Monday, September 8, 2025
spot_img

राजपूतों का सैन्य प्रबन्धन

राजपूतों का सैन्य प्रबन्धन परमपरागत हिन्दू सैन्य प्रबन्धन पर आधारित था जिसके कारण वे मुगलों का सामना तो करते थे किंतु उन्हें पराजित नहीं कर पाते थे।

राजपूतों का सैन्य प्रबन्धन

सेना का गठन

मध्यकालीन राजपूत राज्यों में सेना का रख-रखाव सामान्तों द्वारा किया जाता था। राजा को जब सेना की आवश्यकता होती थी तब सामन्त निश्चित संख्या में सैनिकों के साथ राजा की सेवा में उपस्थित होते थे। राजा के पास अपने अंगरक्षकों के रूप में एक छोटी सैनिक टुकड़ी के अतिरिक्त प्रायः स्थाई सेना नहीं होती थी।

सेना का सर्वोच्च अधिकारी राजा ही होता था, परन्तु मुगलों के सम्पर्क में आने के बाद बख्शी की भी नियुक्ति की जाने लगी जो महाराज तथा सामन्तों की सेना का निरीक्षण एवं प्रबंधन करता था। वह सामन्तों की सेना तथा उनकी सेवाओं का विवरण राजा को देता था। बख्शी के पद पर उसी को नियुक्त किया जाता था जिसे घोड़ों की अच्छी जानकारी हो।

युद्ध सामग्री तथा सैनिक साज-सज्जा

राजपूत सैनिक परम्परागत रूप से तलवार, तीर-कमान तथा भालों का प्रयोग करते थे। वे कमर में म्यान बांधते थे जिसमें तलवार रखी जाती थी। पीठ पर तीरों के लिये तरकष एवं शरीर की रक्षा के लिये ढाल बांधते थे। सिर पर लोहे के शिरस्त्राण पहनते थे।

मुगलों से सम्पर्क होने के बाद राजपूत सैनिक भी तोप, बारूद के गोले तथा बन्दूकों का प्रयोग करने लगे थे। मुगलों से सम्पर्क होने के बाद राजपूत सैनिकों की पोशाकों में भी बड़ा परिवर्तन हुआ। वे भी मुगल सैनिकों की तरह बख्तरबंद पहनने लगे थे।

सेना के अंग

राजपूतों की सेना परम्परागत रूप से चतुरंगिणी होती थी अर्थात् इसमें रथ, हाथी, घुड़सवार और पैदल सेना रूपी चार अंग होते थे। मुगलों के सम्पर्क में आने के बाद रथों का प्रयोग समाप्त-प्रायः हो गया। हाथियों का प्रयोग अब भी आवश्यक रूप से होता था किंतु हाथियों की अपेक्षा घुड़सवारों को अधिक महत्त्व दिया जाता था।

पैदल और घुड़सवार, सेना के प्रमुख अंग थे। जिन प्यादों के पास बन्दूकें होती थीं, वे बन्दूकची कहलाते थे। बन्दूकचियों की संख्या में धीरे-धीरे काफी वृद्धि हो गई थी। तोपखाने का महत्त्व भी अपने चरम पर पहुँच गया था। किलों की रक्षा के लिए बड़ी बड़ी तोपें रखी जाती थीं। रणक्षेत्र में प्रयोग के लिये हल्की तोपें बनवाई जाती थीं।

गजनाल (जो हाथियों पर ले जाई जाती थी) और शतुरनाल (ऊँटों पर लादी जाती थी) जैसी छोटी तोपें होती थीं। इनसे बड़ी तोपों को बैलगाड़ियों में ले जाया जाता था। तोपखाने का अधिकारी दरोगा-ए-तोपखाना होता था। उसके अधीन छोटे पदाधिकारी होते थे। राजपूत तोपची अथवा गोलन्दाज बनना पसन्द नहीं करते थे, इसलिए मुल्तान, गोडवाना, बुहरानपुर आदि स्थानों से प्रशिक्षित गोलन्दाज बुलाकर सेना में रखे जाते थे।

सैनिक पदाधिकारी

राजपूत राज्यों में सेना के विभिन्न विभागों की व्यवस्था की देखरेख के लिए अलग-अलग पदाधिकारी नियुक्त किये जाते थे जिन्हें पैदलपति, गजपति, अश्वपति आदि कहते थे। मुगलों के प्रभाव से सैनिक अधिकारियों को दरोगा-ए-पोलखाना, दरोगा-ए-सिलहपोसेखाना (अस्त्र-शस्त्र), दरोगा-ए-शुतरखाना, शमशेरबाज, बन्दूकची, किलेदार आदि कहने लगे थे।

बीकानेर राज्य में दरोगा के स्थान पर फौजदार होता था। फौजदार की सहायता के लिए तथा हवलदार और दरोगा नियुक्त किये जाते थे। पश्चिमी राजस्थान में ऊँट सवारी के दस्तों का काफी महत्त्व था, क्योंकि रेगिस्तानी क्षेत्र में वे प्रभावशाली सिद्ध होते थे। ऊँटों की सेना का प्रबन्ध शुतरखाना विभाग करता था।

साहसी और रणकुशल सामन्तों व सैनिकों को प्रोत्साहन दिया जाता था। उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया जाता था। रणक्षेत्र में यदि कोई पदाधिकारी मारा जाता तो उसकी अन्त्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ की जाती थी। यदि राजकीय सेवा करते हुए किसी सामन्त की मृत्यु हो जाती तो उस सामन्त के उत्तराधिकारी को अतिरिक्त जागीर और कुछ विशेषाधिकार दिये जाते थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मुख्य आलेख – राजपूत राज्यों का प्रशासन, समाज एवं अर्थव्यवस्था

राजपूत राज्यों का प्रशासन

राजपूतों का राजस्व प्रशासन

राजपूतों की न्यायिक व्यवस्था

राजपूतों का सैन्य प्रबन्धन

राजपूत राज्यों की अर्थव्यवस्था

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source