Monday, December 29, 2025
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गुजरात की बगावत से विचलित हो गया अकबर (106)

अकबर को समाचार मिला कि कामरान की बेटी गुलरुख बेगम का पुत्र मुजफ्फर हुसैन मिर्जा अकबर के सैनिकों को मार रहा है। गुजरात की बगावत से अकबर बुरी तरह विचलित हो गया।

जब अकबर (Akbar) को ज्ञात हुआ कि मिर्जाओं ने गुजरात की बगावत (REVOLT OF GUJARAT) में आकर फिर से झण्डा बुलंद कर दिया है तो अकबर ने अपने 16 सेनापतियों को पाटन पहुंचने का आदेश दिया। अकबर स्वयं भी एक तेज सांडनी पर सवार होकर कुछ चुने हुए सैनिकों के साथ गुजरात की ओर दौड़ा। राजस्थान एवं गुजरात में मादा ऊंट को साण्ड कहा जाता है। कुछ लेखक उसे मादा ऊंट होने के कारण साण्डनी लिखते हैं।

इस बार गुजरात की बगावत (REVOLT OF GUJARAT) में खड़े किए गए उपद्रव के तीन बड़े नेता थे। एक तो था मुहम्मद हुसैन मिर्जा, दूसरा था मुजफ्फर हुसैन मिर्जा तथा तीसरा था अख्तियारुल्मुल्क। इनमें से मुजफ्फर हुसैन मिर्जा कामरान की बेटी गुलरुख बेगम और इब्राहीम हुसैन मिर्जा का 16 वर्षीय पुत्र था। अब वह जवान हो गया था।

बगावत का जो झण्डा कामरान ने हुमायूँ के खिलाफ उठाया था, अब उस झण्डे को बुलंद किए रखने की जिम्मेदारी कामरान के नवासे मुजफ्फर हुसैन मिर्जा के कंधों पर आ गई थी। मुजफ्फर हुसैन मिर्जा समझता था कि वह अकबर (Akbar) जैसे शक्तिशाली बादशाह को अपनी तलवार से काट डालेगा।

अबुल फजल ने लिखा है कि जब दौलताबाद में मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) ने सुना कि अकबर (Akbar) राजधानी सीकरी की ओर प्रयाण कर रहा है तो उसने सूरत में आकर उत्पात खड़ा कर दिया। सूरत के किलेदार कुलीच खाँ को दुर्ग में बंद होकर अपनी जान बचानी पड़ी।

इस पर मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) भड़ौंच चला गया। अकबर (Akbar) ने भड़ौंच में कुतुबुद्दीन खाँ को नियुक्त किया था किंतु कुतुबुद्दीन के अधिकारी कुतुबुद्दीन से गद्दारी करके मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) से मिल गए। इस प्रकार मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) ने भड़ौंच पर अधिकार कर लिया।

इस विजय से उत्साहित होकर मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) ने खंभात पर भी अधिकार कर लिया। इख्तियारुल्मुल्क भी अहमदाबाद पर चढ़ बैठा। अकबर (Akbar) ने यहाँ धायभाई अजीज कोका (AJIJ KOKA) अर्थात् खानेआजम को नियुक्त कर रखा था। इस समय वह अहमदाबाद से बाहर किसी पहाड़ी क्षेत्र में था।

इसलिए खानेआजम को भागकर एक अज्ञात दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। जब इख्तियारुल्मुल्क अहमदाबाद में घुसने को हुआ तो अजीज कोका (AJIJ KOKA) उस अज्ञात दुर्ग से बाहर निकलकर अहमदाबाद की तरफ भागा। इख्तियारुल्मुल्क को अहमदाबाद से दूर हटना पड़ा।

इसी समय मुहम्मद हुसैन मिर्जा (MUHAMMA HUSAIN MIRZA) खंभात से अहमदाबाद आया तथा इख्तियारुल्मुल्क और शेर खाँ फुलादी के पुत्रों से मिल गया। अब इन लोगों ने अहमदाबाद में घुसने की तैयारी की।

अबुल फजल ने लिखा है कि गुजरातियों ने लम्बे-लम्बे भाषण दिए तथा तीन दिन तक बहस की। तब तक खानेआजम ने अहमदाबाद में घुसकर अहमदाबाद की तरफ आने वाले मार्गों को बंद कर दिया।

खंभात का मुगल गवर्नर कुतुबुद्दीन भी भड़ौंच से पराजित होकर अहमदाबाद पहुंच गया तथा खानेआजम से आ मिला। इस प्रकार दोनों तरफ गोलबंदी हो गई। जब बहुत बड़ी संख्या में बागी मिर्जा एवं गुजराती अमीर अहमदाबाद पहुंच गए तो युद्ध अनिवार्य हो गया।

अबुल फजल लिखता है कि यदि शाही सेना बागियों का सामना करती तो जीत शाही सेना की होती किंतु न तो खानेआजम को अपने अधिकारियों पर भरोसा था और न खंभात से आए कुतुबुद्दीन को अपने सैनिकों पर भरोसा था।

इसलिए वे अहमदाबाद में बंद होकर बैठे रहे, उन्होंने अपनी तरफ से मिर्जाओं पर आक्रमण करने की कोई पहल नहीं की। खानेआजम ने इसका कारण यह बताया कि शहंशाह अकबर (Akbar) ने खानेआजम को सलाह दी थी कि जब बागी आपस में मिल जाएं और उनकी शक्ति बढ़ जाए, तब युद्ध के सम्बन्ध में सोच-समझ कर निर्णय करना चाहिए।

अहमदाबाद के मुगल अमीरों में फाजिल खाँ नामक एक उत्साही अमीर भी था। उसे यह अच्छा नहीं लगा कि शत्रु-दल अहमदाबाद को घेरकर खड़ा रहे और मुगल सेना अहमदाबाद के भीतर दुबक कर बैठी रहे।

इसलिए एक दिन फाजिल खाँ खानेआजम से अनुमति लेकर खानपुर दरवाजे से बाहर निकला और उसने बागियों को युद्ध के लिए ललकारा। जब मिर्जाओं तथा गुजराती अमीरों की सेना ने फाजिल खाँ तथा उसकी सेना को अहमदाबाद से बाहर आया देखा तो वे फाजिल खाँ तथा उसकी सेना पर टूट पड़े।

फाजिल खाँ के गद्दार सैनिक उसी समय मोर्चा छोड़कर भाग गए।

मिर्जाओं की सेना ने फाजिल खाँ को घायल कर दिया। वह फिर से भाग कर अहमदाबाद नगर में घुस गया। नगर में घुसने के कुछ देर बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।

सुल्तान ख्वाजा भी फाजिल खाँ के साथ अहमदाबाद से बाहर निकला था। वह भी उल्टे पांव नगर की तरफ भागा किंतु उसका घोड़ा उछला और सुल्तान ख्वाजा एक खाई में गिर गया। इस पर एक टोकरी में रस्सी बांधकर सुल्तान ख्वाजा को खाई से बाहर निकाला गया। नगर के दरवाजे बंद हो गए तथा मिर्जाओं एवं गुजरातियों की सम्मिलित सेना नगर से थोड़ी दूर, अपने स्थान पर लौट गई।

खानेआजम अजीज कोका (AJIJ KOKA) (AJIJ KOKA) ने अगले ही दिन सुल्तान ख्वाजा को एक पत्र देकर अकबर (Akbar) के पास सीकरी भिजवाया। जब सुल्तान ख्वाजा अहमदाबाद के समाचार लेकर अकबर (Akbar) के पास पहुंचा तो अकबर (Akbar) विचलित हो गया।

अबुल फजल लिखता है कि अकबर (Akbar) का अजीज कोका (AJIJ KOKA) (AJIJ KOKA) से बड़ा प्रेम था। उसने तुरंत गुजरात की बगावत (REVOLT OF GUJARAT) को शांत करने का निर्णय लिया। अकबर (Akbar) ने अपना हरम कुंअर रायसिंह, सैयद महमूद बारहा तथा सुजात खाँ को सौंपा और अपने सेनापतियों को बुलाकर कहा कि आप सबको तुरंत पाटन पहुंचना है। मैं भी पाटन जा रहा हूँ किंतु मेरा दिल कहता है कि मुझसे पहले पाटन कोई नहीं पहुंच सकता।

अकबर (Akbar) ने मानसिंह कच्छावा, राजा टोडरमल, बिहारीमल, शेख इब्राहीम हकीमउलमुल्क, शेख अहमद आदि सेनापतियों को शहजादों की रक्षा के लिए सीकरी में नियुक्त किया। अबुल फजल ने यहाँ राजा बिहारी मल का नाम गलत लिखा है क्योंकि वह इस समय लाहौर में नियुक्त था।

23 अगस्त 1573 को अकबर (Akbar) एक तेज साण्डनी पर सवार होकर गुजरात के लिए रवाना हो गया। अकबर (Akbar) के वफादार सेनापतियों ने घोड़ों एवं साण्डनियों पर सवार होकर अकबर (Akbar) को चारों ओर से घेर लिया और वे भी अकबर (Akbar) के साथ तेज गति से अहमदाबाद की तरफ बढ़ने लगे।

राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि अकबर (Akbar) ने 27 अमीरों को पाटण पहुंचने के आदेश दिए थे जिनमें से 15 हिन्दू थे। अबुल फजल ने अकबर (Akbar) के साथ जाने वाले मुस्लिम सेनापतियों की संख्या 14 तथा हिन्दू सेनापतियों की संख्या 13 बताई है।

इस प्रकार अकबर (Akbar) ने पूरी शक्ति से गुजरात की बगावत (REVOLT OF GUJARAT) का सामना करने का संकल्प लिया। रविवार को सीकरी से रवाना होने के बाद अकबर (Akbar) एक पहर रात बीतने तक चलता रहा तथा टोडा नामक कस्बे में जाकर रुका। प्रातः होते ही वह फिर से रवाना हो गया तथा सोमवार को ही हंसमहल पहुंच गया। वहाँ थोड़ी देर विश्राम करने के बाद अकबर (Akbar) और भी अधिक तेज गति से चला और एक रात पहर बीतने तक चलता रहा। इस बार वह मुईज्जाबाद पहुंचकर रुका।             

 ✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।

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