शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) तैमूरी खान का शहजादा था, इसलिए अकबर उसे मारना नहीं चाहता था, उसे अपनी सेवा में रखना चाहता था किंतु शरफुद्दीन मिर्जा ने अकबर की अधीनता अस्वीकार कर दी!
सूरत विजय के बाद अकबर (AKBAR) ने बहुत से लोगों को पकड़कर बंदीगृह में रख दिया तथा सूरत दुर्ग में मौजूद समस्त कीमती सामग्री आगरा के लिए रवाना कर दी। सूरत के दुर्ग (Surat Fort) में कुछ बड़ी तोपें भी थीं जिन्हें सुलेमानी तोपें कहा जाता था।
इन्हीं तोपों के कारण अकबर (AKBAR) को सूरत का किला जीतने में दो माह से अधिक का समय लगा था। अकबर ने इन तोपों को बैलगाड़ियों एवं ऊंटगाड़ियों पर लदवाकर आगरा के लिए रवाना कर दिया।
अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है कि अकबर (AKBAR) अभी कुछ और दिन सूरत में रुककर आसपास के बंदरगाहों तथा नगरों पर अधिकार करना चाहता था किंतु स्थानीय गवर्नरों ने इस कार्य में अकबर की सहायता नहीं की तथा सेना के पास रसद का अभाव होने लगा, इसलिए अकबर ने अपनी सेना को लौटने के आदेश दिए तथा स्वयं भी एक सेना के साथ रवाना हो गया।
अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है- ‘इसी समय बगलाना का जमींदार बहारजी अकबर (AKBAR) के दरबार में आया। यह उधर की ओर का बड़ा जमींदार था। बगलाना देश 100 कोस लम्बा और 30 कोस चौड़ा है। यहाँ के जागीरदार के पास 2000 सवार और 16 हजार प्यादे हैं। यहाँ की आय साढ़े छः करोड़ दाम सालाना है। पहाड़ियों की चोटी पर सालही और मालहीर दो दुर्ग हैं। इस देश में अंतःपुर एवं चिंतापुर नामक दो बड़े नगर हैं। यह देश गुजरात तथा दक्षिण के बीच स्थित है।’
मुगल बादशाह तथा उनके अधिकारी, भारत के स्थानीय राजाओं को जमींदार कहते थे। उस काल के मुगल अभिलेखों में जयपुर एवं जोधपुर जैसे बड़े राजाओं के लिए भी जमींदार शब्द का प्रयोग किया गया है।
अतः अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने जिसे बगलाना का जमींदार लिखा है, वह वस्तुतः उस क्षेत्र का कोई बड़ा राजा था। बहारजी नाम से अनुमान होता है कि यहाँ किसी गुजराती अथवा पारसी राजा की बात हो रही है क्योंकि ये लोग परम्परा से अपने नाम के पीछे आज भी जी लगाते हैं।
अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है कि बहारजी अपने साथ शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) के गले में जंजीर बांधकर अकबर (AKBAR) के दरबार में आया। किसी समय शरफुद्दीन मिर्जा अकबर का बड़ा कृपापात्र था किंतु पिछले कुछ वर्षों में वह भी बागी मिर्जाओं में सम्मिलित हो गया था।
अकबर (AKBAR) शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) को मारना नहीं चाहता था किंतु उसे मृत्यु का भय दिखाकर फिर से अपने पक्ष में करना चाहता था। इसलिए अकबर ने शरफुद्दीन मिर्जा को एक भयंकर हाथी के सामने पटकवाया तथा शरफुद्दीन मिर्जा से कहा कि यदि वह शपथ ले कि भविष्य में कभी भी बादशाह से बगावत नहीं करेगा तथा बादशाह की सेवा करेगा तो उसे क्षमा किया जा सकता है किंतु शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) ने हाथी के पैरों कुचले जाकर मरना पसंद किया, अकबर (AKBAR) की सेवा में दुबारा आने से मना कर दिया।
इस पर भी अकबर (AKBAR) ने शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) के प्राण नहीं लिए। हाथी को वहाँ से हटा दिया गया और शरफुद्दीन मिर्जा को जेल में बंद कर दिया गया। अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है कि शरफुद्दीन मिर्जा (SHARAFUDDIN MIRZA) दर-दर भटका करता था, इसी से उसकी नीचता प्रकट होती थी।
अकबर (AKBAR) को ज्ञात हुआ कि बगलाना के जमींदार बहारजी ने मरहूम इब्राहीम हुसैन मिर्जा (IBRAHIM HUSSAIN MIRZA) की बेगमों और लड़कियों को भी पकड़ने का प्रयास किया था जो बगलाना के क्षेत्र में से होकर गुजर रही थीं।
बहारजी इस कार्य में पूरी तरह सफल नहीं हो सका था फिर भी वह इब्राहीम हुसैन मिर्जा (IBRAHIM HUSSAIN MIRZA) की एक पुत्री तथा इब्राहीम हुसैन मिर्जा की दो साल की कमाई लूटने में सफल रहा था। अकबर (AKBAR) इस बात को कतई सहन नहीं कर सकता था कि कोई भी अमीर, शत्रु या जमींदार शाही परिवार के किसी भी व्यक्ति को कष्ट पहुंचाने का साहस करे, भले ही शाही परिवार का वह व्यक्ति अकबर का शत्रु ही क्यों न हो!
इसलिए अकबर (AKBAR) ने मीर खाँ यथावल को आदेश दिए कि वह बगलाना के जागीरदार बहारजी को बंदी बना ले। बहारजी की कैद से इब्राहीम हुसैन मिर्जा (IBRAHIM HUSSAIN MIRZA) की पुत्री को छुड़ा लिया गया। अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है कि बगलाना के जमींदार ने अकबर की बड़ी अच्छी सेवा की।
इससे अनुमान होता है कि अकबर (AKBAR) ने बहारजी को मुक्त करके अपनी सेवा में ले लिया था। गुजरात विजय के बाद अकबर सीकरी के लिए रवाना हो गया। बहुत से अमीर अकबर की वापसी में उसे सिद्धपुर तक छोड़ने के लिए गए। जब अकबर सिद्धपुर पहुंचा तो उसे खानेआजम अजीज कोका (AZIZ KOKA) की चिंता हुई। खानेआजम अकबर का धायभाई था।
अकबर (AKBAR) ने उसे गुजरात का गवर्नर बना तो दिया था किंतु उसे ज्ञात था कि मिर्जाओं का विद्रोह अभी पूरी तरह थमा नहीं है। वे फिर से उपद्रव कर सकते हैं और खानेआजम के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। इसलिए अकबर ने खानेआजम को एक पत्र लिखा जिसमें उसने अपने हृदय की चिंताएं व्यक्त करते हुए लिखा कि शासक को सदैव सक्रिय रहना चाहिए।
लोगों की छोटी-छोटी भूलों की उपेक्षा करनी चाहिए। विवादों का निर्णय बहुत सोच-विचार कर करना चाहिए। मित्रों और शत्रुओं के प्रति निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए।
अकबर (AKBAR) के इस पत्र से लगता है कि अकबर बहुत समझदार व्यक्ति था किंतु जब हम उसके द्वारा शराब के नशे में की गई हरकतों के बारे में पढ़ते हैं तो हमें लगता है कि वह भी मुहम्मद बिन तुगलक की तरह ‘समझदार-पागल’ था।
खानदेश का शासक राजा अली खाँ भी अकबर (AKBAR) को विदा करने के लिए सिद्धपुर तक आया था। अकबर ने उसे भी वापस खानदेश भेज दिया। मालवा का गवर्नर मुजफ्फर खाँ भी सिद्धपुर आया था। उसे भी अकबर ने यहीं से मालवा के लिए रवाना कर दिया।
इसके बाद अकबर (AKBAR) ने तीन हिन्दू सेनापतियों कुंअर मानसिंह, राजा जगन्नाथ और राजा गोपाल तथा छः मुस्लिम अमीरों को आदेश दिया कि वे ईडर होते हुए डूंगरपुर जाएं तथा वहाँ के राजाओं को अकबर की अधीनता स्वीकार करने के लिए समझाएं। यहाँ अकबर का आशय ईडर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा उदयपुर के शासकों से था जो अब भी अकबर की पहुंच से बाहर थे। इसके बाद अकबर ने सिद्धपुर से पाटन, सिरोही तथा जालौर होते हुए अजमेर का मार्ग पकड़ा। अकबर का पुत्र दानियाल इस समय आम्बेर में रह रहे थे। अकबर ने एक सेना भगवानदास के पुत्र माधोसिंह के नेतृत्व में आम्बेर भिजवाई ताकि वह शहजादे दानियाल को अपनी सुरक्षा में आम्बेर से अजमेर ला सके। इस सेना के साथ जयपुर की राजकुमारी हीराकंवर जो कि राजा भारमल की पुत्री, भगवंतदास की बहिन तथा मानसिंह एवं माधोसिंह की बुआ थी और जिसका विवाह अकबर के साथ हुआ था, आम्बेर भिजवाया गया ताकि वह अपने भतीजे भुवनपति की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने अपने पीहर जा सके। राजा भगवान दास का पुत्र भुवनपति सरनाल की लड़ाई में काम आया था। अजमेर से अकबर सीकरी चला गया।
3 जून 1573 को अकबर (AKBAR) ने अपनी राजधानी में प्रवेश किया। बड़े-बड़े अमीर और सूबेदार अकबर (AKBAR) का स्वागत करने के लिए राजधानी में एकत्रित हुए। इस अवसर पर लाहौर का सूबेदार हुसैन कुली खाँ (HUSAIN KULI KHAN) भी अकबर के दरबार में उपस्थित हुआ।
वह अपने साथ मसूद हुसैन मिर्जा और उन तमाम लोगों को लेकर आया था जो लड़ाई में पकड़े गए थे। अबुल फजल (ABUL FAZAL) ने लिखा है कि इन सबको गाय के कच्चे चमड़े में लपेटा हुआ था और उनके सींग भी नहीं हटाए गए थे।
✍️ – डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (Third Mughal Jalaluddin Muhammad Akbar) से।




