Monday, December 29, 2025
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मिर्जाओं की बगावत : रात के अंधेरों में भी गुजरात की तरफ दौड़ता रहा अकबर! (107)

गुजरात (Gujarat) के मिर्जाओं की बगावत को कुचलने तथा खानेआजम (Khan-e-Azam) अजीज कोका (Aziz Koka) को संकट (से उबारने के उद्देश्य से अकबर (Akbar) रविवार की सुबह फतहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri) से रवाना हुआ और टोडा (Toda), हंसमहल (Hans Mahal) तथा मुईज्जाबाद (Muizzabad) में थोड़ी-थोड़ी देर विश्राम करता हुआ मंगलवार की सुबह नाश्ते के समय अजमेर (Ajmer) पहुंच गया।

अकबर (Akbar) ने ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) की दरगाह पर जाकर ख्वाजा से सहायता की याचना की तथा दरगाह के लोगों में बख्शीश बांटी। दिन भर वह दरगाह के पास बने अजमेर के किले (Ajmer Fort) में विश्राम करता रहा और शाम होने पर घोड़े पर बैठकर गुजरात (Gujarat) के लिए चल दिया। अगले दिन सुबह अकबर (Akbar) मेड़ता (Merta) पहुंच गया।

अबुल फजल (Abul Fazl) ने लिखा है कि इस समय तक शाह कुली खाँ महरम (Shah Quli Khan), सईद मुहम्मद खाँ बारहा (Sayyid Muhammad Khan Barha) और मुहम्मद कुली खाँ तोकबाई (Muhammad Quli Khan Tokbai) आदि अमीर (Mughal Nobles) मेड़ता (Merta) से भी आगे निकल चुके थे।

अकबर (Akbar) ने बहुत थोड़ी देर के लिए मेड़ता (Merta) में विश्राम किया और फिर घोड़े (Horse) पर बैठकर जैतारण (Jaitaran) की ओर चल दिया। कुछ देर जैतारण (Jaitaran) में ठहरने के बाद अकबर (Akbar) फिर से रवाना हो गया।

तब तक शाम (Evening) हो चुकी थी और अकबर (Akbar) घने जंगल से गुजर रहा था। अकबर (Akbar) ने इस स्थान पर शिकार खेलने का विचार किया। थोड़ी ही देर में अकबर (Akbar) को एक काला हिरण (Black Deer) दिखाई दिया। अकबर (Akbar) ने एक शीघ्रगामी चीता हिरण के पीछे छोड़ा तथा यह विचार किया कि यदि यह चीता इस हिरण को पकड़ लेगा तो अवश्य ही मिर्जाओं की बगावत का नेतृत्व करने वाला मुहम्मद हुसैन मिर्जा (Muhammad Husain Mirza) हमारे हाथ आ जाएगा।

कुछ देर की भागमभाग के बाद चीते ने हिरण को दबोच लिया। मध्यरात्रि तक अकबर (Akbar) सोजत (Sojat) पहुंच गया जो वर्तमान में जोधपुर (Jodhpur) के निकट पाली जिले (Pali District) में स्थित है। अकबर (Akbar) ने वहीं पर विश्राम करने का निश्चय किया।

बृहस्पतिवार के सूर्योदय तक अकबर (Akbar) ने सोजत (Sojat) में विश्राम किया। अकबर (Akbar) सिरोही (Sirohi) होते हुए गुजरात (Gujarat) जाना चाहता था किंतु उसके सेवक उसे जालौर (Jalore) होते हुए गुजरात (Gujarat) ले जाना चाहते थे क्योंकि उन्हें सिरोही (Sirohi) के रास्ते गुजरात (Gujarat) जाने में भय लगता था।

वे अकबर (Akbar) को भुलावे में डालकर जालोर (Jalore) की तरफ वाले मार्ग पर ले गए। जब अकबर (Akbar) जालोर (Jalore) पहुंचा तो बहुत नाराज हुआ।

शुक्रवार (Friday) की प्रातः (Morning) अकबर (Akbar) जालोर (Jalore) से आगे बढ़ा। कुछ दूर चलने पर उसे एक शेर (Lion) दिखाई दिया। अकबर (Akbar) के दरबारियों (Courtiers) ने उस शेर (Lion) का शिकार (Hunt) करने का विचार किया किंतु अकबर (Akbar) ने उन्हें शेर (Lion) का शिकार (Hunt) करने से रोक दिया और आगे बढ़ता रहा।

मार्ग में एक स्थान पर अकबर (Akbar) की अग्रिम सेना ने अकबर (Akbar) के लिए एक खेमा (Camp) लगा रखा था। जब आसपास के क्षेत्र (Region) में रहने वाले घोड़े के व्यापारियों को ज्ञात हुआ कि शहंशाह मिर्जाओं की बगावत दबाने के लिए अहमदाबाद जा रहा है और यहाँ से होकर निकलने वाला है तो वे बहुत से घोड़े लेकर खड़े हो गए ताकि उन्हें शंहशाह को अच्छे दामों पर बेचा जा सके।

अकबर (Akbar) ने उन लोगों के घोड़े खरीदकर अपने अमीरों एवं सेवकों में वितरित कर दिए। आधी रात के समय अकबर (Akbar) ने यहाँ विश्राम किया और फिर घोड़े पर बैठकर चल दिया। अगले दिन शनिवार की आधी रात तक वह लगातार चलता रहा।

रविवार के अंत तक भी उसने बहुत कम विश्राम किया और सोमवार की सायं, वह पाटन से बीस कोस दूर डीसा पहुंच गया। मिर्जाओं की बगावत ने अकबर को इतना उद्वेलित कर रखा था कि उसका दिन का चैन और रातों की नींद भी उड़ी हुई थी।

अकबर (Akbar) इतनी तेजी से क्यों चल रहा था और अपनी इस यात्रा का काफी हिस्सा रात में क्यों पूरा कर रहा था, इसका एक विशेष कारण था। अकबर (Akbar) किसी भी कीमत पर नहीं चाहता था कि उसके आने की सूचना शत्रु को पहले ही मिल जाए।

अकबर (Akbar) अपने शत्रुओं को अपने अचानक आगमन से चौंकाना चाहता था ताकि उन्हें संभलने का मौका दिए बिना ही दबोचा जा सके। अकबर (Akbar) यह भी नहीं चाहता था कि अकबर (Akbar) के आने की सूचना पाकर उसके शत्रु अहमदाबाद (Ahmedabad) पर आक्रमण करके अजीज कोका (Aziz Koka) को नुक्सान पहुंचाने का प्रयास करें।

संभवतः अपने धायभाई अजीज कोका (Aziz Koka) को लेकर अकबर (Akbar) के मन में कोई दबी हुई कुण्ठा भी काम कर रही थी। अपने एक धायभाई को तो अकबर (Akbar) ने स्वयं ही मरवा डाला था और अकबर (Akbar) नहीं चाहता था कि उसका दूसरा धायभाई अकबर (Akbar) की किसी ढिलाई की वजह से मारा जाए।

इसलिए अकबर (Akbar) रात-रात भर चलकर गुजरात (Gujarat) की तरफ दौड़ा जा रहा था। डीसा (Deesa) से एक संदेशवाहक पाटन (Patan) की ओर दौड़ाया गया ताकि वहाँ से एक सेना तुरंत अहमदाबाद (Ahmedabad) के लिए रवाना की जा सके।

अकबर (Akbar) स्वयं पाटन (Patan) को एक तरफ छोड़ता हुआ डीसा (Deesa) से सीधे ही अहमदाबाद (Ahmedabad) की ओर बढ़ गया। बालिसाना (Balisana) पहुंचकर अकबर (Akbar) रुक गया। पाटन (Patan) से अकबर (Akbar) की सेना भी आ पहुंची। यहाँ पर सेना को क्रमबद्ध किया गया।

बैराम खाँ (Bairam Khan) का पुत्र रहीम खाँ (Rahim Khan) पाटन (Patan) का सूबेदार था। वह भी पाटन (Patan) की सेना के साथ अकबर (Akbar) के समक्ष हाजिर हुआ। इस समय रहीम (Rahim) 16 साल का हो चुका था और सेना का नेतृत्व कर सकता था।

अकबर (Akbar) ने उसे अपनी सेना के मध्य भाग में नियुक्त किया। खान किला (Khan Qila) को दायें पक्ष का, वजीर खाँ (Wazir Khan) को बायें पक्ष का, मुहम्मद कुली खाँ (Muhammad Quli Khan) को हरावल (Front Guard) का नेतृत्व सौंपा गया। बादशाह ने स्वयं को अल्तमश (Altamash) में रखा। उसके साथ सौ चुने हुए खूंखार सैनिक थे जो पलक झपकते ही आदमी की जान ले लेते थे।

मुगल सेना (Mughal Army) में मध्य स्थान के अग्रगामी संरक्षक दल को इल्तमश या अल्तमश (Iltamash or Altamash) कहते थे। यह भाग हरावल (Front Guard) से कुछ दूरी बनाकर रखता था। जब हरावल (Front Guard) अपना काम कर चुकते थे तब अल्तमश (Altamash) आगे बढ़कर शत्रुओं का तेजी से सफाया करता था।

हमने अब तक अकबर (Akbar) के जिन अभियानों की चर्चा की है, वे सब किसी न किसी दुर्ग पर हुए थे। यह पहला अवसर था जब अकबर (Akbar) खुले मैदान में अपने शत्रु का सामना करने जा रहा था।

बालिसाना (Balisana) से कुछ संदेशवाहक अहमदाबाद (Ahmedabad) की तरफ दौड़ाए गए। उन्हें खानेआजम (Khan-e-Azam) तक यह संदेश पहुंचाना था कि शहंशाह मिर्जाओं की बगावत दबाने के उद्देश्य से, मिर्जाओं (Mirza Rebels) और गुजरातियों (Gujaratis) की सम्मिलित सेना पर हमला करने आ गया है, आप लोग भी नगर के दरवाजे खोलकर शहंशाह (Emperor) से आकर मिल जाएं।

बादशाह घोड़े पर सवार होकर बालिसाना (Balisana) से अहमदाबाद (Ahmedabad) के लिए रवाना हुआ। वह रात भर घोड़े पर चलता रहा और कुछ दिन चढ़े वह चैताना नामक गांव (Chaitana Village) पहुंचा। यहाँ पर शेर खाँ फुलादी (Sher Khan Fuladi) के स्थानीय सेनापति राबलिया (Rablio) ने अकबर (Akbar) का रास्ता (Path) रोका।

उसके सैनिकों (Soldiers) ने दुर्ग से बाहर निकलकर शाही सेना पर आक्रमण किया। अकबर (Akbar) की सेना ने बहुत कम समय में राबलिया (Rablio) के बहुत से सैनिकों को मार डाला। बचे हुए सैनिक भाग कर दुर्ग में चले गए।

इस पर अकबर (Akbar) ने आगे का मार्ग पकड़ा। दो कोस चलने के बाद बादशाह रुक गया। यहीं पर यूसुफ खाँ (Yusuf Khan) और कासिम खाँ (Qasim Khan) आदि अमीर (Mughal Nobles) अपनी सेनाएं लेकर आ गए।

उनके आने के बाद बादशाह फिर रवाना हुआ और अहमदाबाद (Ahmedabad) से तीन कोस पहले रुक गया। यहाँ से उसने आसफ खाँ (Asaf Khan) को अहमदाबाद (Ahmedabad) भिजवाया ताकि वह खानेआजम (Khan-e-Azam) को संदेश पहुंचा सके कि शाही सेना आ पहुंची है। वह भी नगर के द्वार खोलकर अपनी सेना को ले आए।

✍️- डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।

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