Tuesday, December 30, 2025
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विजयनगर की सामाजिक दशा

विजयनगर की सामाजिक दशा मध्यकालीन दक्षिण भारत के समस्त राज्यों में सबसे अच्छी थी। सभी लोगों को अपने काम का चयन करने तथा अपनी परम्पराओं के अनुसार जीवन जीने की छूट थी।

विजयनगर की सामाजिक दशा

सामाजिक दशा

विजयनगर राज्य में के समाज में हिन्दू परम्पराओं के अनुसार ब्राह्मणों का बड़ा आदर था। उन्हें प्राणदण्ड से मुक्त रखा गया था। ब्राह्मण शाकाहारी तथा पवित्र आचरण वाले होते थे। अन्य जातियों में मांसाहार प्रचलित था। हिन्दू देवी-देवताओं को भेड़ों तथा भैंसों की बलि दी जाती थी। सती प्रथा भी प्रचलन में थी। तेलगू विधवा स्त्रियाँ जीवित ही धरती में गाड़ दी जाती थीं।

द्वन्द्व-युद्ध का बड़ा आदर होता था परन्तु इसके लिए मन्त्री की आज्ञा लेनी पड़ती थी। राज प्रासाद में कई स्त्रियाँ लेखिका का कार्य करती थीं। वेश्या-कर्म प्रचलित था। सरायों में वेश्याएं उपलब्ध होती थीं। इन वेश्याओं को राजकीय कर देना पड़ता था। प्रजा सुखी थी। अब्दुर्रज्जाक के अनुसार साधारण जनता भी जवाहर तथा सोने के आभूषण पहनती थीं। आमोद-प्रमोद के अनेक साधन उपलब्ध थे।

साहित्य तथा कला

विजयनगर के शासकों ने हिन्दू-कला तथा हिन्दू-संस्कृति की उन्नति में बड़ा योग दिया। उनके आश्रय में संस्कृत, तमिल, कन्नड़ तथा तेलगू भाषाओं के साहित्य की उन्नति हुई। उनके दरबार में संस्कृत तथा तेलगू के बड़े-बड़े विद्वान रहते थे। विजयनगर के कुछ सम्राट स्वयं अच्छे कवि तथा संगीतज्ञ हुए।

विजयनगर राज्य के विद्वानों में सायण का नाम अग्रणी है। उसने संहिता, ऐतरेय ब्राह्मण तथा आरण्यक पर टीकाएँ लिखीं। सायण के भाई माधव विद्यारण्य भी संस्कृत के उच्चकोटि के विद्वान थे। अलसनी नामक विद्वान तेलगू का बहुत बड़ा कवि था। कृष्णदेवराय के काल में वह राष्ट्रकवि था।

स्थापत्य

विजयनगर के राजाओं में भवन निर्माण के प्रति बड़ी रुचि थी। विजयनगर की राजधानी में भव्य भवन तथा मन्दिरों का निर्माण हुआ। इन उदार राजाओं ने बड़े-बड़े तड़ाग, जलकुण्ड तथा झीलें बनवाने में बड़ा धन व्यय किया। महलों तथा मन्दिरों पर भांतिभांति की चित्रकारी की गई थी।

कृष्णदेवराय ने हजारा मंदिर अर्थात् सहस्र स्तम्भों वाला मंदिर बनवाया जिसे हिन्दुओं की मंदिर स्थापत्य कला का सर्वोच्च आदर्श माना जाता है। विट्ठल स्वामी का मंदिर भी उस युग की स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। दुर्भाग्य से उस काल के लगभग समसत भव्य भवन मुसलमानों द्वारा नष्ट कर दिये गये। उनमें से कुछ ही भवनों के भग्नावशेष अब देखने को मिलते हैं।

आर्थिक दशा

विदेशी यात्रियों ने विजयनगर राज्य के गौरव की बड़ी प्रंशसा की है तथा विजय नगर राज्य की उस काल में विश्व के धनी राज्यों में गिनती की है। राज्य की राजधानी विशाल एवं भव्य भवनों तथा विस्तृत बाजारों से विभूषित थी। सारा नगर सड़कों, बागों, उपवनों, झीलों आदि से अलंकृत था। नगर अपनी सम्पत्ति तथा वैभव के लिये प्रसिद्ध था। देश की भूमि उर्वरा थी।

खनिज पदार्थों का बाहुल्य था और सामुद्रिक व्यापार उन्नत दशा में था। इससे देश में धन की कमी नहीं थी। समुद्र तट पर बहुत अच्छे बन्दरगाह थे। पुर्तगालियों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। अरबी घोड़ों का व्यापार जोरों पर था। हीरे, पन्ने, मोती, नीलम आदि खुले बाजार में बेचे जाते थे।

विजयनगर की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि एवं पशुपालन था। शासन की ओर से सिंचाई की व्यवस्था की जाती थी। इस कारण कृषि भरपूर होती थी। कृषि के बाद दूसरा आधार उद्योग धंधे थे जिनमें वस्त्र तथा धातुओं के उद्योग प्रमुख थे। इत्र का उद्योग भी उन्नत दशा में था। उद्योगों तथा व्यवसायों के अलग-अलग संघ थे।

लेन-देने का काम सोने-चांदी की मुद्राओं से होता था। अंतरदेशीय तथा विदेशी व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में थे। साम्राज्य में अनेक अच्छे बंदरगाह थे। पुर्तगाल, अफ्रीका, ईरान, अरब, बर्मा, श्रीलंका, मलाया, चीन आदि बहुत से देशों के साथ बड़े पैमाने पर समुद्री व्यापार होता था।

वस्त्र, चावल, लोहा, शोरा, शक्कर तथा मसालों का व्यापार किया जाता था और घोड़े, हाथी, मोती, ताम्बा, कोयला, पारा, रेशम आदि बाहर से मंगाये जाते थे। राज्य के पास अपना जहाजी बेड़ा भी था और जहाज निर्माण उद्योग भी उन्नत अवस्था में था।

 इटली के यात्री निकोलो कोण्टी ने 1420 ई. में विजयनगर की यात्रा की। उसने लिखा है- ‘नगर की परिधि 60 मील है। उसकी दीवारें पर्वत शिखरों तक पहुंचती हैं। नगर में लगभग 90 हजार व्यक्ति अस्त्र-शस्त्र धारण करने योग्य हैं। राजा भारत के अन्य समस्त राजाओं से अधिक शक्तिशाली है।’

इसी प्रकार 1442-43 ई. में विजयनगर की यात्रा करने वाले ईरानी कूटनीतिज्ञ तथा पर्यटक अब्दुल रज्जाक ने लिखा है- ‘राजा के कोषगृह में गड्ढे बनाये गये हैं जिनमें पिघला हुआ सोना भर दिया गया है। सोने की ठोस शिलाएं बनाई गई हैं। देश की समस्त उच्च एवं नीची जातियों के निवासी कानों, कण्ठों, बाजुओं, कलाइयों तथा उंगलियों में जवाहरात तथा सोने के आभूषण पहनते हैं।’

पुर्तगाली यात्री पेइज ने लिखा है- ‘राजा के पास भारी कोष, अनेक हाथी तथा सैनिक हैं। इस नगर में प्रत्येक राष्ट्र और जाति के लोग मिलेंगे क्योंकि यहाँ व्यापार अधिक होता है और हीरे आदि बहुमूल्य पत्थर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। संसार में यह सबसे अधिक सम्पन्न नगर है। यहाँ चावल, गेहूँ आदि अनाज के भण्डार भरे हैं।’

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

मूल आलेख – विजयनगर राज्य

विजयनगर राज्य

विजयनगर की सामाजिक दशा

विजयनगर राज्य का पतन

यह भी देखें-

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास

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