जब तुर्की अमीरों ने मरहूम सुल्तान इल्तुतमिश की इच्छा को नकार दिया तथा शहजादी रजिया को सुल्तान बनाने से मना करके रुकनुद्दीन फीरोजशाह को सुल्तान बना दिया तो नए सुल्तान रुकनुद्दीन फिरोजशाह की माँ शाह तुर्कान का कहर मरहूम सुल्तान इल्तुतमिश की बेगमों एवं शहजादियों पर टूट पड़ा।
शाह तुर्कान का कहर
अब शाह तुर्कान इल्तुतमिश के हरम में पड़ी रहने वाली एक साधारण सी लौंडिया नहीं थी अपितु सुल्तान की माँ थी। शासन की बागडोर उसकी मुट्ठी में थी। शासन की बागडोर हाथ में आते ही शाह तुर्कान ने मदांध होकर इल्तुतमिश की अन्य उच्च-वंशीय विधवाओं तथा बेगमों के साथ बड़ा दुर्व्यवहार किया। उसने गिन-गिन कर उन अभिजात्य कुलों की शहजादियों से पिछले बैर चुकता किये।
शाह तुर्कान खुलेआम मरहूम सुल्तान इल्तुतमिश की शहजादियों एवं बेगमों को गालियां देती, उन्हें बात-बात पर नीचा दिखाती और खाल खिंचवा लेने की धमकी देती। कुछ ही दिनों में हरम का वातावरण इतना जहरीला हो गया कि उसमें दूसरी बेगमों के लिये रहना मुश्किल हो गया।
जिन बेगमों ने शाह तुर्कान का विरोध करने की हिम्मत की, उनकी ज्यादा दुर्दशा हुई। तुर्कान ने उन बेगमों की हत्या करवा दी। यहाँ तक कि एक दिन इल्तुतमिश के एक पुत्र कुतुबुद्दीन की आंखे फुड़वाकर उसे अंधा कर दिया तथा कुछ दिन बाद उसकी हत्या करवा दी। शाह तुर्कान का कहर दिल्ली सल्तनत की जड़ें हिला सकने के लिए पर्याप्त था। इससे चारों ओर आग लग जाने वाली थी।
सल्तनत के जिन वफादार अमीरों ने शाह तुर्कान के इस कुकृत्य के विरोध में बोलने का साहस किया, तुर्कान ने उनकी भी हत्या करवा दी। इस कारण सुल्तान के हरम तथा दरबार दोनों जगह सुल्तान रुकुनुद्दीन तथा उसकी मां बेगम तुर्कान के विरुद्ध असंतोष भड़क गया।
मंगोलों के हमले
इधर दिल्ली में सुल्तान के महल में यह मारकाट मची हुई थी और उधर भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर मंगोलों के आक्रमण आरम्भ हो गए। दिल्ली की सेनाओं ने इन आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया जिसके कारण मंगोलों को मारकर भगा दिया गया परन्तु सल्तनत में आन्तरिक अंशाति बढ़ती चली गई। इस असंतोष की चिन्गारी पहले तो दिल्ली की सड़कों पर और फिर दिल्ली से बाहर निकलकर सल्तनत के दूसरे सूबों में जा पहुंची।
सूबों में विद्रोह
सल्तनत का पूरा वातावरण क्लेशमय हो गया और चारों ओर विरोध की अग्नि भड़क उठी। अयोग्य रुकुनुद्दीन फीरोजशाह तथा घमण्डी शाह तुर्कान इस विरोध को शांत करने में असमर्थ रहे। रुकुनुद्दीन फीरोजशाह का छोटा भाई गियासुद्दीन जो अवध का सूबेदार था, खुले रूप में विद्रोह करने पर उतर आया। उसने बंगाल से दिल्ली जाने वाले राजकोष को छीन लिया तथा भारत के कई बड़े नगरों को लूट लिया। जब ये समाचार मुल्तान, हांसी, लाहौर तथा बदायूं पहुंचे तो वहाँ के प्रांतीय शासक परस्पर समझौता करके रुकुनुद्दीन को गद्दी से उतारने के लिये दिल्ली की ओर चल पड़े।
जब दिल्ली के अमीरों को प्रांतीय सूबेदारों द्वारा सेनाएं लेकर दिल्ली की तरफ कूच करने का समाचार मिला तो वे रजिया को सुल्तान बनाने की सोचने लगे। इस पर शाह तुर्कान ने शहजादी रजिया की हत्या कराने का प्रयत्न किया। रजिया चौकन्नी थी। वह जानती थी कि शाह तुर्कान तथा स्वयं सुल्तान रुकनुद्दीन की तरफ से ऐसा कुत्सित प्रयास किया जा सकता था। इसलिये तुर्कान का षड़यंत्र विफल हो गया और रजिया बच गई। शहजादी रजिया की हत्या का षड़यंत्र असफल रहने पर रुकुनुद्दीन तथा शाह तुर्कान की स्थिति अत्यन्त चिंताजनक हो गई।