भक्त रैदास का जन्म काशी के एक चमार परिवार में हुआ। वे रामानन्द के बारह प्रमुख शिष्यों में से थे। वे विवाहित थे तथा जूते बनाकर अपनी जीविका चलाते थे। रैदास तीर्थयात्रा, जाति-भेद, उपवास आदि के विरोधी थे। हिन्दू तथा मुसलमानों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। वे निर्गुण भक्ति में विश्वास रखते थे। उनमें ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना स्पष्ट झलकती है।
श्री हरि चरणों का अनन्य आश्रय ही उनकी साधना का प्राण है। उनके प्रभाव के कारण निम्न जातियों के लोगों में भगवद्-भक्ति में आस्था उत्पन्न हुई। रैदास के शिष्यों ने ‘रैदासी सम्प्रदाय’ प्रारम्भ किया। मेवाड़ राजपरिवार की रानी मीरांबाई उन्हें अपना गुरु मानती थी।