डॉ. मोहनलाल गुप्ता भारतीय इतिहास-लेखन की उस परंपरा के प्रतिनिधि लेखक हैं, जो इतिहास को केवल तथ्यों का संग्रह भर नहीं मानती, बल्कि उसे समाज, संस्कृति और सत्ता–संरचनाओं के बीच बहने वाली जीवंत धारा के रूप में देखती है। उनकी पुस्तक “ब्रिटिश शासन में राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ” इसी दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह ग्रंथ राजपूताना (Rajputana) की उन ऐतिहासिक कड़ियों को जोड़ता है, जिनके बिना न तो राजस्थान के इतिहास का पूर्ण विश्लेषण संभव है और न ही ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की वास्तविक प्रकृति को समझा जा सकता है।
पुस्तक का मूल भाव राजपूताना की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जटिलताओं को ब्रिटिश सत्ता (British Rule) के विस्तार के संदर्भ में देखना है। डॉ. गुप्ता ने घटनाओं का चयन अत्यंत सूक्ष्मता से किया है—कहीं यह कूटनीतिक चालों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, कहीं किसी राजपूत शासक की साहसपूर्ण नीति का, तो कहीं औपनिवेशिक शासन द्वारा अपनाई गई मनोवैज्ञानिक रणनीतियों को उजागर करता है। लेखक ने इस इतिहास को ‘शासक बनाम शासित’ की सरल संरचना में नहीं बांधा, बल्कि उसमें उपस्थित अनेक स्तरों—राजदरबार, ठिकाने, सामंत, प्रजा, व्यापारियों और अंग्रेज़ एजेंटों—सभी को साथ लेकर एक बहुरंगी चित्र प्रस्तुत किया है।
पुस्तक की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और शोधपरक है, जो विद्वानों के साथ-साथ सामान्य पाठक को भी सहज रूप से आकर्षित करती है। डॉ. गुप्ता ने मूल अभिलेखों, प्रशासनिक दस्तावेज़ों, पारंपरिक स्रोतों और स्थानीय इतिहास-साहित्य का गहन अध्ययन कर तथ्यों को प्रमाणिकता प्रदान की है। यही कारण है कि वर्णित घटनाएँ केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं रह जातीं, बल्कि पाठक उन्हें प्रत्यक्ष देखने जैसा अनुभूति कर पाता है।
समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाए तो पुस्तक का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि यह ब्रिटिश शासन की कार्यशैली को राजपूताना की विशिष्ट सामाजिक संरचना के संदर्भ में समझने का अवसर प्रदान करती है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि ब्रिटिश सत्ता का प्रभाव केवल राजनीतिक नहीं था; उसने राजपूत राज्यों की आंतरिक सत्ता-व्यवस्था, सामंती संबंध, सैन्य संगठन, कर-प्रणालियों और प्रशासनिक पद्धतियों में भी गहरे परिवर्तन किए। कई अध्यायों में यह विश्लेषण विशेष रूप से रोचक बन जाता है कि किस प्रकार अंग्रेज़ अधिकारियों ने विभाजन, संरक्षण, सहयोग और दमन—इन सभी का संयोजन करते हुए राजपूताने पर नियंत्रण स्थापित किया। इसके साथ ही पुस्तक का एक और महत्वपूर्ण पक्ष राजपूत वीरता, स्वाभिमान और कूटनीतिक बुद्धिमत्ता का संतुलित चित्रण है। डॉ. गुप्ता ने राजपूत शासकों के निर्णयों, संघर्षों और परिस्थितियों का मूल्यांकन न तो अतिरंजित भावनात्मकता के साथ किया है और न ही ब्रिटिश नीतियों का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश की है। उनका दृष्टिकोण इतिहासकार का है—तटस्थ, विश्लेषणात्मक और तथ्यों पर आधारित।
पुस्तक की रोचकता इसी में है कि यह औपनिवेशिक काल की जटिलताओं को घटनाओं की श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत करती है। प्रत्येक घटना न केवल अतीत का चित्र है, बल्कि वह यह भी बताती है कि सत्ता किस प्रकार समाज को रूपांतरित करती है, और समाज किस प्रकार सत्ता के परिवर्तनों का उत्तर देता है।
समग्रतः, “ब्रिटिश शासन में राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ” एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है, जो राजपूताना के इतिहास-प्रेमियों, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह पुस्तक न केवल अतीत के पृष्ठों को खोलती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि इतिहास को समझने के लिए दृष्टि, संवेदनशीलता और तथ्य-परक निष्पक्षता कितनी आवश्यक है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक “ब्रिटिश शासन में राजपूताने की रोचक एवं ऐतिहासिक घटनाएँ” का समीक्षात्मक परिचय (लगभग 500 शब्द)
इस पुस्तक का पेपरबैक संस्करण भी अमेजन पर उपलब्ध है।




