्राप्त करना चाहते हैं। यह विज्ञान और अध्यात्म के बीच सेतु-निर्माण का एक सफल प्रयास है और जिज्ञासु मस्तिष्कों के लिए अवश्य पठनीय है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक “क्वाण्टम ब्रह्माण्ड और वेदान्त” का समीक्षात्मक परिचय (लगभग 600 शब्द)
यह पुस्तक अमेजन पर प्रिण्टेड एडीशन तथा ई-बुक एडीशन के रूप में उपलब्ध है।




