भारत में हुमायूँ द्वारा निर्मित भवन बहुत कम हैं। हुमायूँ ने ई.1530 से 1540 तक भारत पर शासन किया। लगभग छः माह के लिए उसने ई.1555 में भी शासन किया।
बाबर के पुत्र नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल के दुर्ग में हुआ था। जब ई.1526 में वह बाबर के साथ भारत आया था, उस समय हुमायूँ अठारह वर्ष का नवयुवक था। जब वह 22 वर्ष का हुआ तब ई.1530 में उसके पिता जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर की अचानक मृत्यु हो जाने के कारण हुमायूँ को बाबर द्वारा भारत में विजित प्रदेशों का राज्य संभालना पड़ा था। हुमायूँ ने भी अपने पिता की राजधानी समरकंद तथा उसके निकटवर्ती नगरों के वैभव को अपनी आंखों से देखा था। बाबर ने हुमायूँ की शिक्षा-दीक्षा की अच्छी व्यवस्था की थी इसलिए हुमायूँ को शिक्षा, कला एवं निर्माण आदि गतिविधियों से अच्छा प्रेम था।
दीन पनाह
हुमायूँ ने ई.1533 में दिल्ली में यमुना के किनारे दीनपनाह नामक नवीन नगर का निर्माण आरम्भ करवाया। यह नगर ठीक उसी स्थान पर निर्मित किया गया जिस स्थान पर पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ स्थित थी। इस परिसर से मौर्य एवं गुप्त कालीन मुद्राएं, मूर्तियां एवं बर्तन आदि मिले हैं तथा भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी मिला है जिसे कुंती का मंदिर कहा जाता है। दीनपनाह नामक शहर में हुमायूँ ने अपने लिए कुछ महलों का निर्माण करवाया। इन महलों के निर्माण में स्थापत्य-सौंदर्य के स्थान पर भवनों की मजबूती पर अधिक ध्यान दिया गया ताकि शाही परिवार को शत्रु के आक्रमणों से बचाया जा सके। जब ई.1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ का राज्य भंग कर दिया तब शेरशाह ने दीनपनाह को नष्ट करके उसके स्थान पर एक नवीन दुर्ग का निर्माण करवाया जिसे अब दिल्ली का पुराना किला कहते हैं। 20 जुलाई 1555 को हुमायूँ ने जब दिल्ली में पुनः प्रवेश किया तब वह इसी दुर्ग में आकर रहा।
हुमायूँ द्वारा निर्मित भवन – शेरमण्डल
दीन पनाह के भीतर एक शेरमण्डल नामक भवन है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका निर्माण बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ के लिए एक पुस्तकालय के रूप में करवाना आरम्भ किया था किंतु अधिक संभावना इस बात की है कि इस भवन का निर्माण स्वयं हुमायूँ ने आरम्भ करवाया था। संभवतः शेरशाह सूरी ने भी इस भवन में कुछ निर्माण करवाया था इसलिए यह शेरमण्डल कहलाने लगा।
26 जनवरी 1556 को इसी भवन की सीढ़ियों से गिरकर हूमायूं की मृत्यु हुई थी। इसे दीनपनाह पुस्तकालय भी कहते हैं। यह अष्टकोणीय एवं दो मंजिला भवन है जो एक कम ऊँचाई के चबूतरे पर टावर की आकृति में खड़ा किया गया है। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर काम में लिया गया है।
वेधशालाओं के निर्माण की योजना
शेरमण्डल के पास एक स्नानागार स्थित है। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह एक वेधाशाला का बचा हुआ हिस्सा है। हुमायूँ को गणित तथा नक्षत्रविद्या का अच्छा ज्ञान था। इस ज्ञान का उपयोग करने के लिए उसने भारत में एक वेधशाला का निर्माण करवाने का निश्चय किया। इसके लिए उसने समरकंद आदि स्थानों से अनेक प्रकार के यंत्र भी मंगवाए किंतु शेरशाह सूरी द्वारा अचानक ही उसका राज्य भंग कर दिए जाने के कारण वह वेधाशाला का निर्माण नहीं करवा सका। अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है कि वेधशाला के लिए कई स्थानों का चुनाव किया गया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह भारत में एक नहीं अपितु कई वेधशालाएं बनवाना चाहता था।
हुमायूँ द्वारा निर्मित भवन – आगरा की मस्जिद
हुमायूँ ने आगरा में एक मस्जिद बनवाई थी जिसके भग्नावशेष ही शेष हैं। इसकी मीनारें भी ध्वस्त प्रायः हैं जिसके कारण इसकी स्थापत्य सम्बन्धी विशेषताओं को समझा नहीं जा सकता।
हुमायूँ द्वारा निर्मित भवन फतेहाबाद मस्जिद
हिसार के फतेहाबाद कस्बे में हुमायूँ ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया। इसे हुमायूँ मस्जिद कहा जाता है। हुमायूँ ने यह मस्जिद दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगक द्वारा निर्मित लाट के निकट बनवाई। मस्जिद में लम्बा चौक है। इस मस्जिद के पश्चिम में लाखौरी ईंटों से बना हुआ एक पर्दा है जिस पर एक मेहराब बनी हुई है। इस पर एक शिलालेख लगा हुआ है जिसमें बादशाह हूमायूं की प्रशंसा की गई है। यह मस्जिद ई.1529 में बननी शुरु हुई थी किंतु हुमायूँ के भारत से चले जाने के कारण अधूरी छूट गई। ई.1555 में जब हुमायूँ लौट कर आया तब इसका निर्माण पूरा करवाया गया।