अकबर स्वयं को मजहबी संकीर्णता से ऊपर उठा हुआ मानता था और ऐसा प्रदर्शित भी करता था किंतु अकबर ने साबरमती के तट पर नरमुण्डों की मीनार (Tower of Skulls) चिनवाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह तैमूरी मानसिकता से ऊपर नहीं उठ सका है।
जैसे ही इख्तियार-उल-मुल्क (Ikhtiyar-ul-Mulk) का सिर काटा गया, खानेआजम (Khan-e-Azam) किले (Fort) से बाहर आया और उसने शहंशाह (Emperor Akbar) को सलाम किया। शहंशाह ने उसे छाती से लगा लिया, उसका बहुत ध्यान रखा और उसके अमीरों (Nobles) का हालचाल पूछा।
राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) ने लिखा है कि शाह मदद (Shah Madad) ने राजा भगवानदास (Raja Bhagwandas) के पुत्र भूपत (Kunwar Bhuvanpati) को सरनाल की लड़ाई (Battle of Sarnal) में मारा था। उसका बदला लेने के लिए अकबर ने अपने हाथों से शाह मदद का सिर उसके धड़ से अलग किया।
राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि 2 सितम्बर 1573 (2 September 1573) को अकबर ने गुजरात (Gujarat Rebellion) के भयंकर विद्रोह को दबा दिया। वहाँ तैमूरी रिवाज (Timurid Tradition) के अनुसार दो हजार सिरों की मीनार खड़ी की।
अकबर के कट्टर आलोचक मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Mulla Abdul Qadir Badauni) ने लिखा है कि लगभग एक हजार सिर जंग (Battle Casualties) में गिरे। शहंशाह ने उनकी मीनार बनाने के आदेश दिए ताकि बगावत करने वालों को भविष्य के लिए चेतावनी (Warning to Rebels) मिल सके। अकबर के आदेश पर अहमदाबाद (Ahmedabad City) नगर के बाहर साबरमती के तट पर एक हजार नरमुण्डों की मीनार खड़ी की गई।
अकबर वही सब कुछ कर रहा था जो उसके पुरखे (Ancestors) करते आए थे। चित्तौड़ (Chittorgarh Fort) के दुर्ग में उसने तीस हजार निरअपराध मनुष्यों का कत्लेआम (Massacre) करवाया तथा साबरमती के तट पर कटे हुए सिरों की मीनार (Skull Monument) बनवाई।
हालांकि उसने बंगाल (Bengal Campaign) में भी शत्रुओं के कटे हुए सिरों से मीनारे बनवाई थीं। इससे यह सिद्ध होता है कि अकबर को चित्तौड़ दुर्ग के हिन्दू सैनिकों (Hindu Soldiers) का रक्त बहाने में उतना ही आनंद आता था जितना के गुजरात के अफगानी अमीरों (Afghan Nobles) के टुकड़े करने में।
उसे दया आती थी तो केवल अपने कुल के शहजादों (Timurid Princes) पर जो चंगेजी (Chinggisid Lineage) थे, तैमूरी (Timurid Dynasty) थे अथवा समरकंद (Samarkand) और फरगना (Fergana Valley) से आए हुए मुगल (Mughals) और मिर्जा (Mirza Nobility) थे!
बाबर (Babur) के बेटों की दर्द भरी दास्तान (Tragic Tale) तथा लाल किले (Red Fort) की दर्द भरी दास्तान में हमने अकबर के पूर्वजों तैमूर लंग (Timur the Lame), बाबर तथा हुमायूँ (Humayun) द्वारा अपने शत्रुओं के सिर काटकर मीनारें बनवाए जाने की चर्चा विभिन्न प्रसंगों में की थी।
तैमूरी बादशाह (Timurid Rulers) जिन कटे हुए सिरों की मीनार (Skull Towers) बनवाया करते थे, वे सिर शत्रु पक्ष के सैनिकों (Enemy Soldiers) के होते थे।
हालांकि तत्कालीन इतिहासकारों (Contemporary Historians) ने लिखा है कि पानीपत के मैदान (Battle of Panipat) में बाबर (Babur) ने नरमुण्डों की मीनार (Tower of Skulls) में अफगान सैनिकों (Afghan Soldiers) के साथ-साथ उन मुगल सैनिकों (Mughal Soldiers) के कटे हुए सिरों को भी सम्मिलित करवाया था जो पानीपत के मैदान (Panipat Battlefield) में बाबर के शत्रुओं (Enemies of Babur) द्वारा दूर-दूर तक बिखेर दिए गए थे क्योंकि बाबर को शत्रु सैनिकों के कटे हुए सिरों की संख्या थोड़ी लग रही थी।
जब बाबर ने खानवा के मैदान (Battle of Khanwa) में महाराणा सांगा (Maharana Sanga) के सैनिकों के कटे हुए सिरों की मीनारें (Skull Monuments) बनवाई थीं, तब उसमें मुगल सैनिकों (Mughal Soldiers) के कटे हुए सिरों को सम्मिलित नहीं किया गया था।
अकबर (Emperor Akbar) ने साबरमती (Sabarmati River) के तट पर नरमुण्डों की जो मीनार (Tower of Skulls) बनवाई, उसमें अकबर के पक्ष के सैनिकों (Akbar’s Soldiers) के कटे हुए सिरों को भी सम्मिलित किया गया। क्योंकि इस युद्ध (Battle) में दोनों तरफ से हर प्रकार के सैनिक लड़ रहे थे, शत्रु-मित्र (Friend or Foe) के शवों की पहचान करना संभव नहीं था।
दोनों तरफ मुगल (Mughals) थे, दोनों तरफ अफगान (Afghans) थे, दोनों तरफ अबीसीनियन (Abyssinians) थे और दोनों ही तरफ राजपूत (Rajputs) थे। ऐसी स्थिति में युद्ध के मैदान (Battlefield) में जिसका भी शव पड़ा मिला, उसी का सिर काटकर मीनार बना दी गई।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Mulla Abdul Qadir Badauni) ने लिखा है कि अकबर ने शाह मिर्जा (Shah Mirza) के खात्मे के लिए कुतुबुद्दीन मुहम्मद (Qutbuddin Muhammad) और उसके बेटे नौरंग खाँ (Naurang Khan) को बहरोंच (Bharuch) तथा चाम्पानेर (Champaner) की तरफ भेजा। अकबर ने खान-ए-कलां (Khan-e-Kalan) को पाटन (Patan) में तथा वजीर खाँ (Wazir Khan) को दुलाका एवं डूंडका (Dulaka & Dundka) की सरकार में नियुक्त किया।
इसके बाद अकबर ने शाह कुली खाँ महरम (Shah Quli Khan Mahram), राजा भगवानदास (Raja Bhagwandas) एवं लश्कर खाँ बख्शी (Lashkar Khan Bakhshi) को ईडर (Idar) के रास्ते मेवाड़ (Mewar Region) की ओर भेजा ताकि वे महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के क्षेत्र पर कब्जा कर लें। इन दोनों ने ईडर होते हुए मेवाड़ के लिए प्रस्थान किया तथा बडनगर (Badnagar) पर कब्जा करके वहाँ मुगल थाना (Mughal Garrison) स्थापित करके आगरा (Agra) के लिए चल दिए।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी ने लिखा है कि पांच दिन तक ऐतिमाद खाँ (Aitimad Khan) के घर में रुकने के बाद अकबर अहमदाबाद (Ahmedabad City) से रवाना हुआ। उसने गुजरात के सुल्तान महमूद (Sultan Mahmud of Gujarat) की एक रिहाइश महमूदाबाद (Mahmudabad) में खेमा लगाया।
मिर्जा गियासुद्दीन अली काजवीनी (Mirza Ghiyasuddin Ali Qazvini) को आसफ खाँ (Asaf Khan) का खिताब दिया गया। उसे गुजरात का दीवान (Diwan of Gujarat) एवं बक्षी (Bakshi) बना दिया गया। यहाँ से अकबर अजमेर (Ajmer) पहुंचा।
जब वह अजमेर से आगरा (Agra) के लिए रवाना हुआ तो मार्ग में सांगानेर (Sanganer) नामक स्थान पर अकबर ने राजा टोडरमल (Raja Todarmal) को गुजरात के भू-राजस्व-कर (Land Revenue Settlement) की जांच के लिए नियुक्त करके वापस गुजरात भेज दिया।
राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) ने लिखा है कि गुजरात की यह विजय (Victory of Gujarat) स्थाई सिद्ध हुई। हालांकि इस विजय के बाद भी गुजरात में विद्रोह (Rebellions in Gujarat) होते रहे किंतु उन्हें सफलतापूर्वक दबाया जाता रहा और ई.1758 (Year 1758) तक अर्थात् पूरे 185 वर्ष तक गुजरात मुगलों (Mughals in Gujarat) के अधीन रहा। अंत में मराठों (Marathas) ने मुगलों से गुजरात छीन लिया।
राजा टोडरमल (Raja Todarmal) छः माह तक गुजरात में रहा। इस अवधि में उसने गुजरात की कृषि-भूमि (Agricultural Land) की पैमाइश करके भूराजस्व (Revenue Records) का हिसाब-किताब ठीक कर दिया तथा भू-राजस्व का प्रबंधन-तंत्र (Revenue Administration System) भी सुधार दिया। उस काल में इस कार्य को मालगुजारी बंदोबस्त (Malgujari Settlement) कहते थे।
ई.1574 (Year 1574) में अकबर ने गुजरात के हाकिम मुजफ्फर खाँ तुरबती (Muzzaffar Khan Turbati) को अपने दरबार (Royal Court) में बुलाया तथा उसे अपना वकील अर्थात् प्रधानमंत्री (Prime Minister) नियुक्त किया।
मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी (Mulla Badauni) बदायूं (Badaun) के सूबेदार हुसैन खाँ (Subedar Hussain Khan) की नौकरी करता था किंतु ई.1574 में वह बदायूं से आगरा (Agra) आया और पहली बार अकबर के दरबार (Akbar’s Court) में उपस्थित हुआ।
— डॉ. मोहनलाल गुप्ता (Dr. Mohanlal Gupta) की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से!



