रजिया ने बूढ़े मुसलमानों की परवाह नहीं की तथा वह मस्जिद से निकलने वाले नौजवानों के सामने अपनी बात बार-बार दोहराने लगी। मुस्लिम नौजवानों पर रजिया का जादू चल गया। उन्होंने रजिया की गुहार स्वीकार कर ली। कुछ गुण्डों ने शाह तुर्कान का सिर काट दिया!
इल्तुतमिश ने अपने पुत्रों को निकम्मा जानकर अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया किंतु तुर्की अमीरों ने रजिया को औरत जानकर उसे सुल्तान के रूप में स्वीकार नहीं किया तथा इल्तुतमिश के सबसे बड़े जीवित पुत्र रुकनुद्दीन को सुल्तान बना दिया। रुकनुद्दीन दिन-रात शराब के नशे में धुत्त रहता था, इस कारण शासन की बागडोर रुकनुद्दीन की माता शाह तुर्कान के हाथों में आ गई।
कुछ इतिहासकारों ने शाह तुर्कान को इल्तुतमिश की बेगम न मानकर उसकी रखैल माना है। आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि तुर्कान शाही महल में दासी थी किंतु उसने राज्य की नीति पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था। चूंकि वह उच्च तुर्की कुल से सम्बन्ध नहीं रखती थी इसलिए इल्तुतमिश की उच्च तुर्की कुल की बेगमों ने इल्तुतमिश के जीवन काल में शाह तुर्कान के साथ बड़ा खराब व्यवहार किया था।
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अब चूंकि शासन की बागडोर स्वयं तुर्कान के हाथों में आ गई थी इसलिए उसे, कुलीन कहलाई जाने वाली बेगमों से बदला लेने का अवसर मिल गया। शाह तुर्कान तुर्की बेगमों को गंदी-गंदी गालियां देती तथा यदि कोई बेगम विरोध करती तो उन्हें कोड़ों से पिटवाने में भी देर नहीं लगाती। ईरान, तूरान, मकरान, अफगानिस्तान, बल्ख, बुखारा, तथा समरकंद आदि देशों से लाई गए ये बेगमें अपमानित होकर अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाती रहती थीं किंतु उन्हें इस संकट से छुटकारे का कोई उपाय नहीं सूझता था।
जब कुछ बेगमों ने शाह तुर्कान का अधिक विरोध किया तो शाह तुर्कान ने उनमें से कुछ बेगमों की हत्या करवा दी। इस पर तुर्की अमीरों ने इल्तुतमिश के एक अवयस्क पुत्र कुतुबुद्दीन को सुल्तान बनाने का प्रयास किया। जब शाह तुर्कान को अमीरों के इन इरादों की भनक लगी तो उसने इल्तुतमिश के अवयस्क पुत्र कुतुबुद्दीन की आँखें फुड़कवार उसे जेल में बंद कर दिया तथा कुछ दिन बाद शहजादे की हत्या करवा दी।
शाह तुर्कान ने उन अमीरों की भी हत्या करवा दी जो रुकनुद्दीन को हटाकर कुतुबुद्दीन को सुल्तान बनाने का प्रयास कर रहे थे। इस कारण हरम से लेकर दरबार तक सुल्तान रुकुनुद्दीन तथा शाह तुर्कान के विरुद्ध असंतोष भड़क गया।
उन्हीं दिनों पश्चिमोत्तर सीमा पर मंगोलों के आक्रमण आरम्भ हो गए। गजनी, किरमान तथा बामियान के शासक सैफुद्दीन हसन कार्लूग ने सिंध तथा उच पर आक्रमण किया। सीमाओं पर नियुक्त दिल्ली की सेनाओं ने इन आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया परन्तु सल्तनत में आन्तरिक अंशाति बढ़ती चली गई। चारों ओर विरोध की अग्नि भड़क उठी। सुल्तान रुकुनुद्दीन फीरोजशाह तथा उसकी माँ शाह तुर्कान इस विरोध को शांत करने में असमर्थ रहे।
रुकुनुद्दीन का सौतेला भाई गियासुद्दीन जो अवध का सूबेदार था, खुले रूप में विद्रोह करने पर उतर आया। उसने बंगाल से दिल्ली आने वाले राजकोष को मार्ग में ही छीन लिया तथा भारत के कई बड़े नगरों को लूट लिया। मुल्तान, हांसी, लाहौर तथा बदायूं के गवर्नर परस्पर समझौता करके रुकुनुद्दीन को गद्दी से उतारने के लिये दिल्ली की ओर चल पड़े। जब दिल्ली के अमीरों को पता लगा कि मुल्तान, हांसी, लाहौर तथा बदायूं के अमीर मिलकर गियासुद्दीन को नया सुल्तान बनाना चाहते हैं तो दिल्ली के अमीर घबरा गए। वे किसी भी कीमत पर अपनी ही पसंद के शहजादे को सुल्तान बनाए रखना चाहते थे ताकि दिल्ली के अमीरों की रोजी-रोटी चलती रहे तथा उनकी हवेलियों एवं सम्पत्ति को कोई नुक्सान नहीं पहुंचे। इन अमीरों ने इल्तुतमिश के एक अन्य छोटे शहजादे बहराम को सुल्तान बनाने के प्रयास आरम्भ किए किंतु बहराम इतना छोटा था कि इस स्थिति को संभाल नहीं सकता था। इसलिए दिल्ली के अमीर रजिया को सुल्तान बनाने की चर्चा करने लगे जिनमें चालीसा मण्डल के अमीर अग्रणी थे। इस पर शाह तुर्कान ने शहजादी रजिया की हत्या कराने का प्रयत्न किया किंतु रजिया सतर्क थी।
रजिया शाह तुर्कान की प्रत्येक गतिविधि पर तब से दृष्टि रख रही थी जब से उसने शहजादे कुतुबुद्दीन की हत्या करवाई थी। इसलिए रजिया बच गई तथा शाह तुर्कान का षड़यंत्र असफल हो गया।
शहजादी रजिया की हत्या का षड़यंत्र असफल रहने पर दिल्ली में शाही हरम से लेकर दरबार तक में परिस्थितियां गंभीर हो गईं। रजिया ने चालीसा के अमीरों से सम्पर्क किया तथा उनसे सहायता मांगी। रजिया इल्तुतमिश की बेटी ही नहीं थी अपितु उसकी रगों में कुतुबुद्दीन ऐबक का भी रक्त बह रहा था। इसलिए चालीसा मण्डल के कुछ अमीरों को रजिया से सहानुभूति थी तथा उन्हें शाह तुर्कान का यह कदम बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। फिर भी चालीसा के अमीर एक औरत को सुल्तान बनाने के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं ले सके।
जब सुल्तान रुकनुद्दीन फीरोजशाह मुल्तान, लाहौर, हांसी तथा बदायूं के गवर्नरों के विरुद्ध लड़ने दिल्ली से बाहर गया, तब रजिया ने उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाने का निश्चय किया। एक शुक्रवार को जब दिल्ली के मुसलमान, मध्याह्न की नमाज के लिए एकत्रित हो रहे थे, तब रजिया अचानक ही लाल कपड़े पहनकर मस्जिद के सामने आ खड़ी हुई और शाह तुर्कान के विरुद्ध अभियोग लगाते हुए अपने लिये न्याय की गुहार लगाने लगी।
रजिया ने मस्जिद में नमाज पढ़कर निकल रहे लड़कों को सम्बोधित किया तथा अपने पिता शाह इल्तुतमिश की अंतिम इच्छा से लेकर, चालीसा अमीरों के कारनामे तथा शाह तुर्कान के घिनौने षड़यंत्र की कहानी अत्यंत जोशीले शब्दों में कह सुनाई। उसने दिल्ली की जनता से कहा कि मरहूम सुल्तान इल्तुतमिश ने रजिया को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था किंतु शाह तुर्कान ने सत्ता हड़प ली है इसलिए अब जनता ही इस बात कर निर्णय करे कि सल्तनत का वास्तविक हकदार कौन है!
सर्दियों में दोपहर की सुहाती हुई धूप में लाल कपड़ों में सजी-धजी गोरी-चिट्टी रजिया का रूप, देखने वालों की आँखों को चौंधा रहा था। वह घोड़े पर सवार होकर और हाथ में तलवार लेकर आई थी। उसने सिर पर वही मुकुट पहना हुआ था जिसे वह शहजादी की हैसियत से अपने नाना कुतुबुद्दीन के समय से पहनती थी। रजिया ने अपने मुंह पर कोई कपड़ा भी नहीं लपेट रखा था। वह अपने चेहरे के जादू का असर अच्छी तरह जानती थी। इस समय यही एक जादू था जो रजिया की सहायता कर सकता था।
कुछ बूढ़े मुसलमानों ने रजिया को फटकारा कि उसका यह तरीका ठीक नहीं है। औरतों को अपने घर के मसले घर से बाहर नहीं लाने चाहिए। हरम की औरतों के लिए यह अच्छा नहीं है कि वे इस तरह खुलेआम सुल्तान के खिलाफ जनता को भड़काएं।
रजिया ने उन बूढ़े मुसलमानों की परवाह नहीं की तथा वह मस्जिद से निकलने वाले नौजवानों के सामने अपनी बात बार-बार दोहराने लगी। मुस्लिम नौजवानों पर रजिया का जादू चल गया। उन्होंने रजिया की गुहार स्वीकार कर ली। देखते ही देखते मुस्लिम लड़कों की भीड़ सुल्तान के महल के सामने एकत्रित होने लगी। वे शाह तुर्कान को महल से बाहर आकर रियाया की गुहार सुनने की पुकार लगा रहे थे और रजिया के लिए न्याय मांग रहे थे।
थोड़ी ही देर में यह सूचना दिल्ली की अन्य मस्जिदों में भी पहुंच गई तथा मनचले लड़कों की भीड़ दिल्ली की संकरी गलियों से निकलकर शाही महल की तरफ दौड़ पड़ी। जब महल के सामने काफी भीड़ एकत्रित हो गई तो मनचले लड़कों ने बलवा शुरु कर दिया।
जब उनकी संख्या कई हजार हो गई तो उनके मन से सुल्तान के सिपाहियों का भय जाता रहा और वे सिपाहियों को धकेल कर महल में घुस गये। सुल्तान के सिपाही भी सुल्तान के प्रति ज्यादा वफादार नहीं थे। वे भी विद्रोहियों के साथ हो गए तथा रजिया को न्याय दिलवाने के लिए शाह तुर्कान को बंदी बनाकर महल से बाहर ले आए और कुछ गुण्डों ने शाह तुर्कान का सिर काट दिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता