Saturday, July 27, 2024
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167. अकबर का बेटा मुराद बड़ा नामुराद निकला!

जब अकबर ने दक्षिण भारत में अहमदनगर, खानदेश, बीजापुर, बरार और गोलकुण्डा राज्यों में अपने पैर पसारने का निश्चय किया तो उसने इन राज्यों को संदेश भिजवाया कि वे अकबर की अधीनता स्वीकार करें तथा नियमित रूप से कर भिजवाया करें।

खानदेश के शाह राजा अली खाँ ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली किंतु शेष चार राज्यों ने अकबर को कर देने से मना कर दिया। इस पर अकबर ने अहमदनगर राज्य पर हमला करने का निश्चय किया क्योंकि वहाँ का शाह मर गया था और उसकी बहिन चांद बीबी अपने डेढ़ वर्षीय भतीजे बहादुर निजाम शाह को गद्दी पर बैठाकर अहमदनगर का शासन चला रही थी।

ई.1593 में अकबर ने शहजादा दानियाल को अहमदनगर पर विजय प्राप्त करने तथा उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित करने के लिये भेजा। शहजादे की सेवा में बैराम खाँ के पुत्र अब्दुर्रहीम खानखाना को नियुक्त किया गया।

बादशाह ने दानियाल से पहले शहजादा मुराद को भी इसी काम के लिये भेज रखा था। मुगलिया खून की तासीर को देखते हुए कोई अनाड़ी भी यह भविष्यवाणी कर सकता था कि ये दोनों शहजादे दक्षिण में पहुँच कर शत्रु से लड़ने की बजाय आपस में लड़ेंगे। बादशाह को भी अपनी भूल का शीघ्र ही अनुमान हो गया।

उसने दानियाल को वापस बुला लिया और शहजादा मुराद इसी काम पर बना रहा। मुराद एक नम्बर का धोखेबाज, घमण्डी, स्वार्थी तथा अविश्वसनीय शाहजादा था। उसका नाम भले ही मुराद था किंतु वास्तव में वह नामुराद था। वह किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करता था।

दूसरी ओर खानखाना स्वतंत्र प्रवृत्ति का और अपने निर्णय स्वयं लेने वाला सेनापति था। इस प्रकार दो विपरीत प्रवृत्तियों के स्वामी एक साथ रख दिये गये। यदि मुराद बेर की झाड़ी था तो खानखाना केले का वृक्ष। ये दोनों एक बाग में एक साथ खड़े नहीं रह सकते थे। बेर की झाड़ी केले के पत्तों को शीघ्र ही चीर देने वाली थी।

शहजादा दानियाल खानखाना अब्दुर्रहीम का जवांई था तथा उसके स्वभाव में कुछ सहजता भी थी, खानखाना को उसके साथ काम करने में कोई कठिनाई नहीं थी होती थी किंतु मुराद निहायत बदतमीज किस्म का शहजादा था। वह किसी का भी लिहाज नहीं करता था।

जब खानखाना मार्ग में था, तब उसे इस परिवर्तन की जानकारी मिली। इसलिये खानखाना बादशाह से कुछ न कह सका और अपनी सेना लेकर भिलसा होता हुआ उज्जैन पहुँचा। उधर मुराद गुजरात में खानखाना का रास्ता देख रहा था। जब उसने सुना कि खानखाना मालवा चला गया है तो वह बहुत आग-बबूला हुआ। उसने खानखाना को चिट्ठी भिजवाई और ऐसा करने का कारण पूछा।

खानखाना ने जवाब भिजवाया कि खानदेश का सुल्तान राजा अली खाँ भी बादशाही फौज के साथ हो जायेगा। मैं उसको लेकर आता हूँ। तब तक आप गुजरात में शिकार खेलें। शहजादा मुराद इस जवाब को सुनकर और भी भड़का और अकेला ही गुजरात से दक्षिण को चल दिया।

 खानखाना यह समाचार पाकर अपना तोपखाना, फीलखाना और लाव-लश्कर उज्जैन में ही छोड़कर शहजादे के पीछे भागा।  अहमदनगर से तीस कोस उत्तर में चाँदोर के पास खानखाना शहजादे की सेवा में प्रस्तुत हुआ किंतु शहजादे ने खानखाना से भेंट करने से मना कर दिया।

खानखाना दो दिन तक मुराद के आदमियों से माथा खपाता रहा। अंत में मुराद ने खानखाना को अपने पास बुलाया और बड़ी बेरुखी से पेश आया। सलाम भी ढंग से नहीं लिया।

खानखाना ने प्रकट रूप में तो कुछ नहीं कहा किंतु उसने भी मन ही मन इस मगरूर शहजादे को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। मुराद ने खानखाना की तरह अन्य अमीरों को भी नाराज कर लिया। वे भी मुराद को नीचा दिखाने का निश्चय करके चुपचाप बैठे रहे।

अकबर के विश्वस्त सेनापति शहबाज खाँ कंबो, सादिक खाँ और अन्य कई अमीर जो अकबर के एक संकेत पर अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहते थे, अकबर के इस बदतमीज शहजादे को तमीज का पाठ पढ़ाने में जुट गए।

जब शहजादे मुराद और अब्दुर्रहीम खानखाना की सम्मिलित सेनाओं ने अहमदनगर से आधा कोस पहले पड़ाव डाला तो अहमदनगर के बहुत से स्थानीय जमींदार, व्यापारी और सेनापति शहजादे मुराद और खानखाना से रक्षापत्र लेने के लिये आये।

शहजादे और खानखाना ने अहमदनगर के प्रमुख लोगों को अभयपत्र दे दिए और उनसे कहा कि यदि चाँद बीबी लड़ने के लिये नहीं आयेगी तो नगर पर हमला नहीं किया जायेगा। यदि नगर पर हमला किया गया तो तुम लोगों के घर सुरक्षित रहेंगे। खानखाना ने मुगल सिपाहियों को आदेश दिया कि वे जीत प्राप्त होने पर भी शहर में लूट न करें।

इधर तो शहजादा मुराद और खानखाना अदमदनगर को अभय प्रदान कर रहे थे और उधर शहबाज खाँ कंबो शहजादे से अनुमति लिये बिना, चुपके से अहमदनगर के भीतर प्रविष्ट हो गया। उसके अनुशासनहीन और लालची सिपाहियों ने शहर में लूटपाट आरंभ कर दी।

जब अब्दुर्रहीम खानखाना को यह समाचार ज्ञात हुआ तो वह किसी तरह शहर में प्रविष्टि हुआ और अपार परिश्रम करके मुगलिया सिपाहियों को लूटपाट करने से रोक कर बाहर लाया किंतु तब तक शहर में काफी नुक्सान हो चुका था। इससे शहरवालों का विश्वास मुगल सेनापतियों पर से हट गया और चाँद बीबी ने अहमदनगर के दरवाजे बंद करके मुगलों का सामना करने का निश्चय किया।

दूसरे दिन शहजादे मुराद की सेनाओं ने अहमद नगर को घेर लिया। चाँद बीबी की ओर से शाह अली तथा अभंगर खाँ मोर्चे पर आये किंतु लड़ाई में हार कर पीछे हट गये। मुगलों की फूट अब खुलकर सामने आ गयी। जब चाँद बीबी के सिपाही हार कर भाग रहे थे तो मुगल सेनापति एक दूसरे से यह कह कर लड़ने लगे कि तू उनके पीछे जा – तू उनके पीछे जा, किंतु कोई नहीं गया और चाँद बीबी के आदमी फिर से किले में सुरक्षित पहुँच गये।

अगले दिन मुगल सेनापतियों ने विचार किया कि यहाँ मुगलों की तीन बड़ी फौजें हैं- पहली शहजादे मुराद की, दूसरी शहबाज खाँ कंबो की और तीसरी खानखाना अब्दुर्रहीम की। इन तीनों में से एक अहमदनगर के किले पर घेरा डाले, दूसरी किले पर हमला करे तथा तीसरी सेना रास्तों को रोके किंतु यह योजना कार्यरूप नहीं ले सकी।

मुराद युद्ध की योजना इस तरह से बनाता था कि विजय का श्रेय किसी भी तरह से खानखाना अथवा शहबाज खाँ कंबो न ले सकें। इन योजनाओं को सुनकर खानखाना तो चुप हो जाता था और शहबाज खाँ उन योजनाओं का विरोध करने लगता था। इस कारण एक भी योजना कार्यरूप नहीं ले सकी।

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