जब तैमूरी शहजादे (TIMURID PRINCE ) बगावत पर उतर आए तब अकबर ने उन्हें नष्ट करने की एक गुप्त योजना बनाई और उसे कार्यान्वित करने के लिए आगरा से गुजरात तक सेनाओं की दौड़ का आयोजन किया ताकि मुगल सेनाएं जल्दी से जल्दी गुजरात पहुंच जाएं तथा किसी को अकबर की योजना की भनक भी न लगे।
अकबर (AKBAR) सूरत का दुर्ग जीतने के बाद सिद्धपुर, पाटन, सिरोही, जालौर तथा अजमेर होता हुआ आगरा पहुंचा जहाँ अनेक बड़े सूबेदारों, अमीरों एवं मुगल बेगों ने अकबर का स्वागत किया।
लाहौर का सूबेदार हुसैन कुली खाँ (HUSAIN KULI KHAN) बगावत करने वाले मसूद हुसैन मिर्जा और उन तमाम लोगों को लेकर आया था जो लड़ाई में पकड़े गए थे। अबुल फजल ने लिखा है कि इन सबको गाय के कच्चे चमड़े में लपेटा हुआ था और उनके सींग भी नहीं हटाए गए थे। यह एक वीभत्स दृश्य था।
कच्ची खाल में लिपटे मिर्जाओं के मुँह पर मक्खियां भिनभिना रही थीं जिन्हें वे अपने हाथों से उड़ा भी नहीं सकते थे। इन मिर्जाओं की पीड़ा का वर्णन करना संभव नहीं है।
अकबर की तरह ये भी तैमूरी शहजादे (TIMURID PRINCE ) थे तथा इन्हें मिर्जा (Mirza) कहा जाता था। “बाबर के बेटों की दर्दभरी दास्तान“ में हमने चर्चा की थी कि जब उज्बेक योद्धा शैबानी खाँ (SHAIBANI KHAN) ने बाबर (BABUR) को समरकंद (SAMARAKAND) से तथा अन्य तैमूरी बादशाहों को खुरासान (KHORASAN) तथा ट्रांसऑक्सियाना (TRANSOXIANA) से निकाल दिया था, तब बहुत से तैमूरी शहजादे (TIMURID PRINCE ) तथा उनके सैनिक भाग-भाग कर बाबर (BABUR) की शरण में आए थे।
बाबर (BABUR) ने इन्हें बड़े प्रेम से अपने पास रखा था किंतु इन मिर्जाओं ने पग-पग पर बाबर (BABUR) के साथ धोखा किया था। बाबर (BABUR) के पुत्र हुमायूँ (HUMAYUN) ने भी अनेक मिर्जाओं को अपनी शरण में रखा तथा उन्होंने भी हुमायूँ के साथ धोखा किया। जब हुमायूँ (HUMAYUN) दुबारा भारत में अपने पैर जमाने में सफल रहा था, तब हुमायूँ ने इन मिर्जाओं को संभल की बड़ी जागीर दी थी, यह वही जागीर थी जो बाबर (BABUR) ने हुमायूँ को दे रखी थी।
इस जागीर में वर्तमान उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में आजमपुर तथा निहटौर आदि के इलाके सम्मिलित थे। हुमायूँ (HUMAYUN) ने इन मिर्जाओं को यह अधिकार दे रखा था कि जब वह युद्ध के मैदान में लड़ रहा होता था तब ये मिर्जा हुमायूँ के घोड़े के चारों ओर रहकर युद्ध करते थे। जब हुमायूँ की मृत्यु हो गई, तब अकबर (AKBAR) ने भी मिर्जाओं की संभल की जागीर बनाए रखी तथा युद्ध के मैदान में बादशाह के घोड़े के पास रहकर लड़ने के अधिकार को भी अक्षुण्ण रखा किंतु मिर्जाओं के रक्त में वफादारी कम, धोखाधड़ी अधिक थी। ये सारे मिर्जा (Timurid Dynasty) के थे और इनमें से बहुत से मिर्जा, बाबर (BABUR) के चाचा, ताऊ तथा दादा-परदादा के वंशज थे। इनमें से बहुतों के साथ बाबर के खानदान की शहजादियों के विवाह किए गए थे और बहुत से मिर्जाओं की पुत्रियों के विवाह बाबर की बहिनों एवं बेटी-पोतियों के साथ हुए थे। इस कारण बाबर के खानदान में मिर्जाओं को अवध्य माना जाता था। फिर भी अवसर आने पर बाबर, हुमायूँ (HUMAYUN) और अकबर तीनों को ही इन मिर्जाओं के विरुद्ध कार्यवाही करनी पड़ी थी। मिर्जा लोग धूर्त, मक्कार और विश्वासघाती थे। इन्हें स्वयं पता नहीं था कि ये अपनी जिंदगी से तथा बाबर के परिवार से चाहते क्या थे!
इसलिए जब भी अवसर मिलता था, बगावत का झण्डा बुलंद कर देते थे। यद्यपि इतिहास की पुस्तकों में अकबर (AKBAR) के काल में हुए मिर्जाओं के विद्रोह को बहुत कम महत्व दिया गया है तथापि जब हम अबुल फजल, मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी, राहुल सांकृत्यायन आदि लेखकों की पुस्तकों पर दृष्टिपात करते हैं तो ज्ञात होता है कि अकबर (AKBAR) के काल में हुआ मिर्जाओं का विद्रोह देश-व्यापी था।
विद्रोही मिर्जाओं की गतिविधियां उत्तर में संभल से लेकर पूर्व में कालपी तथा कन्नौज तक, मध्य भारत में बयाना एवं मालवा तक, पश्चिम में गुजरात से लेकर दक्षिण में खानदेश तक फैली हुई थीं। इतने बड़े विद्रोह को दबाने में अकबर (AKBAR) को बहुत शक्ति, ऊर्जा, समय, धन और संसाधन व्यय करने पड़े थे।
इस बार के मिर्जाओं के विद्रोह में मसूद हुसैन मिर्जा, मुहम्मद हुसैन मिर्जा, शाह मिर्जा, इब्राहीम मिर्जा तो सम्मिलित थे ही, साथ ही बाबर (BABUR) के मरहूम बेटे कामरान की पुत्री गुलरुख बेगम भी बागी मिर्जाओं में सम्मिलित हो गई थी, वह इब्राहीम हुसैन मिर्जा की बीवी थी। बागी मिर्जा, अकबर (AKBAR) के अमीरों की सेनाओं द्वारा हर जगह हराए गए और वहाँ से उखाड़कर भगाए गए।
पाठकों को स्मरण होगा कि जब बादशाह अकबर (AKBAR) हकीम मिर्जा के पीछे पंजाब की तरफ गया था, तब संभल की तरफ के मिर्जाओं ने दिल्ली में आकर उत्पात किया था। जब खानखाना हकीम खाँ ने उन्हें दिल्ली से भगा दिया तो इन मिर्जाओं ने भागकर गुजरात में शरण ली थी। इस प्रकार ये तैमूरी शहजादे अकबर के शासनकाल के आरम्भ से ही अकबर को परेशान कर रहे थे।
गुजरात पर उन दिनों चिंगीज खाँ नामक एक अफगान अमीर का शासन था। उसने इन मिर्जाओं को भड़ौंच की जागीर दी। इतनी सी जागीर से मिर्जाओं का काम चलने वाला नहीं था। इसलिए मिर्जाओं ने चिंगीज खाँ को मार दिया तथा गुजरात से लेकर खानदेश तक के बहुत से नगरों पर कब्जा कर लिया।
इस प्रकार पाटन, अहमदाबाद, बड़ौदा, चम्पानेर, सूरत, भड़ौंच आदि नगर मिर्जाओं के प्रमुख केन्द्र बन गए। अकबर (AKBAR) ने इन सभी स्थानों पर स्वयं जाकर उन्हें अपने अधिकार में लिया था और मिर्जाओं को मार भगाया था। अन्य स्थानों पर भी शाह कुली खाँ महरम, धायभाई अजीज कोका, राजा टोडरमल, खानखाना मुनीम खाँ, कुंअर मानसिंह, बीकानेर के कुंअर रायसिंह आदि ने मिर्जाओं को परास्त करके भगाया था।
शाह कुली खाँ महरम जब नगरकोट के अभियान में था, उस समय कुछ मिर्जा भागकर उस तरफ चले गए। शाह कुली खाँ ने उनमें से कई मिर्जाओं को मार दिया जिनमें गुलरुख बेगम का पति इब्राहीम हुसैन मिर्जा भी सम्मिलित था। शाह कुली खाँ ने मसूद हुसैन मिर्जा और उसके साथियों को पकड़ कर गाय की कच्ची खाल में लपेट दिया।
मुगलों के राज्य में किसी भी अमीर, उमराव अथवा बेग को यह अनुमति नहीं थी कि वह किसी तैमूरी शहजादे (TIMURID SHAHZADE) को इस तरह अपमानित अथवा पीड़ित करे किंतु हुसैन कुली खाँ (HUSAIN KULI KHAN) अकबर (AKBAR) का अत्यंत विश्वसनीय था और अकबर ने उसे खानेजहाँ की उपाधि दे रखी थी।
इसलिए उसने मसूद हुसैन मिर्जा तथा अन्य तैमूरी शहजादों को गाय की कच्ची खाल में बंद करके अकबर (AKBAR) के समक्ष प्रस्तुत करने का दुस्साहस किया था।
अकबर (AKBAR) को अपने खानदान के शहजादों को इस हालत में देखकर बहुत बुरा लगा किंतु अकबर (AKBAR) के दरबारियों को बड़ी प्रसन्नता हुई। अकबर (AKBAR) के दरबारी लेखक अबुल फजल ने लिखा है कि बागियों को इस हालत में देखकर अकबर (AKBAR) के दरबारियों में हर्ष की लहर दौड़ गई किंतु अकबर (AKBAR) को उन पर बड़ी दया आई तथा अकबर (AKBAR) ने उन्हें इस पोषाक से मुक्त करवाकर अलग-अलग मुगल अधिकारियों के संरक्षण में रख दिया ताकि उन्हें सुधरने का अवसर मिल सके।
अकबर (AKBAR) के अमीरों को जिम्मेदारी दी गई कि वे इन मिर्जाओं का चाल-चलन देखकर उसकी सूचना अकबर (AKBAR) को दें ताकि उनके सम्बन्ध में अंतिम निर्णय ले सके।
अभी अकबर (AKBAR) को गुजरात से आए हुए कुछ ही समय हुआ था कि सुल्तान ख्वाजा समाचार लेकर आया कि मुजफ्फर हुसैन मिर्जा ने खंभात में शाही सेना को परास्त कर दिया है और बागी मिर्जाओं एवं गुजरातियों ने अहमदाबाद घेर लिया है। तैमूरी शहजादे (TIMURID PRINCE) एक बार फिर से बगावत पर उतर आए थे।)
जब अकबर (AKBAR) को ये समाचार मिले तो अकबर (AKBAR) ने तुरंत गुजरात पहुंचने का निश्चय किया। राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि अकबर ने आगरा से पाटन तक एक सैनिक दौड़ का आयोजन किया।
इसमें 16 सेनापतियों ने भाग लिया जिनमें से 13 हिन्दू सेनापति थे। अकबर (AKBAR) स्वयं भी एक तेज सांडनी पर सवार होकर कुछ चुने हुए सैनिकों के साथ गुजरात के लिए रवाना हो गया। अबुल फजल ने अकबर की यात्रा का जो वर्णन किया है, उससे अकबर की बेचैनी का अनुमान लगाया जा सकता है।
✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।




