भक्ति-आन्दोलन का भारतीयों के धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह प्रभाव इतना गहरा था कि जहाँ साधारण जनता मुस्लिम आक्रांताओं के विरुद्ध धर्म को अपनी ढाल बनाकर खड़ी हो गई, वहीं भारत के हिन्दू राजाओं ने भी शत्रुओं के हाथों से अपनी प्रजा की रक्षा करने के काम को ईश्वरीय आदेश की तरह शिरोधार्य किया-
(1.) हिन्दू जाति में साहस का संसार
हिन्दू जनता मुस्लिम शासन द्वारा किये जा रहे दमन के कारण नैराश्य की नदी में डूब रही थी। भगवद्गीता से प्रसूत ईश्-भक्ति का अवलम्बन प्राप्त हो जाने से उसमें मुसलमानों के अत्याचारों को सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो गई।
(2.) मुसलमानों के अत्याचारों में कमी
भक्ति-मार्गी सन्तों के उपदेशों का मुसलमानों पर भी प्रभाव पड़ा। इन सन्तों ने ईश्वर के एक होने का उपदेश दिया और बताया कि एक ईश्वर तक पहुँचने के लिये विभिन्न धर्म विभिन्न मार्ग की तरह हैं। इससे मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचारों में कमी हुई।
(3.) बाह्याडम्बरों में कमी
भक्तिमार्गी सन्तों ने धर्म में बाह्याडम्बरों की घोर निन्दा की और जीवन को सरल तथा आचरण को शुद्ध बनाने का उपदेश दिया।
(4.) मूर्ति-पूजा का खंडन
कबीर, नामदेव तथा नानक आदि संत निर्गुण-निराकार ईश्वर की पूजा में विश्वास रखते थे। उन्होंने मूर्ति-पूजा का खंडन किया।
(5.) उदार भावों का संचार
भक्ति-मार्गी सन्तों के उपदेशों के फलस्वरूप हिन्दुओं तथा मुसलमानों में उदारता का संचार हुआ और वे एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता प्रदर्शित करने लगे।
(6.) धर्मों की मौलिक एकता का प्रदर्शन
भक्तिमार्गी सन्तों तथा सूफी प्रचारकों ने एकेश्वरवाद, ईश्वर प्रेम एवं भक्ति पर जोर देकर दोनों धर्मो की मौलिक एकता प्रदर्शित की। इसका हिन्दू तथा मुसलमान, दोनों पर प्रभाव पड़ा और वे एक दूसरे को समझने का प्रयत्न करने लगे।
(7.) जातीय एवं व्यक्तिगत गौरव की उत्पति
भक्ति मार्गी सन्तों द्वारा विष्णु एवं उसके अवतारों के भक्त-वत्सल होने तथा अत्याचारी का दमन करने के लिये अवतार लेने का संदेश बड़ी मजबूती से जनमसामान्य तक पहुँचाया गया। इससे हिन्दुओं में जातीय एवं व्यक्तिगत गौरव उत्पन्न हुआ। वे निर्बल की रक्षा करना ईश्वरीय गुण मानने लगे और स्वयं को भी इस कार्य के लिये प्रस्तुत करने लगे। उन्होंने गौ, स्त्री तथा शरणागत की रक्षा को ईश कृपा प्राप्त करने का माध्यम माना।
(8.) प्रान्तीय भाषाओं का विकास
भक्ति मार्गी सन्तों ने अपने उपदेश जन-सामान्य तक पहुँचाने के लिये लोक भाषाओं को अपनाया। फलतः प्रान्तीय भाषाओं तथा हिन्दी भाषा की प्रगति को बड़ा बल मिला और विविध प्रकार के साहित्य की उन्नति हुई।
(9.) दलित समझी जाने वाली जातियों को नवजीवन
सन्तों के उपदेशों से भारत की दलित समझी जाने वाली जातियों में नवीन उत्साह तथा नवीन आशा जागृत हुई। भक्ति, प्रपत्ति और शरणागति के मार्ग का अवलम्बन करके हर वर्ग एवं हर जाति का मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता था। इस आन्दोलन ने भारतीय समाज में उच्च एवं निम्न जातियों के बीच बढ़ती हुई खाई को कम किया तथा हिन्दू समाज में नवीन आशा का संचार किया।
(10.) राष्ट्रीय भावना की जागृति
भक्ति आन्दोलन का राजनीतिक प्रभाव भी बहुत बड़ा पड़ा। इसी आन्दोलन के परिणामस्वरूप पंजाब तथा महाराष्ट्र में मुगल काल में राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ हुए। इस आन्दोलन को पंजाब में गुरु गोविन्दसिंह ने और महाराष्ट्र में शिवाजी ने चलाया था। यह प्रभाव ब्रिटिश शासन काल में भी चलता रहा।
भारत का मध्य-कालीन भक्ति आंदोलन
भक्ति आन्दोलन का पुनरुद्धार एवं उसके कारण