Monday, August 18, 2025
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मध्यकालीन हिन्दू त्यौहार

मध्यकालीन हिन्दू त्यौहार और वर्तमान में मनाए जाने वाले हिन्दू त्यौहारों में विशेष अंतर नहीं है किंतु मध्यकालीन हिन्दू समाज में त्यौहारों की संख्या अधिक थी। आज का हिन्दू समाज बहुत से त्यौहारों को मनाना भूल चुका है।

मध्य-कालीन समाज में त्यौहार, उत्सव और मेले

हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग त्यौहार मनाते थे। ये त्यौहार पूरे देश में एक समय पर मनाये जाते थे किन्तु इन्हें मनाने के ढंग में स्थानीय भिन्नताएं रहती थीं। दीपावली पर दीयों की सजावट, अतिशबाजी तथा सोने-चांदी और जवाहरात के प्रदर्शन होते थे।

अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ होली, दीपावली एवं राखी आदि कुछ हिन्दू त्यौहारों को मनाते थे किन्तु औरंगजेब ने अपने दरबार में कई हिन्दू तथा फारसी त्यौहारों का मनाया जाना बन्द कर दिया। हिन्दुओं के त्यौहार पूरे वर्ष में फैले हुए थे तथा लगभग प्रत्येक माह में आते थे, इन्हें विक्रम कलैण्डर की तिथियों के अनुसार मनाया जाता था।

मध्यकालीन हिन्दू त्यौहार

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से वर्ष का पहला महीना आरम्भ होता था। इसके शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक चैत्रीय नवरात्रियों का आयोजन किया जाता था। चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा, चैत्रीचन्द्र (चेटीचण्ड) मनाया जाता था। इस प्रकार चैत्र शुक्ला प्रतिपदा वर्ष में आने वाला प्रथम मध्यकालीन हिन्दू त्यौहार था। यह परम्परा आज तक चल रही है। माना जाता है कि आज के दिन ही ईश्वर ने सृष्टि की रचना की थी।

शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवान राम का जन्मदिन अर्थात् रामनवमी का त्यौहार मनाया जाता था। चैत्र-पूर्णिमा को हनुमान जयंती अर्थात् हनुमानजी का जन्म दिवस मनाया जाता था।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वट सावित्री का पर्व होता था जिसमें पत्नी अपने पति की दीर्घ आयु की कामना के साथ व्रत करती थी। वट सावित्री का पर्व प्रमुख मध्यकालीन हिन्दू त्यौहार था। इसका महाराष्ट्र में अधिक महत्व था। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु-पूर्णिमा के रूप में मनाते थे। इस दिन भगवान वेदव्यास का जन्मदिन होता है। इस दिन लोग अपने गुरु की पूजा करके उन्हें दक्षिणा आदि देते थे।

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श्रावण माह की पूर्णिमा को रक्षा-बन्धन मनाया जाता था इस दिन बहिनें अपने भाइयों के घर जाकर उनकी कलाई पर राखी बांधती थीं और उनकी रक्षा की कामना करती थीं। भाद्रपद माह की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी मनाया जाता था। दिन में निराहार अथवा फलाहार के साथ उपवास करते थे एवं अर्द्ध-रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर गुड़-धनिये का प्रसाद बांटते थे। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाते थे। आश्विन (कार्तिक) माह के शुक्ल पक्ष के पहले नौ दिन में शारदीय नवरात्रि का आयोजन किया जाता था। दसवें दिन दशहरा अर्थात् विजयादशमी का आयोजन होता था। इस दिन को भगवान राम द्वारा रावण के वध के दिवस के रूप में मनाया जाता था। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस, चतुर्दशी को रूप चौदस एवं अमावस्या को दीपावली मनाई जाती थी। इस दिन को भगवान राम के अयोध्या में लौटने का दिन माना जाता था और उनके स्वागत में प्रत्येक, गांव, नगर मौहल्ले, गलियों एवं घरों में दिए जलाए जाते थे। रात्रि में माँ लक्ष्मी की पूजा होती थी एवं कुछ लोग द्यूतक्रीड़ा करना अच्छा समझते थे। दीपावली के अगले दिन यम द्वितीया होती थी जिसे भाई दूज के रूप में मनाया जाता था। इस दिन भाई अपनी बहिन के घर जाकर उससे टीका करवाता था।

इसी दिन गोवर्द्धन का आयोजन किया जाता था। गोवर्द्धन पूजा में अकबर भी भाग लेता था। बहुत सी गायों को नहला-धुलाकर एवं आभूषणों से सजाकर बादशाह के सामने लाया जाता था। बादशाह उनकी पूजा करता था। जहाँगीर ने भी इस त्यौहार का उल्लेख किया है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी दिए जलाए जाते थे। इस दिन त्रिपुरी पूर्णिमा का आयोजन किया जाता था।

माघ माह में जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता था तब पूरे देश में मकर संक्रान्ति मनाई जाती थी। इस दिन नदियों में स्नान करके निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान दिया जाता था एवं अपने से बड़ों को भेंट दी जाती थी। इस दिन तमिनाडु में पोंगल का आयोजन किया जाता था।

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसन्त पंचमी के रूप में सरस्वतीजी का जन्म-दिवस मनाया जाता था। इस दिन पीले कपड़े पहनते थे एवं पीले व्यंजन बनाए जाते थे। माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि का आयोजन होता था। इस दिन पूरे दिन एवं पूरी रात निराहार रहकर भगवान शिव की पूजा की जाती थी।

फाल्गुन माह वर्ष का अंतिम माह होता था। इसमें सबसे बड़ा त्यौहार होली मनाया जाता था। फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता था। इस दिन हिरणाकश्यप की बहिन होलिका का दहन किया जाता था तथा प्रहलाद की रक्षा की जाती थी। होली की अग्नि में नया धान सेककर खाया जाता था। अगले दिन रंग खेला जाता था जिसे धुलण्डी कहते थे।

इनके अतिरिक्त करवा चौथ, सकट चौथ, शीतला सप्तमी, बड़ अमावस, हरियाली अमावस आदि अनेक छोटे-छोटे त्यौहार मनाए जाते थे। प्रत्येक एकादशी को निराहार रहकर व्रत किया जाता था तथा अगले दिन प्रदोष का व्रत किया जाता था।

कुछ प्रांतों में कुछ विशिष्ट त्यौहार भी मनाए जाते थे। केरल में ओणम, ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, विषु, बिहार में छठ पूजा, पंजाब में लोहड़ी एवं वैशाखी, बंगाल में काली पूजा इसी प्रकार के विशिष्ट त्यौहार थे।

हिन्दुओं के ये समस्त त्यौहार अत्यंत प्राचीन काल से मनाए जाते रहे थे एवं वर्तमान समय में भी ये त्यौहार सामाजिक जन-जीवन में विशिष्ट स्थान रखते हैं। वर्ष भर में आने वाले सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण भी दान-पुण्य एवं स्नान के कारण पर्व की तरह दिखाई देते थे। अबुल फजल ने राम-नवमी और कृष्ण-जन्माष्टमी का उल्लेख महत्त्वपूर्ण हिन्दू त्यौहारों के रूप में किया है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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