सिन्दूर के पौधे का वानस्पतिक नाम बिक्सा ओरेलाना है। दुनिया भर के देशों में सिन्दूर का पौधा अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जिनमें सिंदूरी, सिंदूर, लिपिस्टिक ट्री, लटकन, अन्नाटा, एकियोटे आदि नाम प्रमुख हैं। इस पौधे पर लगने वाले गहरे लाल रंग के बीजों को जब कुचला जाता हे तब वे सूर्योदय के समय का सिंदूरी-नारंगी रंग छोड़ते हैं।
सिन्दूर का पौधा विश्वभर में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जिनमें भारत, श्रीलंका, अफ्रीका, अमेरिकी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों, मध्य और दक्षिण अमेरिका प्रमुख हैं। यह अच्छी जल निकासी वाली, हल्की क्षारीय मिट्टी और गर्म जलवायु में पनपता है।
दक्षिणी भारत की गर्म एवं नम जलवायु में सिंदूर का पौधा बड़ी आसानी से उगता है। वहाँ की मिट्टी एवं जलवायु दोनों ही इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। जब सिन्दूर का पौधा फलों से लद जाता है, उस समय बीज पकने के लिए शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है। पश्चिम बंगाल, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि प्रांतों में सिंदूर का पौधा जंगली रूप में मिलता है। इन प्रांतों में भी इसकी खेती की जाती है।
यद्यपि सिंदूर की खेती पारंपरिक उद्यानिकी की श्रेणी में नहीं आती तथापि कीमत अच्छी मिलने के कारण किसान अपनी खाली पड़ी भूमि में बिक्सा ओरिलाना की खेती करते हैं। भारत के कुछ हिस्सों में एनाट्टो या सिंदूरी के व्यावसायिक बागान उगाए जा रहे हैं। इसके पौधे को बीज या तने की कलम द्वारा लगाया जा सकता है।
इसका पौधा झाड़ीदार होता है जो 8-10 फीट ऊंचा होता है। इसके फल बल्बनुमा गुच्छों में उगते हैं। सिंदूर पौधे से पहली फसल रोपण के दो साल बाद प्राप्त होती है, और पौधे अच्छे प्रबंधन के साथ 15-20 साल तक उपज देते हैं। बिक्सा के फलों के अंदर मौजूद छोटे-छोटे बीजों को पीसकर बिना किसी केमिकल के शुद्ध सिंदूर तैयार किया जाता है। यह हर्बल सिंदूर त्वचा पर किसी प्रकार का हानिकारक प्रभाव नहीं डालता।
सिंदूर के बीजों से मिलने वाले रंग का उपयोग प्राकृतिक खाद्य रंग एजेंट तथा सौंदर्य प्रसाथनों के रूप में किया जाता है। सिंदूर के पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग बुखार, दस्त और त्वचा संबंधी रोगों की पारंपरिक चिकित्सा में भी किया जाता रहा है। हिन्दू महिलाएं सिंदूर के बीजों से बने बारीक पाउडर को मांग भरने एवं बिन्दिया लगाने में करती हैं। इस प्रकार सिंदूर का पौधा सैंकड़ों सालों से भारतीय नारी के माथे एवं सिर की सजावट बना हुआ है।
हिन्दू धर्मावलम्बी सिंदूर पाउडर को चमेली के तेल में घोलकर उसका लेप बनाते हैं तथा हनुमानजी एवं भैंरूजी के शरीर पर लेपन करते हैं। माना जाता है कि इससे ये देवता प्रसन्न होते हैं। सिंदूरी रंग को सौभाग्य एवं बल प्रदान करने वाला रंग माना जाता है।